जूली चौरसिया
Women Choosing Divorce: आज के समय में भारतीय महिलाएं एक दुखी शादी में रहकर समझौता करने के बजाय तलाक को चुन रही हैं। हालांकि समाज के मुताबिक तलाक एक विफलता है। लेकिन अब महिलाओं को तलाक का महत्व समझ आया है। उनके मुताबित तलाक एक विफलता नहीं है, बल्कि यह एक रास्ता है कुछ बेहतर पाने का। अब वह समझती हैं, कि वह इस दुःखी शादी से ज्यादा कुछ अच्छा डिज़र्व करती हैं। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या महिलाओं के शादी का मतलब हर दिन एक जैसा प्यार और सम्मान मिलना है? क्या यही उनके लिए सब कुछ यही है, आखिर महिलाएं क्यों तलाक के ऑप्शन को चुन रही हैं। आईए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-
रिश्ते में सम्मान ना मिलना (Women Choosing Divorce)-
बहुत बार ऐसा होता है कि एक शादी में महिलाओं को सम्मान नहीं मिलता। जब एक पति अपनी पत्नी को सम्मान नहीं देता, वह उसे बोझ समझने लगता है, उसे प्यार नहीं देता, उसकी खुशियों का ध्यान नहीं रखता। लेकिन उससे उम्मीद करता है, कि महिला उसके लिए अच्छा खाना बनाए, उसके लिए अच्छे से सजे-संवरे, उसके पति को जो पसंद हो वह करे, घर को संभाले, बच्चों की देखभाल करे अपनी सारी ज़िम्मेदारियों को पूरा करे और इस सम्मान ना मिलने वाली शादी में बंधकर रहे। उसे टूटने से बचाने के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दे। लेकिन उसकी पसंद का ना तो ख्याल किया जाएगा और ना ही उसे सम्मान दिया जाएगा। तो सवाल यह है कि आखिर उसे ऐसी शादी में क्यों रहना चाहिए, जहां वह अकेले ही रिश्ते को संभालने की कोशिश करे? तब उसे तलाक का सुझाव दिया जाता है, फिर उसे अहसास होता है कि आखिर वह भी एक अच्छी और सम्मान भरी ज़िंदगी की हकदार है।
ससुराल वालों का दुर्व्यवहार(Women Choosing Divorce)-
वहीं शादियों में सिर्फ अपमानजनक व्यवहार पति तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि ससुराल वालों की भी बारी आती है। खास तौर पर जब वह अराजकता पैदा करके खुश होते हैं, वह पति-पत्नी को एक दूसरे के खिलाफ करते हैं। मतलब लड़ाईयों को बढ़ावा देते हैं और भावनात्मक दूरी को बढ़ा देते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि पति की मां जिसने अपनी शादी में कई सालों तक उपेक्षा झेली होती है, अनजाने में दुख के इस प्रक्रिया को जारी रखती है। उसके पति ने उसे भावनात्मक और व्यावहारिक रूप से विफल कर दिया, जिससे उसे अपने जीवन के बोझ का खामयाज़ा भुगतना पड़ा। इसीलिए इस बंधन को ठीक करने या तोड़ने के बजाय, वह अपने बेटे की देखभाल और ध्यान की जरूरत को अपने बेटे पर केंद्रित कर देती है।
जिससे वह भावनात्मक सहारा बन जाता है, जो उसके पास कभी नहीं था। जिसके चलते उसका बेटा एक ऐसे जीवन के लिए काम करने के बजाय, जहां वह और उसकी पत्नी दोनों बराबरी के साथ खड़े हों, वह अपनी पत्नी पर इस दर्द का बोझ डाल देता है, जो उसकी मां ने झेला था। इससे उपेक्षा की प्रक्रिया जारी रहती है। एक पति जो अपनी पत्नी की जरूरत को नज़रअंदाज कर देता है। अक्सर वह अपनी मां के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा करने की बातों को सही ठहरता है। इस बात को सुविधाजनक रूप से अनदेखा करता है, कि उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी उसके द्वारा ली गई कसमों के मुताबिक है। वह आदमी जो अपनी मां के लिए पहाड़ हिला सकता है। वह उसकी पत्नी अपने माता-पिता से मिलने का जिक्र करे, तो वह नखरे दिखाने लगेगा। दोहरा मापदंड अपनाने लगेगा और महिलाएं अब इसे बर्दाश्त नहीं कर रही हैं।
भावनाओं को अनदेखा करना(Women Choosing Divorce)-
