Mohan Bhagwat: आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर की हिंसा और चुनाव को लेकर बहुत बड़ी बातें कही हैं। मणिपुर को लेकर भागवत का कहना है कि देश में शांति चाहिए। जगह-जगह पर समाज में कलह नहीं चलता, एक साल से मणिपुर शांति का इंतजार कर रहा है। उससे पहले 10 साल शांत रहा, पुराना जन कल्चर समाप्त हो गया, ऐसा लगा अचानक जो कलह वहां उपजी या उपजाई गई है, वह उसकी आग में अभी तक जल रहा है, ध्यान कौन देगा? इसे प्राथमिकता देकर उस पर विचार करना हमारा कर्तव्य है।
सामाज में कल्चर (Mohan Bhagwat) –
उनका कहना है कि भले ही घर की महिला शराब पीकर कार चलाती है और लोगों को रोंद देती है, तो हमारी संस्कृति कहां है, हम लोग उसकी परवाह करेंगे, तभी सामाज में कल्चर बना रहेगा। इसीलिए जो संस्कृत हमें सिखाती है, उसे आगे की पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रश्न खड़ा हो गया है। जिन्होंने उनका त्याग कर दिया, वह खुशी खुश नहीं हैं।
असत्य का प्रसारण(Mohan Bhagwat)-
मोहन भागवत ने चुनाव को लेकर कहा कि यह एक सहमति बनाने की प्रक्रिया है। संसद में किसी भी प्रश्न के दो पहलू सामने आए, इसलिए ऐसी व्यवस्था की गई। चुनाव प्रचार में जिस प्रकार एक दूसरे की तकनीक का दुरुपयोग किया जा रहा है, एक दूसरे को लथाड़ा जा रहा है, तथा असत्य का प्रसारण जा रहा है, वह ठीक नहीं है। विरोधी की जगह प्रतिपक्ष शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए। चुनाव के आवेश में मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा।
समाज में मनमुटाव-
प्रचार में इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया है कि ऐसा करने पर समाज में मनमुटाव बढ़ जाता है। संघ को भी उसमें घसीटा गया, तकनीक का दुरूपयोग हुआ। आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल असत्य को दिखाने के लिए किया गया। ऐसे देश कैसे चलेगा, आखिरकार सबको देश ही चलना है। लोग विरोधी पक्ष कहते हैं, मैं प्रतिपक्ष कहता हूं, इसका भी विचार होना चाहिए।
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चुनौतियां समाप्त नहीं हुई-
चुनाव लड़ते समय मर्यादा होती है, जिसका पालन नहीं किया गया है। देश के सामने चुनौतियां समाप्त नहीं हुई है। वही सरकार फिर से आई है, पिछले 10 सालों में बहुत कुछ अच्छा हुआ है। दुनिया जिस आधार पर आर्थिक स्थिति का मापन करती है, उसके हिसाब से आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। दुनिया भर के देश में प्रतिष्ठा बढ़ गई है, संस्कृति और कला के क्षेत्र में भी हम आगे बढ़े हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए हैं। अभी भी चुनाव के आवेश में मुक्त होकर आने वाले बातों का विचार करना है।
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