बीते हफ्ते ग्लोबल मार्केट में हाहाकार मच गया। “टैरिफ वॉर”, “ग्लोबल मार्केट क्रैश” और “ट्रेड वॉर” जैसे शब्द हर न्यूज चैनल और अखबार की सुर्खियों में छाए रहे। 2 अप्रैल को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ बढ़ाने का ऐलान किया, जिसके बाद 7 अप्रैल को वॉल स्ट्रीट से लेकर एशियन मार्केट तक धड़ाम से गिरे। लेकिन इन सबके बीच भारत ने कुछ अलग रास्ता चुना। जहां चीन ने टैरिफ के जवाब में टैरिफ बढ़ाए, वहीं भारत ने ना तो ज्यादा शोर मचाया और ना ही जवाबी कार्रवाई की। आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी? क्यों भारत इतना शांत है, जबकि अमेरिका ने भारत पर भी 26% टैरिफ लगाया? चलिए, इस खबर को आसान और दिलचस्प तरीके से समझते हैं।
मार्केट में हंगामा, लेकिन भारत क्यों ठीक-ठाक?
7 अप्रैल को जब ग्लोबल मार्केट्स में कोहराम मचा, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) भी 3,000 पॉइंट्स से ज्यादा लुढ़क गया। लेकिन दिन खत्म होते-होते BSE सिर्फ 2,226 पॉइंट्स नीचे बंद हुआ। निफ्टी 50 भी 742 पॉइंट्स गिरकर 22,161 पर आया। अब ये तो मानना पड़ेगा कि भारत का नुकसान बाकी देशों की तुलना में कम रहा। मिसाल के तौर पर, चीन का शंघाई कम्पोजिट 7.3% गिरा, हॉन्गकॉन्ग का हैंग सेंग 13.2% क्रैश हुआ (2008 के बाद सबसे बड़ा नुकसान!), और जापान का निक्केई 7.8% नीचे आया। ताइवान, ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया—सबकी हालत खराब थी। लेकिन भारत ने जल्दी रिकवरी दिखाई। 9 अप्रैल को BSE सेंसेक्स 1,089 पॉइंट्स चढ़ा और 11 अप्रैल को निफ्टी और सेंसेक्स ने 1,100 पॉइंट्स से ज्यादा की उछाल मारी।
तो सवाल ये है—भारत इतना चिल क्यों है? जवाब है: स्मार्ट स्ट्रैटेजी और थोड़ा डिप्लोमैटिक दिमाग।
ट्रंप का टैरिफ ड्रामा और भारत का कूल रिस्पॉन्स-
ट्रंप ने फरवरी में शुरू किए टैरिफ वॉर को अप्रैल तक और गर्म कर दिया। अमेरिका ने चीन पर 145% टैरिफ ठोके, और चीन ने भी 125% के काउंटर-टैरिफ के साथ जवाब दिया। लेकिन भारत पर टैरिफ सिर्फ 26% था, जो बाकी बड़े देशों से कम है। और तो और, ट्रंप ने 90 दिन के लिए टैरिफ पॉज करने का ऐलान किया, जिसके बाद भारत को सिर्फ 10% बेसलाइन टैरिफ देना पड़ रहा है। ये तो मानो भारत के लिए राहत की सांस थी!
