Harsha Richhariya Mahakumbh Controversy: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में एक नया विवाद सामने आया है। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हर्षा रिछारिया की भगवा वस्त्रों में उपस्थिति ने धार्मिक नेताओं के बीच तीखी प्रतिक्रियाएं जगाई हैं। छावनी प्रवेश शोभायात्रा में साधु-संतों के साथ रथ पर बैठी हर्षा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद यह मामला तूल पकड़ गया।
धार्मिक नेताओं की तीखी प्रतिक्रया-
स्वामी आनंद स्वरूप ने फेसबुक पर लिखा, “कुंभ मॉडल दिखाने के लिए नहीं बना है। कुंभ जप, तप और ज्ञान के प्रवाह के लिए है। इसलिए कृपया इस अनुचित कृत्य पर कार्रवाई करें।” काली सेना प्रमुख ने यह भी लिखा , कि रिछारिया अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी के साथ निरंजनी अखाड़े में भोजन प्रसाद में भी शामिल हुईं।

महंत रवींद्र पुरी का पक्ष-
इस विवाद पर महंत रवींद्र पुरी ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “हमारी परंपरा में एक दिन, पांच दिन, सात दिन के लिए साधु बनने की प्रथा है। युवती ने निरंजनी अखाड़े के एक महामंडलेश्वर से मंत्र दीक्षा ली थी। वह संन्यासिन नहीं बनी हैं और उन्होंने खुद भी कहा है कि वह केवल मंत्र दीक्षा ली है। राम नामी वस्त्र पहनना कोई अपराध नहीं है।”
हर्षा का स्पष्टीकरण-
न्यूज18 के मुताबिक, विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए हर्षा ने कहा, “मैं अभी पूर्ण साध्वी नहीं हूं। लोगों ने मेरी दिखावट के आधार पर मेरी पहचान मान ली है। हालांकि मैं आध्यात्मिक साधना के प्रति समर्पित हूं, लेकिन मैं अभी संक्रमण काल में हूं। मेरी यात्रा आध्यात्मिकता और मेरे व्यक्तिगत जीवन में पूरी करने वाली जिम्मेदारियों का मिश्रण है।”

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं-
इस घटना ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे धार्मिक परंपराओं का अपमान मान रहे हैं, वहीं कुछ इसे व्यक्तिगत आस्था का मामला बता रहे हैं। कई यूजर्स ने पूछा, कि क्या आध्यात्मिक यात्रा के लिए सोशल मीडिया प्रचार जरूरी है।
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महाकुंभ की गरिमा का सवाल-
महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में इस तरह की घटनाओं ने धार्मिक नेताओं के बीच चिंता पैदा की है। वह मानते हैं, कि सोशल मीडिया पर फेमस होने के लिए धार्मिक परंपराओं का इस्तेमाल उचित नहीं है। हालांकि आधुनिक समय में धर्म और सोशल मीडिया के बीच सामंजस्य का सवाल भी उठ रहा है। यह विवाद धार्मिक परंपराओं और आधुनिक सोशल मीडिया संस्कृति के बीच टकराव को दर्शाता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा, कि धार्मिक संस्थान इस तरह की चुनौतियों से कैसे निपटते हैं।
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