पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद से ही देखा जा सकता है कि पाक ने आतंकवाद को खत्म करने के लिए कोई भी सख्त कदम नहीं उठाया है। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो पूरी दुनिया में आतंकवाद के नाम से जाना जाता है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ही आतंकवाद को अपने मुल्क में जगह देता है। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी स्कूलों में वहां के बच्चों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़काऊ शिक्षा दी जाती है।
पाकिस्तानी मीडिया भी इस बात को मानता है कि पाक ही अपने नागरिकों के मन में हिन्दुओं के खिलाफ जहर खोलने का काम करता है। पाकिस्तान के सबसे बड़े अखबार ‘द डॉन’ ने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट छापी, जिसमें बताया गया कि किस तरह पाकिस्तानी स्कूलों में हिदुओं और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति विद्वेषपूर्ण और भड़काऊ शिक्षा दी जा रही है।
जब 9/11 में हुए आतंकी हमले के बाद पूरी दुनिया का ध्यान स्कूलों में पढाई जाने वाली टैक्स्ट बुक की ओर गया तब इस बात का खुलासा हुआ कि पाक और सऊदी अरब स्कूली किताबों में आतंकवाद को बढ़ावा देने की शिक्षा दी जा रही है। अमेरिका ने काफी दबाव डालकर सऊदी अरब की स्कूली किताबों के काफी टैक्स्ट बदलवाए लेकिन पाकिस्तान में तो ये अब भी जारी है। ये पढाई अक्सर आतंकियों के प्रति सहानुभूति की वजह बनती है। ये शिक्षा धार्मिक अतिवाद को भी बढावा देती है, जो पाकिस्तान में लगातार बढ़ रहा है। बता दे ये सर्वे अमेरिकी सरकार से जुडे़ एक मिशन द्वारा किया गया। जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान में कट्टर इस्लाम के नाम पर जहर का बीज बोया जा रहा है।
आपको बता दे कि सर्वे में पाकिस्तान के चारों प्रातों में कक्षा एक से लेकर दस तक की सौ से ज्यादा पाठ्यपुस्तकों का अध्ययन किया गया। पाठ्यपुस्तकों का इस्लामीकरण तानाशाह जनरल जिया उल हक के दौरान शुरू हुआ। किताबों में लिखा है, हिंदुओं की संस्कृति और समाज अन्याय और क्रूरता पर आधारित है जबकि इस्लाम शांति और भाईचारे का संदेश देता है। देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले पंजाब प्रांत में कक्षा चार की सामाजिक अध्ययन की किताबों में लिखा है कि मुस्लिम विरोधी ताकतें दुनिया से इस्लाम के वर्चस्व को खत्म करने में लगी हैं।
पाकिस्तान की स्कूली किताबें कहती हैं कि पाकिस्तान का बनना हिंदूओं के विश्वासघात का नतीजा था। अगस्त 1947 में बंटवारे के दौरान जो व्यापक हिंसा हुई, उसके लिए हिंदू और मुस्लिम जिम्मेदार थे, जिन्होंने मुस्लिमों को निशाना बनाया। पाकिस्तान की इतिहास की किताबों में कहा गया है कि 1971 में हिन्दुओं की साजिश थी बांग्लादेश को बनाना, हिन्दू चाहते थे कि पाकिस्तान को अस्थिर कर दिया जाए। इसलिए पूर्वी पाकिस्तान को अलग करने षडयंत्र रचा गया। किसी भी पाकिस्तानी टैक्स्ट बुक में ये उल्लेख कहीं नहीं है कि किस तरह बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना ने वहां के लोगों पर जुल्म ढहाए थे।
पाकिस्तान की क्लास 9वीं और 10वीं की उर्दू की टैक्स्ट बुक में एक अध्याय है पाकिस्तान की कहानियां है, कुछ समय पहले ही इस किताब को बैन किया गया और ये माना गया है कि उसमें आपत्तिजनक सामग्री है लेकिन ये किताबें तो ना जाने कितने दशकों से पाकिस्तान में पढाई जा रही थीं। जो स्कूली बच्चों के दिमाग में हिंदुओं और भारतीयों के प्रति जहर घोलने का काम कर रही थीं।
