इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बलात्कार के आरोपी को जमानत दे दी और कहा कि पीड़िता ने “खुद मुसीबत को बुलाया है” और वो इसके लिए जिम्मेदार भी है। ये मामला दिल्ली का है, जहां एक पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट ने दावा किया कि सितंबर 2024 में उसके साथ रेप हुआ था। कोर्ट के इस फैसले ने लोगों के दिलों में गुस्सा और सवाल पैदा कर दिए हैं। आखिर एक पढ़ी-लिखी लड़की की बात को इस तरह क्यों नजरअंदाज किया गया? क्या सच में वो अपनी गलती की सजा भुगत रही है, या सिस्टम में कुछ गड़बड़ है? चलिए इस खबर को समझते हैं।
क्या हुआ था उस रात?
सितंबर 2024 की एक रात, नोएडा की एक यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट अपनी तीन सहेलियों के साथ दिल्ली के हौज खास में एक बार गई थी। वहां उसकी मुलाकात कुछ लड़कों से हुई, जिनमें आरोपी भी शामिल था। लड़की का कहना है कि रात 3 बजे तक शराब पीने के बाद वो नशे में थी। आरोपी ने उसे बार-बार अपने घर चलने के लिए कहा। थकान और नशे की हालत में उसने हां कर दी, ये सोचकर कि वो वहां आराम कर लेगी। लेकिन जो हुआ, वो उसकी जिंदगी का सबसे बुरा सपना बन गया।
उसने पुलिस को बताया कि रास्ते में आरोपी ने उसे गलत तरीके से छुआ। वो उसे नोएडा के अपने घर ले जाने की बात कर रहा था, लेकिन इसके बजाय गुड़गांव में अपने रिश्तेदार के फ्लैट पर ले गया। वहां उसने कथित तौर पर उसके साथ रेप किया। दिसंबर 2024 में आरोपी को अरेस्ट कर लिया गया। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी।
जस्टिस संजय कुमार सिंह ने कहा, “अगर पीड़िता की बात को सच मान भी लिया जाए, तो ये भी कहा जा सकता है कि उसने खुद मुसीबत बुलाई और इसके लिए वो जिम्मेदार है।” कोर्ट ने ये भी नोट किया कि वो एक पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट है, जो mature और समझदार है। उसे अपने फैसलों की नैतिकता समझनी चाहिए थी। मेडिकल रिपोर्ट में उसका हायमन टूटा हुआ मिला, लेकिन डॉक्टर ने रेप की पुष्टि नहीं की।
ये भी पढ़ें- एयर इंडिया एक्सप्रेस के युवा पायलट की लैंडिंग के बाद मौत: कार्डियक अरेस्ट ने क्यों ली जान?
कोर्ट का फैसला: “वो खुद जिम्मेदार है”–
आरोपी ने अपनी जमानत में दावा किया कि लड़की अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी और ये consensual (सहमति से) सेक्स था। कोर्ट ने इस तर्क को वजन दिया और उसे जमानत दे दी। लेकिन सवाल ये है – क्या नशे में एक लड़की सचमुच सही फैसला ले सकती है? क्या उसे बार-बार कहना मजबूरी नहीं थी?
क्यों हो रहा है विवाद?
ये पहली बार नहीं है जब इलाहाबाद हाई कोर्ट का कोई फैसला चर्चा में आया हो। कुछ दिन पहले ही कोर्ट ने कहा था कि 11-12 साल की बच्ची के साथ छेड़छाड़, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ना, और उसे घसीटने की कोशिश रेप या रेप की कोशिश नहीं है। इसे “अग्रवेटेड सेक्सुअल असॉल्ट” माना गया। इस फैसले पर इतना हंगामा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और उसने उस ऑर्डर को स्टे कर दिया।
अब इस नए फैसले ने फिर से बहस छेड़ दी है। एक्स (ट्विटर) पर लोग गुस्से में हैं। एक यूजर ने लिखा, “ये कैसा जस्टिस है जो पीड़िता को ही दोषी ठहरा देता है?” (ट्विटर लिंक)। कई लोगों का कहना है कि कोर्ट का रवैया महिलाओं के खिलाफ दिखाता है। क्या सिस्टम सचमुच पीड़ितों के साथ खड़ा है, या अपराधियों को बचाने में लगा है?
ये भी पढ़ें- दिल्ली की नई EV पॉलिसी 2.0: सीएनजी ऑटो से लेकर पेट्रोल बाईक तक, सब होगा 2027 तक बैन! कार वालों…
क्या कहते हैं सोर्सेज?
वेब पर कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये मामला इतना साधारण नहीं है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, लड़की ने कहा कि वो नशे में थी और उसे ठीक से समझ नहीं आ रहा था। मेडिकल एक्सपर्ट्स कहते हैं कि नशे की हालत में सहमति देना कानूनी तौर पर वैलिड नहीं माना जाता। लेकिन कोर्ट ने इसे नजरअंदाज कर दिया। वहीं, आरोपी का कहना है कि लड़की को सपोर्ट की जरूरत थी, इसलिए वो उसे अपने साथ ले गया।
कई न्यूज पोर्टल्स ने लिखा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के हालिया फैसलों से लोग भरोसा खो रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई केस सामने आए हैं, जहां पीड़िता की बात को हल्के में लिया गया। क्या ये एक नया पैटर्न है?