Westernization of Yoga: प्राचीन भारत में, योग केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं था। यह जीवन जीने का एक समग्र दर्शन था। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस विद्या को हजारों वर्षों तक संजोया, विकसित किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया। लेकिन 2025 में एक स्ट्रैंज सिनेरियो सामने है। जहां पश्चिमी देशों में लोग टर्मरिक लेट पीते हुए अपने ज़ेन मूमेंट की तस्वीरें Instagram पर पोस्ट कर रहे हैं, वहीं भारत के युवा योग को हिस्ट्री टैक्ट बुक का एक अध्याय मानकर इससे दूर होते जा रहे हैं।
पश्चिम का नया योग अवतार(Westernization of Yoga)-

लॉस एंजेलेस की सुबह हो या लंदन की शाम, हर जगह योगा क्लासेस में लोगों की भीड़ उमड़ रही है। लैवेंडर की खुशबू के बीच एवोकाडो टोस्ट खाते हुए सूर्य नमस्कार करना। अब लाइफस्टाइल का एक ट्रैंडी हिस्सा बन गया है। पश्चिम ने योग को एक ऐसे पैकेज में प्रस्तुत किया है, जो सोशल मीडिया पर परफैक्ट लगता है। crystals से सजी मैडिटेशन रुम्स, महंगे योगा मैट्स और माइंडफुलनेस एप्स के साथ।
भारत का बदलता चेहरा(Westernization of Yoga)-
लेकिन भारत में योग अब वह चीज़ है, जो दादी-नानी सुबह पार्क में करते हैं। नई पीढ़ी के लिए सक्सेस का मतलब है, अगला बड़ा स्टार्टअप लॉन्च या कॉर्पोरेट पर तेजी से चढ़ना। मेडिटेशन करना उन्हें उतना ही आउटडेटिड लगता है, जितना कि Nokia का पुराना फ्लिप फोन। भारत अपनी प्राचीन विरासत को पीछे छोड़कर आधुनिकता की दौड़ में शामिल हो गया है।

पश्चिमी प्रभाव और भारतीय पहचान(Westernization of Yoga)-
पश्चिमी दुनिया ने भारतीय योग को वेलमेस मूवमेंट में बदल दिया है। Instagram पर #mindfulness के millions of posts हैं, जहां लोग अपने स्प्रिच्युल जर्नी की तस्वीरें शेयर करते हैं। यह एक ऐसा ट्रांसफोर्मेंशन है जहां एसिएंट विस्डम को मॉर्डन लाइफस्टाइल के साथ ब्लेंड किया गया है। लेकिन इस प्रक्रिया में योग का मूल सार कहीं खो गया है।
सांस्कृतिक पहचान का संकट-
पश्चिम के पास अपनी स्टॉंग कल्चर आइडेंटिटि है, इसलिए वह भारतीय परंपराओं को अपने तरीके से adapt कर सकता है। लेकिन भारत में यहां की sacred practices धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं और कोई इस पर ध्यान नहीं दे रहा। सभी प्रेज़ेंट में इतने बिज़ी हैं, कि पास्ट की विरासत को भूलते जा रहे हैं।
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आगे की राह-
क्या यह समय नहीं आ गया है, कि भारत अपनी प्राचीन विद्याओं को एक नई दृष्टि से देखे। हमें न तो पश्चिमी प्रभाव को पूरी तरह नकारना है और न ही अपनी जड़ों को भूलना है। बल्कि एक ऐसा संतुलन खोजना होगा, जो आधुनिक जीवन की डिमांड के साथ-साथ हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी सम्मान दे।
ज्ञान की ओर आकर्षित-
यह एक वेक-अप-कॉल है। जब पूरी दुनिया भारतीय ज्ञान की ओर आकर्षित हो रही है, तो शायद हमें भी अपनी विरासत की तरफ लौटने का समय आ गया है। क्योंकि अगर हम अपनी पहचान को नहीं संभालेंगे, तो वह धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगी और बचेगा, तो सिर्फ एक इंस्टाग्राम फ्रैंडली वर्ज़न ऑफ योगा, जिसमें हमारी संस्कृति की गहराई कहीं खो चुकी होगी।
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