पिछले दिनों पाकिस्तान के नेशनल कमीशन फार जस्टिस एंड पीस (एनसीजेपी) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सरकार स्कूली पाठ्यक्रम से घृणा और वैमन्स्य पैदा करने वाली धार्मिक सामग्री हटाने में नाकाम रही है। एनसीजेपी ने तो अपनी रिपोर्ट में कई किताबों के अंश भी उद्धृत किये हैं। इस रिपोर्ट के कुछ अंश आगे हैं।
पाकिस्तान के पंजाब शैक्षिक बोर्ड की क्लास तीसरी (उम्र 7-8) की उर्दू की किताब में कहा गया है कि इस्लाम दूसरे धर्मों से बेहतर है। सिंध बोर्ड की टैक्स्ट बुक की कक्षा सात की किताब में है- गैर मुस्लिमों में ईमानदारी केवल फायदे के लिए दिखावा होती है, जबकि मुस्लिम वाकई ईमानदारी पर भरोसा करते हैं। कक्षा पांच की पंजाब बोर्ड की इस्लामिक अध्ययन की किताब कहती है कि छात्र होने के नाते बेशक आप व्यावहारिक तौर पर जिहाद में शामिल नहीं हो सकते लेकिन उसके लिए वित्तीय मदद तो दे ही सकते हैं।
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पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद से ही देखा जा सकता है कि पाक ने आतंकवाद को खत्म करने के लिए कोई भी सख्त कदम नहीं उठाया है। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो पूरी दुनिया में आतंकवाद के नाम से जाना जाता है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ही आतंकवाद को अपने मुल्क में जगह देता है। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी स्कूलों में वहां के बच्चों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़काऊ शिक्षा दी जाती है।पाकिस्तानी मीडिया भी इस बात को मानता है कि पाक ही अपने नागरिकों के मन में हिन्दुओं के खिलाफ जहर खोलने का काम करता है। पाकिस्तान के सबसे बड़े अखबार ‘द डॉन’ ने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट छापी, जिसमें बताया गया कि किस तरह पाकिस्तानी स्कूलों में हिदुओं और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति विद्वेषपूर्ण और भड़काऊ शिक्षा दी जा रही है।जब 9/11 में हुए आतंकी हमले के बाद पूरी दुनिया का ध्यान स्कूलों में पढाई जाने वाली टैक्स्ट बुक की ओर गया तब इस बात का खुलासा हुआ कि पाक और सऊदी अरब स्कूली किताबों में आतंकवाद को बढ़ावा देने की शिक्षा दी जा रही है। अमेरिका ने काफी दबाव डालकर सऊदी अरब की स्कूली किताबों के काफी टैक्स्ट बदलवाए लेकिन पाकिस्तान में तो ये अब भी जारी है। ये पढाई अक्सर आतंकियों के प्रति सहानुभूति की वजह बनती है। ये शिक्षा धार्मिक अतिवाद को भी बढावा देती है, जो पाकिस्तान में लगातार बढ़ रहा है। बता दे ये सर्वे अमेरिकी सरकार से जुडे़ एक मिशन द्वारा किया गया। जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान में कट्टर इस्लाम के नाम पर जहर का बीज बोया जा रहा है।आपको बता दे कि सर्वे में पाकिस्तान के चारों प्रातों में कक्षा एक से लेकर दस तक की सौ से ज्यादा पाठ्यपुस्तकों का अध्ययन किया गया। पाठ्यपुस्तकों का इस्लामीकरण तानाशाह जनरल जिया उल हक के दौरान शुरू हुआ। किताबों में लिखा है, हिंदुओं की संस्कृति और समाज अन्याय और क्रूरता पर आधारित है जबकि इस्लाम शांति और भाईचारे का संदेश देता है। देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले पंजाब प्रांत में कक्षा चार की सामाजिक अध्ययन की किताबों में लिखा है कि मुस्लिम विरोधी ताकतें दुनिया से इस्लाम के वर्चस्व को खत्म करने में लगी हैं।