MDR on UPI: भारत में डिजिटल भुगतान की क्रांति ने पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है। यूपीआई (UPI) और RuPay डेबिट कार्ड के जरिए किए जाने वाले लेन-देन में जबरदस्त इजाफा हुआ है। हर दिन करोड़ों लोग अपनी दैनिक खरीदारी से लेकर बिल भुगतान तक के लिए इन डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं। इस बढ़ती लोकप्रियता का एक बड़ा कारण रहा है – इन भुगतानों पर किसी तरह की फीस (MDR) का न लगना।
लेकिन अब यह स्थिति बदलने वाली है। सरकार UPI और RuPay पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) को फिर से लागू करने पर विचार कर रही है। इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बैंकिंग इंडस्ट्री ने सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें 40 लाख रुपये से अधिक सालाना टर्नओवर वाले व्यापारियों पर MDR फिर से लागू करने की सिफारिश की गई है।
“पिछले तीन सालों से मैं अपने किराने की दुकान पर UPI पेमेंट स्वीकार कर रहा हूं। ग्राहकों को इसकी आदत हो गई है और नकदी लेन-देन कम हो गया है,” कहते हैं दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र के दुकानदार रमेश गुप्ता। “अगर मेरे जैसे छोटे व्यापारियों के लिए इस पर कोई चार्ज नहीं लगेगा, तो यह अच्छी बात है।”
MDR on UPI छोटे व्यापारियों को राहत, बड़े करेंगे भुगतान-
प्रस्तावित नियम के अनुसार, 40 लाख रुपये से कम सालाना टर्नओवर वाले छोटे व्यापारियों पर कोई MDR नहीं लगेगा। इससे देश के लाखों छोटे दुकानदारों और व्यापारियों को राहत मिलेगी, जो अभी डिजिटल भुगतान के लिए कैशलेस इकोनॉमी में योगदान दे रहे हैं।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम एक टियर सिस्टम पर विचार कर रहे हैं, जिसमें व्यापारियों के आकार और टर्नओवर के आधार पर अलग-अलग दरें हो सकती हैं। इससे छोटे व्यापारियों पर बोझ नहीं पड़ेगा और बड़े व्यापारी, जो पहले से ही अन्य डिजिटल भुगतान माध्यमों पर शुल्क दे रहे हैं, वे UPI और RuPay पर भी उचित शुल्क का भुगतान करेंगे।”
बड़े रिटेल चैन के मालिक विवेक सिंह कहते हैं, “हमारे जैसे बड़े व्यापारियों के लिए, जो पहले से ही Visa और Mastercard पर 1-2% MDR दे रहे हैं, UPI पर थोड़ा शुल्क देना कोई बड़ी बात नहीं है। हमारे कुल लेन-देन का 70% से अधिक डिजिटल माध्यमों से होता है।”
MDR on UPI वापस लाने के पीछे के कारण-
सरकार ने 2019 में UPI और RuPay डेबिट कार्ड पर MDR को खत्म कर दिया था, ताकि डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिल सके। उस समय देश में डिजिटल पेमेंट को मेनस्ट्रीम में लाने का प्रयास किया जा रहा था। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है।
वित्तीय विशेषज्ञ प्रदीप शर्मा के अनुसार, “UPI अब देश का सबसे लोकप्रिय भुगतान माध्यम बन चुका है। फरवरी 2025 में 16 अरब UPI लेन-देन हुए, जिनकी कुल राशि लगभग 22 लाख करोड़ रुपये थी। इतनी बड़ी संख्या में लेन-देन की प्रोसेसिंग के लिए बैंकों और पेमेंट कंपनियों को भारी निवेश करना पड़ता है।”
बैंकों और पेमेंट कंपनियों का तर्क है कि जब बड़े व्यापारी Visa, Mastercard और क्रेडिट कार्ड पर पहले से MDR दे रहे हैं, तो UPI और RuPay पर भी इसे लागू किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि बिना MDR के डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम को बनाए रखना लंबे समय तक व्यावहारिक नहीं है।
MDR on UPI पेमेंट इंडस्ट्री की चुनौतियां-
पेमेंट कंपनियां, जिन्हें अब सरकार ने पेमेंट एग्रीगेटर नियमों के तहत रेगुलेट किया है, का कहना है कि उनके ऊपर नियमों को फॉलो करने का खर्च बहुत बढ़ गया है। इन कंपनियों को पेमेंट प्रोसेसिंग, साइबर सुरक्षा, तकनीकी अपग्रेड और ग्राहक सेवा में भारी निवेश करना पड़ता है।
PhonePe के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “हम हर दिन करोड़ों लेन-देन प्रोसेस करते हैं। हमें सिस्टम को 24×7 चालू रखना होता है, किसी भी तरह के फ्रॉड से बचाना होता है, और ग्राहकों को बेहतरीन अनुभव देना होता है। इसके लिए हमें हज़ारों इंजीनियर्स और कस्टमर सपोर्ट स्टाफ रखना पड़ता है। बिना किसी रेवेन्यू स्ट्रीम के यह व्यवसाय टिकाऊ नहीं है।”
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने के लिए बैंकों और फिनटेक कंपनियों को 3,500 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी। लेकिन चालू वित्त वर्ष में इसे घटाकर सिर्फ 437 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इससे पेमेंट कंपनियों पर आर्थिक दबाव और बढ़ गया है।
MDR on UPI क्या है और यह क्यों लगता है?
