Nepal Protest: नेपाल इस वक्त हिंसा की आग में झुलस रहा है। राजशाही की बहाली की मांग को लेकर देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है। हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं और स्थिति तेजी से बिगड़ती जा रही है। हालात ऐसे हो गए हैं, जैसे पिछले साल बांग्लादेश में देखने को मिले थे। कल यानी शुक्रवार को काठमांडू में राजशाही समर्थकों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़प हो गई, जिसमें एक पत्रकार समेत दो लोगों की मौत हो गई और 30 से ज्यादा लोग घायल हुए।
Nepal Protest हिंसक प्रदर्शन और सरकार की प्रतिक्रिया-
काठमांडू के कई इलाकों – तिनकुने, सिनामंगल और कोटेश्वर में कर्फ्यू लगा दिया गया है। हिंसक प्रदर्शन को काबू में करने के लिए सरकार को सेना की मदद लेनी पड़ी है। सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले भी दागे, लेकिन स्थिति अब भी तनावपूर्ण बनी हुई है। “हमारी आवाज को दबाया नहीं जा सकता। हम तब तक सड़कों पर रहेंगे जब तक राजा वापस नहीं आते,” कहते हैं 32 वर्षीय प्रदर्शनकारी सुरेश तामांग, जो काठमांडू के बाहरी इलाके से आए हैं।
Aiyaaa Turkeys' protests are one-of-a-kind—bold, creative and oddly entertaining!
After all, why break things when you can break the internet instead? 🦃🔥
Protest should disrupt the system,not the public! (NEPAL,take notes!) https://t.co/xch5ZIb4Nb
— Shailyyy (@shailykoshaily) March 29, 2025
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस हिंसक प्रदर्शन को लेकर कैबिनेट की इमरजेंसी बैठक बुलाई। उन्होंने हिंसा के लिए आयोजकों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि कानून का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। “हम शांतिपूर्ण विरोध का सम्मान करते हैं, लेकिन हिंसा और अराजकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी,” प्रधानमंत्री ओली ने कहा।
Nepal Protest नेपाल में राजशाही की बहाली की मांग क्यों उठ रही है?
नेपाल में 2008 में 240 साल पुरानी राजशाही का अंत हुआ था। तब से लेकर अब तक, देश में 13 अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं, जो राजनीतिक अस्थिरता का सबूत है। नेपाली जनता इन सरकारों से हताश और निराश हो चुकी है। लोग लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार, आर्थिक संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता से परेशान हैं।
नेपाल के अर्थशास्त्री डॉ. रमेश श्रेष्ठ कहते हैं, “पिछले 15 सालों में देश का आर्थिक विकास धीमा रहा है। महंगाई बढ़ी है, रोजगार के अवसर कम हुए हैं, और युवा बड़ी संख्या में विदेश पलायन कर रहे हैं। यह सब सरकारों की विफलता का परिणाम है।” यही वजह है कि नेपाल में एक बार फिर से राजशाही की वापसी की मांग उठने लगी है। राजशाही समर्थक नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की बहाली की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि राजशाही ही देश को अस्थिरता और भ्रष्टाचार से बाहर निकाल सकती है।
Nepal Protest राजशाही समर्थकों की बढ़ती आवाज-
राजशाही समर्थक राजेंद्र बहादुर खाती का कहना है, “हमें देश में राजशाही की वापसी और राजा की वापसी की जरूरत है, क्योंकि राजनीतिक दल और व्यवस्था पूरी तरह से विफल हो गई है। 15 सालों में हमने देखा है कि लोकतंत्र के नाम पर केवल भ्रष्टाचार और कुशासन ही बढ़ा है।”
हजारों राजभक्त नेपाली राष्ट्रीय ध्वज और ज्ञानेंद्र शाह की तस्वीरें लेकर सड़कों पर उतरे हैं। वे “राजा आओ देश बचाओ”, “भ्रष्ट सरकार मुर्दाबाद” जैसे नारे लगा रहे हैं। यह आंदोलन तब और तेज हो गया, जब नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने 19 फरवरी को लोकतंत्र दिवस पर एक संदेश जारी करके अपने समर्थकों से उनके पीछे एकजुट होने का आग्रह किया।
उसके बाद से राजशाही समर्थकों ने कई प्रदर्शन किए हैं, जिनमें 9 मार्च को एक बड़ी रैली भी शामिल है। जब शाह नेपाल भर में धार्मिक यात्राओं से लौटे थे, तब हजारों समर्थकों ने त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के एंट्री गेट को अवरुद्ध कर दिया था, जिससे हवाई परिचालन बाधित हुआ था।
लोकतांत्रिक शक्तियों की प्रतिक्रिया-
राजशाही की बहाली की मांग के विरोध में नेपाल के लोकतांत्रिक दल और नागरिक समाज के लोग भी सक्रिय हो गए हैं। नेपाली कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री गगन थापा का कहना है, “राजशाही हमारे देश के लिए पीछे की ओर कदम होगा। हमने बड़े संघर्ष के बाद लोकतंत्र हासिल किया है, और हम इसे खोने नहीं देंगे।”
नागरिक समाज की नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता सुशीला कार्की कहती हैं, “लोकतंत्र में समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन इसका समाधान राजशाही की वापसी नहीं है। हमें अपने लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करना होगा, न कि उन्हें खत्म करना।”
क्या नेपाल बांग्लादेश के रास्ते पर है?
नेपाल की मौजूदा स्थिति करीब-करीब बांग्लादेश के हालिया घटनाक्रम से मिलती-जुलती दिखाई दे रही है। बांग्लादेश में भी सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें कई लोगों की जान गई थी। वहां के हालात इतने खराब हो गए थे कि अंततः शेख हसीना की सरकार को सत्ता छोड़नी पड़ी थी।
राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद जोशी के अनुसार, “अभी नेपाल की स्थिति बांग्लादेश जैसी गंभीर नहीं है, लेकिन अगर सरकार ने जनता के असंतोष को संबोधित नहीं किया, तो हालात और बिगड़ सकते हैं। नेपाल की अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर है, और कोविड महामारी ने इसे और कमजोर कर दिया है।” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन नेपाल और बांग्लादेश में एक बड़ा अंतर यह है कि नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग है, जबकि बांग्लादेश में एक मौजूदा सरकार के खिलाफ विरोध था।”
सोशल मीडिया पर बढ़ता आंदोलन-
विरोध प्रदर्शन सिर्फ सड़कों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी राजशाही समर्थकों की आवाज तेजी से बुलंद हो रही है। फेसबुक, ट्विटर और टिकटॉक पर #BringBackMonarchy, #KingGyanendra और #SaveNepal जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। युवा राजशाही समर्थक अनीता गुरुंग कहती हैं, “हम सोशल मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि हम क्यों राजशाही की वापसी चाहते हैं। हम अपनी आवाज दबाने नहीं देंगे।”
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया-
नेपाल में बढ़ती हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी चिंता व्यक्त की है। भारत, चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों के दूतावासों ने अपने नागरिकों को नेपाल में सतर्क रहने की सलाह दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “हम नेपाल में हो रही घटनाओं पर करीब से नजर रख रहे हैं। हम चाहते हैं कि वहां शांति और स्थिरता बनी रहे। नेपाल हमारा पड़ोसी और महत्वपूर्ण मित्र है।” चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, “हम नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, लेकिन हम चाहते हैं कि वहां के लोग अपने मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएं।
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