पाकिस्तान की स्कूली किताबें कहती हैं कि पाकिस्तान का बनना हिंदूओं के विश्वासघात का नतीजा था। अगस्त 1947 में बंटवारे के दौरान जो व्यापक हिंसा हुई, उसके लिए हिंदू और मुस्लिम जिम्मेदार थे, जिन्होंने मुस्लिमों को निशाना बनाया। पाकिस्तान की इतिहास की किताबों में कहा गया है कि 1971 में हिन्दुओं की साजिश थी बांग्लादेश को बनाना, हिन्दू चाहते थे कि पाकिस्तान को अस्थिर कर दिया जाए। इसलिए पूर्वी पाकिस्तान को अलग करने षडयंत्र रचा गया। किसी भी पाकिस्तानी टैक्स्ट बुक में ये उल्लेख कहीं नहीं है कि किस तरह बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना ने वहां के लोगों पर जुल्म ढहाए थे।पाकिस्तान की क्लास 9वीं और 10वीं की उर्दू की टैक्स्ट बुक में एक अध्याय है पाकिस्तान की कहानियां है, कुछ समय पहले ही इस किताब को बैन किया गया और ये माना गया है कि उसमें आपत्तिजनक सामग्री है लेकिन ये किताबें तो ना जाने कितने दशकों से पाकिस्तान में पढाई जा रही थीं। जो स्कूली बच्चों के दिमाग में हिंदुओं और भारतीयों के प्रति जहर घोलने का काम कर रही थीं।पिछले दिनों पाकिस्तान के नेशनल कमीशन फार जस्टिस एंड पीस (एनसीजेपी) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सरकार स्कूली पाठ्यक्रम से घृणा और वैमन्स्य पैदा करने वाली धार्मिक सामग्री हटाने में नाकाम रही है। एनसीजेपी ने तो अपनी रिपोर्ट में कई किताबों के अंश भी उद्धृत किये हैं। इस रिपोर्ट के कुछ अंश आगे हैं।पाकिस्तान के पंजाब शैक्षिक बोर्ड की क्लास तीसरी (उम्र 7-8) की उर्दू की किताब में कहा गया है कि इस्लाम दूसरे धर्मों से बेहतर है। सिंध बोर्ड की टैक्स्ट बुक की कक्षा सात की किताब में है- गैर मुस्लिमों में ईमानदारी केवल फायदे के लिए दिखावा होती है, जबकि मुस्लिम वाकई ईमानदारी पर भरोसा करते हैं। कक्षा पांच की पंजाब बोर्ड की इस्लामिक अध्ययन की किताब कहती है कि छात्र होने के नाते बेशक आप व्यावहारिक तौर पर जिहाद में शामिल नहीं हो सकते लेकिन उसके लिए वित्तीय मदद तो दे ही सकते हैं।कश्मीर हेराल्ड नाम के समाचार पत्र में हाल ही में इस पर एक लंबा लेख छापा गया है, जिसमें बताया गया है कि पाकिस्तान की स्कूली किताबों में गैर इस्लाम के लिए किस तरह विद्वेषपूर्ण बातों का उल्लेख है। साथ ही वहां की किताबों में स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू नेताओं के योगदान को बहुत कम करके दिखाया गया है, जिसमें गांधी जी भी शामिल हैं, जिसकी छवि को पाकिस्तान की स्कूली किताबों में लगातार खराब करने की कोशिश हुई है।
कश्मीर हेराल्ड नाम के समाचार पत्र में हाल ही में इस पर एक लंबा लेख छापा गया है, जिसमें बताया गया है कि पाकिस्तान की स्कूली किताबों में गैर इस्लाम के लिए किस तरह विद्वेषपूर्ण बातों का उल्लेख है। साथ ही वहां की किताबों में स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू नेताओं के योगदान को बहुत कम करके दिखाया गया है, जिसमें गांधी जी भी शामिल हैं, जिसकी छवि को पाकिस्तान की स्कूली किताबों में लगातार खराब करने की कोशिश हुई है।
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