इसके साथ ही महिलाओं के तलाक को चुनने के पीछे एक और अनकही सच्चाई है। एक महिला की शादी एक ऐसे आदमी से कर दी जाती है, जो उसे नहीं जानता, उसे जानने की परवाह नहीं करता और उसे खास महसूस कराने के लिए कोई भी कोशिश नहीं करता है। इसके बजाय वह उसे एक साधन के रूप में देखता है, बच्चों को पालना, अपने घर की देखभाल करने वाली एक सुविधाजनक उपस्थिति समझने लगता है। बहुत से भारतीय पुरुष अपनी पत्नियों की भावनात्मक गहराई को नहीं समझ पाते। उसे यह ज़रुरी नहीं है कहकर टाल देते हैं। बहुत से भारतीय पुरुषों को शांति से इसे समझने की ज़रुरत है। हालांकि वह इसे समझने की कोशिश भी नहीं करते। उनके लिए सिर्फ उनकी खुशी मायने रखती है, जिससे उनकी पत्नी अलग-थलग रह जाती है।
सबसे दुखद बात यह है, कि कई महिलाओं को पता भी नहीं होता, कि वह क्या खो रही हैं। क्योंकि किसी ने उन्हें कभी बताया ही नहीं, कि उनका सुख भी मायने रखता है। वहीं भारतीय पुरुषों का मानना है, की शादी का मतलब एक नई जिंदगी की शुरुआत नहीं है। शादी करना ही महिलाओं के लिए मायने रखता है। शादी के बाद डेट पर जाना, पत्नी को बाहर ले जाना, उसे छोटे-छोटे चीजों से खुश करना, इस तरह बात करना, पुरुषों को विदेशी लगता है। वह डेट का प्लान बनाने या उससे यह पूछने की ज़हमत नहीं उठता, कि उसका दिन कैसा रहा। लेकिन वह अपने फोन पर इंस्टाग्राम रील्स को स्क्रोल करने के लिए घंटों बिता देता है।
जीवनभर परिवार की ज़िम्मेदारी के तले दबना-
भारत में ऐसा होता है, की शादी के समय परिवार लाखों रुपए खर्च करता है। लेकिन घर में काम करने वाली नौकरानी रखने के बारे में सोचने लगता है। जिस महिला से शादी के दिन सपनों को पूरा करने का वादा किया जाता है। उसे अपने नए घर में कदम रखते ही, जीवन भर के बेकार के काम सौंप दिए जाते हैं। खाना बनाना, घर संभालना, सफाई करना बच्चों की देखभाल करना यह सब उनके कंधों पर डाल दिया जाता है। अक्सर बिना किसी स्वीकृति के अकेले सहारे का नतीजा वह खुद को खो देती है। उसका स्वास्थ खराब हो जाता है। उसके सपने फीके पड़ने लगते हैं और वह चमक जो कभी उसकी पहचान हुआ करती थी, उन्ही जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाती है। शादी एक व्यक्ति का काम नहीं है।
ये भी पढ़ें- क्या पत्नी के अकाउंट में ट्रांसफर किए पैसों पर नहीं देना होगा टैक्स? यहां जानें क्या कहते हैं नियम
अगर आप चाहते हैं कि कोई महिला आपके घर में एक परी की तरह महसूस करें, तो आपको उसके लिए स्वर्ग बनाने की जरूरत है, ना कि उसे एक झाड़ू थमाएं और उम्मीद करें, कि घर संभाल लेगी। जब पति आगे बढ़ने में विफल रहता है, तो उसकी पत्नी को आगे आना पड़ता है और वह उसे थका देता है। वह एक चिड़चिड़ी पत्नी, काम से परेशान मां और थकी हुई ग्रहणी बन जाती है। इसलिए नहीं कि वह ऐसा करना चाहती है, बल्कि इसलिए कि उसके पास कोई और ऑप्शन नहीं है। समय के साथ यह संतुलन नुकसान पहुंचता है। तनाव और हार्मोनल समस्याएं और यहां तक की समय से पहले बुढ़ापा आ जाता है।
शादी का मतलब-
शादी का मतलब किसी महिला की खुशी को परेशानी में बदलना नहीं है, इसका उद्देश्य उसे ऊपर उठाना है। उसके उद्देश्यों को पूरा करना है और उसे एक ऐसा साथी देना है, जो उससे मेल खाता हो। वह सभी के लिए खाना बनाने में घंटों बिताती है। वह सभी के लिए खाना बनाती ना सिर्फ अकेले खाने के लिए। लेकिन एक अच्छी पत्नी से खाना पकाने और उसे परोसने की उम्मीद की जाती है ना कि अपने परिवार के साथ मेज पर बैठने की। थकावट को कम करने और समय पर करने के लिए, क्या इस तरह आपकी पत्नी सिर्फ देखभाल करने वाली की भूमिका नहीं निभाती है। वह असल में आपके साथ एक रानी की तरह रह सकती है। साथ में आपके द्वारा बनाई गई जिंदगी का आनंद ले सकती हैं, ना की सिर्फ आपकी परछाई बने।
ये भी पढ़ें- डॉ मनमोहन के निधन के बाद क्या राहुल गांधी का वियतनाम जाना सही है या गलत?