जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (RLD) में हाल ही में कई गुर्जर नेता शामिल हुए हैं, इससे पहले उनकी पार्टी में कई कद्दावर गुर्जर नेता, जैसे मलूक नागर, चंदन चौहान, और मदन भैया जुड़े हुए हैं। मलूक नागर बिजनौर से पूर्व सांसद हैं और फिलहाल आरएलडी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। चंदन चौहान आरएलडी के मौजूदा बिजनौर से सांसद हैं। वहीं मदन भैया खतौली से आरएलडी के मौजूदा विधायक हैं। गुर्जर समाज का बड़े स्तर पर आरएलडी की तरफ झुकाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश (UP) की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को ला सकता है, जहां जातीय और क्षेत्रीय समीकरण चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं। इस प्रयोग से बीजेपी सहित सपा-बसपा जैसी पार्टियों का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समीकरण बिगड़ सकता है।
गुर्जर नेताओं के RLD में शामिल होने के पीछे के समीकरण-
गुर्जर समुदाय पश्चिमी UP में एक बड़ा और प्रभावशाली वोट बैंक है, लेकिन राजनीतिक तौर पर उन्हें हमेशा उनकी संख्या के अनुसार स्थान नहीं मिला है। RLD, जो मुख्यता जाट समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है, ने हाल के वर्षों में गुर्जर नेताओं को अपने साथ जोड़कर एक मजबूत गठजोड़ बनाने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए, मलूक नागर, जो पहले BSP में थे, ने टिकट न मिलने के बाद RLD ज्वाइन किया (The Hindu). उनका कहना है कि RLD उन्हें किसानों और गुर्जर समुदाय के लिए बेहतर तरीके से लड़ने का मौका देगी।
यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि RLD ने हाल ही में BJP के साथ गठबंधन किया है, जो पूर्व प्रधानमंत्री एंव किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाज कर RLD को अपने पक्ष में करने में सफल रही (Outlook India)। यह गठबंधन RLD को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन देता है, जो विकास परियोजनाओं और राजनीतिक सौदेबाजी में मददगार हो सकता है। गुर्जर नेताओं के लिए, RLD में शामिल होने से उन्हें एक ऐसा मंच मिलता है, जहां वो अपने समाज के मुद्दे राष्ट्रीय मंच पर उठा सकते हैं।
Jat-Gurjar Alliance: एक ऐतिहासिक और रणनीतिक गठबंधन-
पश्चिमी UP में जाट और गुर्जर दोनों ही खेती करने वाली कौम हैं, अगर इनका वोट किसी एक पार्टी को एकशुमत मिल जाए तो वो पार्टी अपना राज इस इलाके में बड़ी आसानी से कायम कर सकती है। अभी तक आरएलडी सिर्फ जाट और मुस्लमानों के वोट एकजुट करने में सफल रही थी, लेकिन अब इसमें गुर्जरों को जोड़ने का एतिहासिक प्रयास किया जा रहा है। 2022 के विधानसभा चुनावों में SP-RLD के गठबंधन ने इस समीकरण का काफी हद तक फायदा उठाया था (Deccan Herald)। जाट और गुर्जर समाज के बीच लंबे समय से मतभेद रहे हैं, लेकिन हालिया किसान आंदोलन ने इन जातियों को एक जगह लाकर खड़ा कर दिया है।
RLD के लिए, यह गठबंधन न केवल वोट बैंक बढ़ाता है, बल्कि SP और BSP जैसी राजनीतिक पार्टियों को चुनौती भी पेश करता है। 2024 Lok Sabha elections में RLD की जीत, खासकर बागपत और बिजनौर में इन जातियों के समिकरण को भी दिखाती है। (Times of India)।
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आरएलडी के साथ नहीं होंगे मुस्लमान-
पश्चिमी UP की राजनीति एक जटिल राजनीति में आती है, जहां जाट, गुर्जर एंव मुस्लिम समुदाय अपनी अहम भूमिका निभाता है। गुर्जरों का आरएलडी के साथ आना एसपी और बीएसपी के राजनीतिक समीकरण को खराब करता है। ये समीकरण राष्ट्रीय राजनीति पर भी प्रभाव डालेगा। आरएलडी के बीजेपी के साथ आने के कारण माना जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय उससे दूरी बना रहा है इसलिए उससे जिंदा रहने के लिए किसी अन्य समुदाय की जरुरत थी जो गुर्जरों के रुप में सामने आ रहा है।
तुलनात्मक विश्लेषण: प्रमुख समुदाय और उनकी भूमिका-
नीचे दी गई तालिका में पश्चिमी UP के प्रमुख समुदायों और उनकी राजनीतिक भूमिका का तुलनात्मक विश्लेषण है:
समुदाय | अनुमानित वोट शेयर | मुख्य पार्टी/गठबंधन | राजनीतिक भूमिका |
---|---|---|---|
जाट | 15-20% | RLD, BJP | किसान आंदोलन, क्षेत्रीय प्रभाव |
गुर्जर | 10-15% | RLD, BSP (पहले) | हालिया RLD शिफ्ट, वोट बैंक मजबूती |
मुस्लिम | 20-25% | SP, BSP | निर्णायक वोट, गठबंधन प्रभाव |
अन्य OBC | 30-35% | SP, BJP | क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव |
यह तालिका दिखाती है कि जाट और गुर्जर का गठबंधन RLD को एक मजबूत स्थिति दे सकता है, लेकिन मुस्लिम वोटर्स की भूमिका भी अहम रहेगी।