Nepal & India: मुद्रा, करेंली या पैसा एक ऐसी चीज है, जिसका इस्तेमाल हमारे दैनिक जीवन में किसी भी चीज को खरीदने या बेचने के लिए किया जाता है। इसमें कागज के बने नोट और सिक्के दोनों ही शामिल होते हैं। आमतौर पर किसी भी देश में इस्तेमाल होने वाली करेंसी उस देश की सरकारी व्यवस्था बनाती है। दुनिया के 195 देश में कुल 180 करेंसी चलती है। हर देश की तरह नेपाल में भी अपनी करेंसी छपती है। हाल ही में नेपाल ने अपने 100 के नोट को फिर से डिजाइन करने का फैसला लिया है। लेकिन इस फैसले ने भारत और नेपाल के बीच में तनाव पैदा कर दिया है। इसके पीछे की वजह नोट पर छपा हुआ, वह मानचित्र है, जिसमें सीमा के विवादित क्षेत्र को शामिल किया गया है।
रणनीतिक और राजनीतिक संवेदनशीलता-
दरअसल भारत और नेपाल के बीच में रणनीतिक और राजनीतिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने में अप्रत्यक्ष तौर पर चीन का भी हाथ है। नेपाल ने नई करेंसी नोट छापने के लिए चीनी प्रिंटिंग कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया है। नेपाल राष्ट्रीय बैंक ने चीन बैंक नोट प्रिंटिंग एंड मिटिंग कॉरपोरेशन को फिर से डिजाइन किए गए 100 रुपए के बैंक नोट की 300 मिलियन प्रतियां डिजाइन करने और प्रिंट करने का कॉन्ट्रैक्ट दिया है। इसकी प्रिंटिंग लागत लगभग 8.99 मिलियन अमेरिकी डॉलर रखी गई है, औसतन चार रुपए और चार पैसे प्रति नोट।
राजनीतिक मानचित्र-
इस नए नोट में नेपाल का संशोधन राजनीतिक मानचित्र होगा। जिसमें काला पानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख के विवादित क्षेत्र शामिल हैं। सरकार की ओर से पुष्टि करते हुए, नेपाल की संचार रेखा मंत्री ने कहा, कि सरकार ने नेपाल राष्ट्रीय बैंक को मुद्रा नोट पर वर्तमान मानचित्र को अपडेट करने के साथ बदलने के लिए अधिकृत किया है। यह फैसला इस साल मई में पुष्प कमल दहल सरकार के समय लिया गया था, जिसके बाद औपचारिक टेंडर प्रक्रिया और एनआरबी द्वारा एंट्रेंस इंटेंट लेटर जारी किया गया था।
भारत और नेपाल सीमा विवाद-
भारत और नेपाल सीमा विवाद 1816 में एंग्ल- नेपाल युद्ध के बाद नेपाल और ब्रिटिश भारत के बीच हस्ताक्षरित सुगौली संधि के बाद से चला आ रहा है। इस संधि के मुताबिक, काली नदी को नेपाल की प्राकृतिक पश्चिमी सीमा के रूप में नामित किया गया था। इसके पूर्व में लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और काला पानी शामिल थे, जो नेपाल के थे। इसके बावजूद यह क्षेत्र 1960 के दशक से भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में हैं। इस क्षेत्रीय मुद्दे पर तनाव नवंबर 2019 में बढ़ गया। जब भारत ने एक राजनीतिक मानचित्र जारी किया।
एकतरफा कार्यवाही की आलोचना-
जिसमें इस विवादित क्षेत्र को अपनी सीमाओं में शामिल किया गया था। नेपाल ने 2020 में अपना खुद का संशोधित राजनीतिक मानचित्र पेश करके जवाबी कार्यवाही की। जिसमें इन क्षेत्रों को नेपाल का होने का दावा किया गया था। वहीं विदेश मंत्री एस जयशंकर ने नेपाल की एकतरफा कार्यवाही की आलोचना की और कहा कि हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है। नेपाल के साथ हम एक स्थापित मंच के माध्यम से अपनी सीमा मामलों पर चर्चा कर रहे हैं। इसी बीच उन्होंने एक तरफ तौर पर अपनी तरफ से कुछ कदम उठाए हैं। लेकिन अपनी तरफ से कुछ करने से वह हमारे बीच की स्थिति या जमीनी हकीकत को बदल नहीं सकते।
वहीं चीन के सरकारी स्वामित्व वाले निगम में प्रिंटिंग का कांट्रेक्ट देने से मामला और भी मुश्किल हो चुका है। अंग्रेजी दैनिक पब्लिक की रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी बैंक नोट प्रिंटिंग एंड मिटिंग कॉरपोरेशन का चयन एक ओपनग्लोबल टेंडर के बाद हुआ। फिर भी भारत और नेपाल की सीमा क्षेत्र में रणनीतिक तनाव को देखते हुए चीनी भागीदारी ने अपनी भौंहे चढ़ा ली है। भारत में पर्यवेक्षकों ने सुझाव दिया, कि नेपाल की सरकार उस समय प्रधानमंत्री कमल दहल के अधीन राष्ट्रवादी भावनाओं को आकर्षित करने के लिए नए स्वरूप का इस्तेमाल कर सकती है।
देशों के बीच संबंध हो सकते हैं खराब-
हालांकि विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है, कि नेपाल के नए बैंक नोट छापने से दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध खराब हो सकते हैं। जिसमें खुली सीमाएं और महत्वपूर्ण आर्थिक सहयोग शामिल है। नेपाल और भारत के बीच 1,750 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह पांच भारतीय राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से जुड़ी हुई है। सीमा पर इस मुद्दे से माहौल खराब होने की आशंका जताई गई है। काठमांडू पोस्ट के हवाले से नेपाल के विदेश मंत्री नारायण काजी ने राजनीतिक चुनाव की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा, कि हम भारत के साथ सीमा मुद्दे को हल करना चाहते हैं। हम इसे कूटनीति और बातचीत के जरिए ठीक करना चाहते हैं। हम उसके लिए पहल कर रहे हैं। हालांकि क्या यह अंतर पाटने के लिए पर्याप्त होगा, इस पर भी संश्य बना हुआ है।
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नेपाल की करेंसी-
अब सवाल यह उठता है, कि आखिर यह क्षेत्र विवादित क्यों है। दरअसल भारत ने, नेपाल की करेंसी में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को शामिल करने को क्षेत्रीय दावे के रूप में देखा है, जो क्षेत्रीय स्थिरता को बाधित कर सकता है। साल 2020 में भारत द्वारा लिपुलेख के जरिए 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन करने के तुरंत बाद नेपाल ने विवादित क्षेत्र पर दावा तेज कर दिया था, जो भारत के राज्य उत्तराखंड को तिब्बत के कैलाश मानसरोवर से जोड़ता है।
व्यापार और क्षेत्रीय सुरक्षा दोनों के लिए इस सड़क को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि यह एक व्यवहारिक मार्ग भारत से तिब्बत के लिए प्रदान करता है। भारत ने इस क्षेत्र को नेपाल के हिस्से के रूप में स्थापित करने के लिए चल रहे, नेपाल के प्रयासों की कड़ी आपत्ति जताई और गलत दावा बताया, जो नेपाल की सीमाओं के कृत्रिम विस्तार के समान है। विवादित भूमि लगभग 335 वर्ग किलोमीटर की है, जो कि भारत और नेपाल अपनी रणनीति की स्थिति की वजह से एक मामूली क्षेत्र है, फिर भी यह जरूरी है।
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