किरण शर्मा
भीषण गर्मी से हर व्यक्ति परेशान है, ऐसे में कोलकाता हाईकोर्ट ने
वकीलों को राहत देने के लिए नई पहल की है। कई अधिवक्ताओं द्वारा कोलकाता हाईकोर्ट के उच्च न्यायाधीश से हीटवेव के चलते राहत देने के लिए कुछ कदम उठाने की अपील की गई थी। जिस पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने वकीलों को गर्मी की छुट्टियों के दौरान गाउन पहनने से छूट दे दी है। दरअसल, वकीलों के काला कोट पहनना के पीछे का उद्देश्य कोर्ट की गरिमा को बनाए रखना है और ऐसा आज से नहीं औपनिवेशिक काल से चला रहा है।
याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया था इनकार-
तपती गर्मी में वकीलों के लिए काला कोट पहनकर रखना आसान काम नहीं है। इस मामले को लेकर पहले भी कई बार अदालतों में याचिकाएं दायर की जा चुकी है। जिन पर कई बार वकीलों को राहत मिली तो कई बार उन्हें अपनी याचिकाएं वापस भी लेनी पड़ी। इससे पहले यह मामला जुलाई 2022 सुप्रीम कोर्ट में गया था। जिस पर याचिका में कहा गया था, कि गर्मी के दिनों में वकीलों के लिए कालाकोट और गाउन पहनना जरूरी न किया जाए लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया गया था। कोट द्वारा याचिकाकर्ताओं को सलाह दी गई, कि वह ड्रेस कोड समेत अन्य नियमों से संबंधित बातों के लिए (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) से संपर्क करें।
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क्या कहा गया याचिका में-
वकीलों के द्वारा दायर याचिका में कहा गया, कि मौजूदा ड्रेस कोड लंबे समय से चला आ रहा है। जो मौसम के अनुसार नहीं है। विशेषकर उत्तरी और तटीय इलाकों के अनुरूप यह ड्रेस कोड उचित नहीं है। इस मामले में याचिकाकर्ता शैलेंद्र त्रिपाठी ने कहा, कि कालाकोट और गाउन औपनिवेशिक काल से वकीलों के लिए चले आ रहे हैं। इसके पीछे का उद्देश्य सही है, कि यह कोट की गरिमा और वकालत के व्यवसाय को दर्शाता है लेकिन अगर व्यावहारिक नजरिए से देखा जाए तो भारत के अधिकतर इलाकों में पड़ने वाली भीषण गर्मी के समय यह ड्रेस कोड कष्टदायक है। साथ ही आर्थिक रूप से कम सक्षम वाले वकीलों के लिए इसे खरीदना मुश्किल होता है।
इससे पहले बेंच ने की थी टिप्पणी-
इंदिरा बनर्जी और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाया था। जिस पर जस्टिस बनर्जी ने सहानुभूति जताते हुए कहा, कि वह भी कोलकाता हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट में जज रह चुकी है वहां मौसम गर्म और उमस भरा रहता है। उस समय बेंच ने वरिष्ठ वकील विकास सिंह से कहा था, कि यह विषय सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का नहीं है बल्कि इसके लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ज्ञापन देना चाहिए। जिसके बाद यह याचिका वापस ले ली गई थी।
हालांकि अब 2023 में कोर्ट ने याचिका पर विचार करते हुए
वकीलों को बड़ी राहत देने का काम किया है।
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