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Dastak India > Home > देश > सुप्रीम कोर्ट ने EWS के आरक्षण पर लगाई मुहर, देश के गरीबों को मिलेगा ये फायदा
देश

सुप्रीम कोर्ट ने EWS के आरक्षण पर लगाई मुहर, देश के गरीबों को मिलेगा ये फायदा

Dastak Web Team
Last updated: November 7, 2022 11:52 pm
Dastak Web Team
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Supreme Court of India
Photo Source- Website of Supreme Court
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जूली चौरसिया

103 वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला सुनाया और ईडब्ल्यूएस (EWS) के आरक्षण पर मुहर लगा दी। इस संवैधानिक पीठ में पांच जज जिसमें जस्टिस दिनेश महेश्वरी , जस्टिस बेला त्रिवेदी , जस्टिस जेबी पारदीवाला ,जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस उदय उमेश ललित शामिल थे। जिसमें से जस्टिस दिनेश महेश्वरी जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने ईडब्ल्यूएस के पक्ष में फैसला सुनाया और बाकी दो जजों ने इस पर अपनी असहमति जताई। इस तरह इस पांच जजों वाली पीठ ने 3:2 से अपना ये फैसला सुनाया।

सहमति देने वाले तीन जजों का क्या कहना है? 

सहमति देने वाले तीनों जजों का कहना है कि यह आरक्षण 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन नहीं करता है, वहीं दूसरी और जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस यूयू ललित ने इस पर अपनी असहमति जताते हुए कहा कि यह आरक्षण स्पष्ट रूप से “समान अवसर के सार के विपरीत है”।

EWS क्या है?

केंद्र सरकार ने जनवरी 2019 में संसद में 103 वां संवैधानिक संशोधन प्रस्ताव पारित करवाया था, जिसमें आर्थिक रूप से कमज़ोर ,सामान्य वर्ग के लोगों के लिए नौकरी और शिक्षा क्षेत्र में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी। EWS अंग्रेजी शब्द है जिसके मायने इकोनॉमिक वीकर सेक्शन से है हिंदी में इसे आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग समझा जाता है जो जातिगत पिछड़पन से अलग है।

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न्यायाधीशों ने माना आरक्षण ही अंत नहीं-

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने एक अलग फैसले में न्यायमूर्ति महेश्वरी और न्यायमूर्ति त्रिवेदी के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि आरक्षण ही अंत नहीं है बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने का साधन है इसे निजी स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि वास्तविक समाधान यह नहीं है असली समाधान तो इन्हें पूरी तरह से समाप्त करने में है जिन्होंने समुदाय के कमजोर वर्गों के सामाजिक शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन को जन्म दिया है जैसे पिछड़े वर्ग के सदस्यों का बड़ा वर्ग शिक्षा और रोजगार के स्वीकार्य मानकों को प्राप्त है उनको पिछड़े वर्ग की श्रेणियों से हटा देना चाहिए।

जिससे उन वर्गों की ओर ध्यान दिया जा सके जिन्हें सही तौर पर उनकी आवश्यकता है और पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए किए जाने वाले तरीकों की समीक्षा की जानी चाहिए साथ ही यह भी पता लगाया जाए कि जो मापदंड अपनाए जा रहे हैं, वह आज की परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक हैं या नहीं। बीआर अंबेडकर इसे केवल 10 साल के लिए ही चाहते थे , परंतु यह 7 दशकों से जारी है।

TAGGED:103 वें संवैधानिक संशोधनEWS आरक्षणसुप्रीम कोर्ट
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