भारत ने जवाबी टैरिफ लगाने की बजाय बातचीत का रास्ता चुना। ट्रंप की ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव जेम्सन ग्रीर ने सीनेट फाइनेंस कमेटी में बताया कि भारत उन देशों में है जो टैरिफ और नॉन-टैरिफ बैरियर्स को कम करने को तैयार हैं। अर्जेंटीना, वियतनाम और इजराइल भी इस लिस्ट में हैं। ग्रीर ने कहा, “करीब 50 देशों ने ट्रंप की नई पॉलिसी पर बात करने के लिए मुझसे कॉन्टैक्ट किया। भारत उनमें से एक है, जो ट्रेड में ‘रेसिप्रॉसिटी’ के लिए तैयार है।”
भारत की चुप्पी के पीछे का लॉजिक-
तो भारत इतना शांत क्यों है? क्या ये कमजोरी है या स्ट्रैटेजी? एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत की इकॉनमी ग्लोबल सप्लाई चेन्स पर ज्यादा डिपेंडेंट नहीं है। यानी, हमारा घरेलू मार्केट इतना मजबूत है कि ट्रंप के टैरिफ का असर बाकी देशों जितना नहीं हुआ। दूसरा, भारत और अमेरिका के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन्स पिछले कुछ सालों में काफी स्ट्रॉन्ग हुए हैं। ट्रंप ने भी भारत को थोड़ा स्पेशल ट्रीटमेंट दिया है, शायद इसलिए कि वो भारत को चीन के खिलाफ एक स्ट्रैटेजिक पार्टनर के तौर पर देखते हैं।
वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी को “डील करने योग्य” माना है। भारत के कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल ने भी साफ कहा, “हम भारत के हितों को सबसे ऊपर रख रहे हैं।” 7 अप्रैल को अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट मार्को रुबियो और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के बीच टैरिफ इश्यू पर बात हुई। अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की स्पोक्सपर्सन टैमी ब्रूस ने बताया कि दोनों देश “फेयर और बैलेंस्ड ट्रेड रिलेशनशिप” की दिशा में काम कर रहे हैं।
भारत के लिए मौका भी, चुनौती भी-
ट्रंप के टैरिफ और अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर ने भारत के लिए एक बड़ा मौका खड़ा किया है। यूरोपियन यूनियन (EU) जैसे देश अब नए ट्रेड पार्टनर्स ढूंढ रहे हैं, और भारत उनकी लिस्ट में टॉप पर है। इकॉनमिस्ट्स का कहना है कि अगर भारत अपने टैरिफ कम करे, एक्सपोर्ट को और कॉम्पिटिटिव बनाए, तो गारमेंट्स, टेक्सटाइल्स और टॉय जैसे सेक्टर्स में MSMEs को बड़ा फायदा हो सकता है।
लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ट्रंप टैरिफ फिर से बढ़ाते हैं, तो भारत को अमेरिका में $7.76 बिलियन के एक्सपोर्ट का नुकसान हो सकता है। हमारा फार्मा सेक्टर, जो अमेरिका को $12.2 बिलियन की दवाइयां एक्सपोर्ट करता है, अभी तक टैरिफ से बचा हुआ है। लेकिन ट्रंप ने हिंट दिया है कि फार्मा पर भी ड्यूटी बढ़ सकती है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री, जो भारत के कुल अमेरिकी एक्सपोर्ट का 3% हिस्सा है, भी मुश्किल में पड़ सकती है।
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भारत की स्मार्ट मूव्स और फ्यूचर प्लान-
भारत ने टैरिफ शॉक को हैंडल करने के लिए कुछ स्मार्ट कदम उठाए हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने 25 बेसिस पॉइंट्स की रेट कट की, जिससे इंटरेस्ट रेट 6% हो गया। इसका मकसद है कंजम्पशन डिमांड को बूस्ट करना। फाइनेंस मिनिस्ट्री के एक अनाम ऑफिशियल ने CNBC को बताया कि भारत अभी भी FY 2025-26 के लिए 6.3% से 6.8% GDP ग्रोथ के टारगेट पर है। यानी, ट्रंप के टैरिफ का असर हमारी इकॉनमी पर उतना बड़ा नहीं हुआ।
लेकिन सवाल ये है—क्या भारत की ये चुप्पी लंबे वक्त तक काम करेगी? न्यूयॉर्क टाइम्स की एक एनालिसिस में कहा गया कि भारत की डिप्लोमैटिक अप्रोच शायद इसलिए काम कर रही है क्योंकि अमेरिका भारत को एक “काउंटर-चाइना” फोर्स के तौर पर देखता है। लेकिन अगर ट्रंप की पॉलिसी और सख्त होती है, तो भारत को भी जवाबी कदम उठाने पड़ सकते हैं।
जंग अभी नहीं हुई खत्म-
ट्रंप के टैरिफ ने जहां दुनिया को हिलाकर रख दिया, वहीं भारत ने अपनी समझदारी और डिप्लोमेसी से खुद को ज्यादा नुकसान से बचा लिया। लेकिन ये जंग अभी खत्म नहीं हुई है। भारत को अपने एक्सपोर्ट को और मजबूत करना होगा, खासकर उन सेक्टर्स में जो ग्लोबल मार्केट में बड़ा मौका दे सकते हैं। क्या भारत इस मौके को भुना पाएगा, या टैरिफ की अगली लहर में फंस जाएगा? ये तो वक्त ही बताएगा।