Feeding Pigeons: दिल्ली नगर निगम जल्द ही कबूतरों खाना डालने वाली जगह पर बैन लगाने की तैयारी में है। दरअसल दिल्ली में कबूतरों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां जन्म ले रही हैं। बहुत से बड़े डॉक्टर्स ने भी इस फैसले को समर्थन दिया है। दरअसल MCD पक्षियों के मल से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों की वजह से कबूतरों को दाना खिलाने वाली जगह पर बैन लगाना चाहती है। अगर इसे मंजूरी मिल जाती है, तो गोल चक्कर, सड़क के चौराहे और फुटपाथ पर पाए जाने वाले दाना खिलाने वाले क्षेत्रों को बंद किया जा सकता है।
कबूतरों को दाना खिलाने के लिए लोकप्रिय जगह-
दिल्ली में कबूतरों को दाना खिलाने के लिए लोकप्रिय जगह में कश्मीरी गेट, मोरी गेट और चांदनी चौक जैसे इलाकों से लेकर पहाड़गंज, इंडिया गेट और जमा मस्जिद तक फैले हुए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ स्वास्थ्य जोखिमों पर बार-बार जोर देते रहते हैं। कबूतरों की बीट के केंद्रित क्षेत्र साल्मोनेला, इन्फ्लूएंजा, ई कोली, हाइपरसेंसटिविटी जैसे रोगजनकों के लिए प्रजनन स्थल बन सकते हैं। जिससे कि लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्या जैसे अस्थमा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
कबूतरों की संख्या में वृद्धि-
कबूतरों ने शहरी भारत में खुद को ढाल लिया है। सबसे पहले तो वह शहर उपलब्ध भोजन पर आसानी से जिंदा रह सकते हैं। वहीं दूसरा कबूतर किनारे पर घोंसला बना सकते हैं। जिससे कि वह अपने घोंसले को खिड़कियों, बालकानियों किनारों और अन्य ऊंची संकरी जगह पर बनाते हैं। शहरी इलाकों में देखा जाए, तो कबूतरों को घोंसला बनाने के लिए बस थोड़ी सी जगह की जरूरत पड़ती है और इमारतें उनके प्राकृतिक आवास के रूप में एक अच्छा विकल्प देती हैं। वहीं कई अन्य पक्षियों के विपरीत कबूतर पूरे साल घोंसला बनाते रहते हैं और भारत में 25 साल में उनकी संख्या 100% से भी ज्यादा बढ़ चुकी है।
कबूतरों को दाना डालना क्यों है खतरनाक?
दरअसल कबूतरों को दाना खिलाना इसलिए खतरनाक माना जा रहा है, क्योंकि पाया गया है, कि जहां पर कबूतरों को दाना डाला जाता है। वहां पर ई. कोली और साल्मोनेला जैसे बैक्टीरिया आकर्षित होने लगते हैं। जिससे न सिर्फ इन जगहों पर बल्कि इसके आसपास के क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ जाता है। इससे बुजुर्गों, बच्चों और अन्य लोगों को फेफड़ों में संक्रमण और एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है। वहीं विशेषज्ञों का कहना है, कि बच्चे और बुजुर्ग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है या कमजोर प्रतिरक्षा वाले व्यक्ति जो स्टेरॉयड और एक्सप्रेसिव दवाई ले रहे हैं, प्रत्यारोपण के मामले अस्थमा आदि के रोगी कबूतर की बीट के प्रति संवेदनशील होते हैं।
फेफड़ों की बीमारियां-
वहीं भारत के कई शहरों में कबूतरों की बीट और उनके भोजन की वजह से फेफड़ों की बीमारियां खासकर बर्ड ब्रीडर लंग की समस्या बढ़ती ही जा रही है। कबूतरों को उनकी बीट और पंखों में मौजूद एक्टोपैरासाइट के माध्यम से जूनोसिस फैलाने के लिए जाना जाता है। बेंगलुरु, पुणे, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में कबूतरों से संबंधित हाइपर सेंसिटिव निमोनिया के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। जिन लोगों को पहले से ही फेफड़ों की बीमारी है, उनमें इस बीमारी के होने की संभावना 60 से 65% तक बढ़ अधिक होती है।
वरिष्ठ पल्मनोलॉजिस्ट डॉक्टर निखिल मोदी-
अंग्रज़ी समाचार वेबसाइट एनडीटीवी के मुताबिक, दिल्ली के अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ पल्मनोलॉजिस्ट डॉक्टर निखिल मोदी का कहना है, कि फेफड़ों से संबंधित दो प्रमुख कारक चिंता का विषय हैं। पहले कबूतरों और उनके बीट से होने वाली एलर्जी के लक्षण, सांस के माध्यम से इन कणों के संपर्क में आने पर जिन लोगों को एलर्जी और अस्थमा है, उनके लक्षण और भी ज्यादा खराब हो सकते हैं। गंभीर मामले में नाक बहना, छींक आना, खांसी और सांस फूलने की समस्या बढ़ सकती है। वहीं उन्होंने दूसरी बीमारी जिसे हम एचपी कहते हैं, एक प्रकार के फेफड़े का विकार है, जिससे कबूतर और अन्य पक्षियों के संपर्क में आने की वजह से फेफड़ों में सूजन हो जाती है।
ये भी पढ़ें- लॉरेंस बिश्नोई के नाम पर कौन दे रहा था पप्पू यादव को मारने की धमकी? पुलिस ने किया गिरफ्तार
एमसीडी के अधिकारियों का कहना है-
वहीं एमसीडी के अधिकारियों का कहना है, कि प्रस्ताव में मौजूद भोजन स्थलों का सर्वेक्षण करना और इस प्रथा को हातोत्साहित करने के लिए एक सलाह जारी करना शामिल है। उन्होंने कहा, कि इस पहल का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और कबूतरों की बीट से जुड़ी अन्य बीमारियों के जोखिम को कम करना है। एक नागरिक अधिकार का कहना है, कि हम कबूतरों की उपस्थिति के खिलाफ नहीं है। लेकिन समस्या तब पैदा होती है, जब वह बड़ी संख्या में आते हैं और उनकी बीट विशिष्ट क्षेत्रों में जमा हो जाती है।
चेतावनी-
वहीं इन कबूतरों के लिए जाल लगाना और नियमित रूप से कबूतरों के बीट को गिला करके साफ करना और एरोसॉलिस के बिना सावधानी से हटाना शामिल हो सकता है। बीट साफ करते समय मास्क और दस्ताने पहनने की जरूरत है। डॉक्टर मोदी का कहना है, कि जब भी कबूतर आसपास होते हैं, तो मास्क पहनना सबसे अच्छी बात है। एलर्जी और अन्य समस्याओं वाले लोगों के लिए घर और अपने आसपास जाल की मदद से सभी कबूतरों को हटाना बेहतर है। इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, कि दिल्ली में प्रदूषण की वजह से कबूतरों से होने वाली एलर्जी से फेफड़ों की समस्या बढ़ती है और यह गंभीर हो सकती है।
ये भी पढ़ें- जयराम रमेश ने किया पीएम मोदी के बयान पर पलटवार, कहा नॉन बायोलॉजिकल पीएम..