सनातन धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। जिसके चलते महादेव के भक्तों को सावन के माह का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसा माना जाता है, कि सावन के माह में महादेव की अपने भक्तों पर विशेष कृपा होती है। इस दौरान महादेव के भक्त शिव की उपासना करते हैं, व्रत करते हैं और शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई और शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है।
शिवलिंग का अर्थ और उत्पत्ति-
देवों के देव महादेव के भक्तों के लिए शिवलिंग अत्यंत ही पवित्र और पूजनीय है, क्योंकि इसे शिव का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग दो शब्दों से मिलकर बना है शिव और लिंग यहां शिव का अर्थ है महादेव और लिंग का अर्थ है इस प्रतीक। इस प्रकार शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ होता है, शिव का प्रतीक और वहीं अगर हम बात करें शिवलिंग की उत्पत्ति की, तो पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि की रचना होने के बाद भगवान विष्णु और सृष्टि रचयिता ब्रम्हा जी आपस में एक इस बात को लेकर लड़ रहे थे, कि उन दोनों में से सर्वशक्तिमान कौन है। तभी आकाश में एक चमकीला पत्थर नजर आया और आकाशवाणी हुई जो सबसे पहले इस पत्थर के अंत को ढूंढ लेगा, वहीं सर्वशक्तिमान है। ब्रह्मा और विष्णु जी दोनोें ही उस पत्थर के अंत को ढूंढ लगे। जब बहुत ढूंढने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिला, तो ब्रह्मा और विष्णु जी दोनों ही उस पत्थर को पास थक कर बैठ गए। तब आकाशवाणी दुबारा हुई और आवज आई कि मैं शिवलिंग हुं ना मेरा कोई प्रारंभ है और ना कोई अंत। जिसके बाद वहां महादेव का आगमन हुआ।
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शिवलिंग जलाभिषेक-
वेदों और शास्त्रों के अनुसार, जब देव और दावन समुद्र मंथन कर रहे थे। उस दौरान समुद्र से विष की उत्पत्ति हुई जिसे ना तो देवों ने स्वीकार और ना ही दानवों ने तब सृष्टि की रक्षा के लिए भोलेनाथ ने इस विष को अपने कंठ में धारण किया। जिसके बाद देवों और दानवों ने विष के प्रभाव को कम करने को लिए शिव को जल अर्पण किया। जिसके बाद से सावन माह में शिवलिंग पर जल अर्पण यानी शिव अभिषेक किया जाता है।
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