MDR (मर्चेंट डिस्काउंट रेट) वह फीस है जो दुकानदार रियल टाइम में पेमेंट स्वीकार करने की सुविधा के बदले देते हैं। जब कोई ग्राहक UPI या डेबिट कार्ड से भुगतान करता है, तो बैंक और पेमेंट कंपनियों को इसकी प्रोसेसिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्च उठाना पड़ता है। इसमें सर्वर, नेटवर्क, सुरक्षा प्रणाली और कई अन्य तकनीकी पहलू शामिल हैं।
“MDR एक तरह का सर्विस चार्ज है,” बताते हैं फिनटेक कंसल्टेंट अमित सिंघल। “जैसे आप बिजली, पानी या इंटरनेट सेवाओं के लिए बिल चुकाते हैं, वैसे ही डिजिटल पेमेंट सेवाओं के लिए भी एक तय शुल्क होना चाहिए। इसके बिना, कोई भी व्यवसाय लंबे समय तक नहीं चल सकता।”
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में MDR आमतौर पर 1% से 3% के बीच होता है। भारत में यह दर अपेक्षाकृत कम रही है, और प्रस्तावित संशोधनों में भी इसे उचित स्तर पर रखने की बात की जा रही है।
ग्राहकों और छोटे व्यापारियों पर क्या होगा असर?
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि MDR की वापसी का ग्राहकों पर सीधा असर नहीं पड़ेगा। यह शुल्क व्यापारियों से लिया जाएगा, न कि ग्राहकों से। 40 लाख रुपये से कम टर्नओवर वाले छोटे व्यापारियों को भी इससे छूट दी जाएगी।
“अधिकांश छोटे दुकानदारों और व्यापारियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वे बिना किसी अतिरिक्त लागत के UPI और RuPay पेमेंट स्वीकार करते रहेंगे,” कहते हैं भारतीय रिटेल एसोसिएशन के प्रवक्ता मनोज कुमार। “इससे देश में डिजिटल पेमेंट की स्वीकार्यता और बढ़ेगी।”
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े व्यापारी MDR के बोझ को ग्राहकों पर स्थानांतरित कर सकते हैं, जिससे कुछ प्रोडक्ट्स या सर्विसेज की कीमतें बढ़ सकती हैं। लेकिन प्रतिस्पर्धी बाजार में ऐसा करना उनके लिए मुश्किल होगा।
डिजिटल पेमेंट का भविष्य-
MDR की वापसी के बावजूद, भारत में डिजिटल पेमेंट का भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है। UPI और RuPay ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है। सरकार का लक्ष्य है कि 2026 तक डिजिटल लेन-देन की संख्या तीन गुना बढ़कर 200 अरब प्रति वर्ष हो जाए। इसके लिए पेमेंट इकोसिस्टम को मजबूत और टिकाऊ बनाना जरूरी है।
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“MDR की वापसी एक संतुलित निर्णय है,” कहते हैं डिजिटल पेमेंट विशेषज्ञ राहुल मेहता। “इससे छोटे व्यापारियों को प्रोत्साहन मिलता रहेगा, और साथ ही पेमेंट इकोसिस्टम के विकास के लिए आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध होंगे। यह एक win-win स्थिति है।” सरकारी सूत्रों के अनुसार, MDR पर अंतिम निर्णय आने वाले कुछ महीनों में लिया जा सकता है। तब तक, डिजिटल पेमेंट का जश्न बिना किसी अतिरिक्त लागत के जारी रहेगा।
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