वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने हाल ही में ग्रेप के चरण चार की गाईडलाईन जारी की हैं। जिसके तहत बीएस-चार अनुपालन वाले डीजल वाहनों पर दिल्ली में बैन लगा दिया गया है। अब केवल बीएस-छह वाले डीजल वाहनों को ही दिल्ली में चलने की और एनसीआर क्षेत्र में से राजधानी में प्रवेश करने की इजाजत होगी। इनमें डीजल के छोटे वाहन गाडियां और बड़े वाहन बस-ट्रक दोनों ही शामिल हैं।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में तीन लाख डीजल कारें हैं जो बीएस-छह का अनुपालन नहीं करती हैं। दिल्ली में पेट्रोल से चलने वाले वाहन पहले की ही तरह चल सकेंगे। लेकिन अब हम जानते हैं सिर्फ डीजल पर ही प्रतिबंध क्यों, डीजल के साथ ऐसी क्या समस्या है?
भारत सरकार विशेष रुप से केवल डीजल वाहनों पर ही क्यों नकेल कसने में लगी है?
आपको बता दें दुनियाभर में डीजल पेट्रोल के मुकाबले पर्यावरण के लिए अधिक खतरनाक देखा गया है। यही कारण है कि भारत में डीजल वाहनों को लेकर सख्ती बरती जा रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के 2015 में दिए गए एक आदेश के बाद तो इनकी सड़क पर चलने की उम्र को 10 साल ही तय कर दिया गया था।
जबकि पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के लिए समयसीमा 15 साल रखी गई है। इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारीज कर दिया और एनजीटी ने तो अपने आदेश की समीक्षा करने से इंकार कर दिया।
पर्यावरण के लिए जागरुक माने जाने वाले यूरोप में भी अबतक डीजल पंसदीदी ईंधन में से एक कैसे था?
कार्बन-डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए क्योटो प्रोटोकॉल (1997) के तहत अबतक यूरोपीय संघ डीजल को ग्रीन फ्रेंडली ऑटो ईंधन मान रहा था। लेकिन डीजल में पेट्रोल के मुकाबले प्रति लीटर थोडा ज्यादा कार्बन होता है। लेकिन डीजल के ईंधन पेट्रोल के मुकाबले ज्यादा “लीन-बर्न” होते हैं, जिसका मतलब है कि ये पेट्रोल इंजन के एक समान परफॉर्मेंस के लिए ये कम मात्रा में ईंधन का इस्तेमाल करते हैं। इसके मायने ये भी हैं कि डीजल पेट्रोल के मुकाबले अच्छा एवरेज भी देता है।
डीजल से दुनिया को क्या समस्या है?
डीजल का मुद्दा केवल CO2 उत्सर्जन करने का ही नहीं है, डीजल इंजन कुछ ऐसी जहरीली गैसोंका उत्सर्जन भी करते हैं जो मानव जीवन के लिए हानिकारक हैं, इसके साथ ही ये कालिख का उत्सर्जन भी करते हैं। ऐसे में यहां डीजल पेट्रोल के मुकाबले बदतर स्थिति में है।
आपको बता दें जब एक ऑटोमोबाइस इंजन के भीतर हवा को गर्म किया जाता है तो वहां से नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) उत्पन्न होती है। इसमें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) भी होती है जो पूरी तरह से जहर का काम करती है। नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), जो एक ग्रीनहाउस गैस है; और नाइट्रिक ऑक्साइड (NO), जो ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके हानिकारक NO2 बनाती है। नाइट्रिक ऑक्साइड भी लंबे समय में सांस संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ा देता है।
एक पेट्रोल इंजन में, एक तीन-तरफा उत्प्रेरक कनवर्टर इन उत्सर्जन को कम करता है, यह सुनिश्चित करता है कि एनओएक्स उत्सर्जन औसतन डीजल इंजन की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत कम है।
जबकि आधुनिक डीजल कारों में पार्टिकुलेट फिल्टर लगे होते हैं जो NOx उत्सर्जन का ख्याल रखते हैं (कुछ अनुमानों के अनुसार उन्हें 90% तक कम करते हैं), डीजल इंजन भी अपने टेलपाइप उत्सर्जन में महीन कण पदार्थ (PM) का उत्सर्जन करते हैं। यह अनिवार्य रूप से कालिख है, जिसके बेहतरीन कण फेफड़ों में गहराई तक समा सकते हैं, और वे लंबे समय तक हृदय और श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। पीएम को कैंसर से भी जोड़ा गया है।
अब इसमें विशेष तौर पर भारत के साथ क्या समस्या है?
भारत में ट्रक और बस जैसे भारी वाहन जिनका आमतौर पर कम रखरखाव किया जाता है और ये अधिक प्रदूषण फैलाते हैं ये सभी वाहन डीजल पर ही चलते हैं। इनमें से कईं ट्रक बेहद पुराने हो चुके हैं और ये पुरानी और गंदी तकनीक पर चल रहे होते हैं। इसलिए डीजल वाहनों पर किए जाने वाले प्रतिबंध सही मायनों में इन बडे कमर्शियल वाहनों पर लागू हो जाता है, जो जरुरी है।
इसे पहले 2014 में पेट्रोल और डीजल के की कीमतों पर नियंत्रण नहीं रहता था तब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में काफी अंतर देखने को मिलता था। तब डीजल और पेट्रोल की कीमतों में करीब 25 रुपए का अंतर था। जिसकी वजह से भारत में डीजल वाहनों को अधिक खरीदा गया। क्योंकि यहां के लोगों का खर्च पेट्रोल की अपेक्षा डीजल में कम आ रहा था। मारुती जैसी छोटे वाहन बनाने वाली कंपनी ने भी अपनी छोटी कारों में डीजल ईंजन उतार दिया था, ऐसे फैसले भारत में प्रदूषण फैलाने के बडे कारकों के रुप में सामने आए।
साल 2012-13 में देश में छोटे यात्री वाहनों की बिक्री में डीजल की हिस्सेदार 48 फीसदी पहुंच गई थी। अब कीमतों के डीकंट्रोल होने के बाद और बीएस-6 लागू होने के बाद डीजल इंजन को बनाने वाली कीमत में इजाफा होने के कारण इनके उत्पादन और बिक्री में कमी आई है। अब साल 2018-19 में छोटे यात्री वाहनों में डीजल की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत ही बची है।
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