स्कंद पुराण के केदारखंड में फूलों की घाटी को नंदनकानन के नाम से वर्णित किया गया है। वहीं, महान कवि कालिदास ने अपनी कृति मेघदूत में इस घाटी को अलका के रूप में चित्रित किया है। फूलों की घाटी की खोज सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ ने 1931 में की थी। फ्रैंक और उनके साथी होल्डसवर्थ ने मिलकर इस घाटी को खोजा, जिसके बाद यह स्थल प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र बन गया। 2025 में चार धाम यात्रा के प्रारंभ होने के साथ ही चमोली जिले में स्थित विश्वप्रसिद्ध फूलों की घाटी पर्यटकों के लिए पुनः खोल दी गई है।
फूलों की घाटी की खासियत
घाटी को इसकी विविध और रंग-बिरंगी जंगली फूलों की वजह से “फूलों की घाटी” कहा जाता है। यहाँ हज़ारों प्रकार के दुर्लभ और खूबसूरत फूलों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें कुछ केवल यहीं मिलती हैं। इस घाटी में एरियलिया, नीलकमल, कस्तूरी, गुलमोहर, लिली जैसे फूलों की भरमार होती है।
फूलों की घाटी कैसे पहुँचें?
घाटी तक पहुँचने के लिए मुख्य रूप से उत्तराखंड के चमोली जिले के गौचर नगर से शुरू होने वाला ट्रेक करना पड़ता है। यहाँ से करीब 34 किलोमीटर का ट्रेक फूलों की घाटी तक जाता है, जो आमतौर पर 5-6 दिन में पूरा किया जाता है। ट्रेकिंग के दौरान पर्यटक हिमालय की ताजी हवा, गहरी घाटियाँ, जलप्रपात और घने जंगलों का आनंद लेते हैं।
यात्रा का सही समय
घाटी का दौरा करने का सबसे अच्छा समय जून से सितंबर तक का माना जाता है, जब यहाँ का मौसम सुहावना होता है और फूल अपनी पूरी बहार पर होते हैं। बरसात के समय यहां का वातावरण और भी रोमांचक और खूबसूरत हो जाता है, लेकिन ट्रेकिंग के लिए सावधानी बरतनी जरूरी होती है।
ये भी पढ़ें- मानसूनी बारिश बनी आफत , पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ का कहर