जैसे कि आपको मीडिया के विभिन्न माध्यमों से पता चल ही गया होगा कि जैन मुनी तरुण सागर महाराज अब हमारे बीच नहीं रहे। जानकारी के अनुसार वो संथार प्रथा का पालन कर रहे थे और इस दौरान वो दवाई तो क्या अन्न भी ग्रहण नहीं कर रहे थे। कुछ साल पहले इस प्रथा पर विवाद भी उठा था और इसपर कानून बनाने की बात कही गई थी। लेकिन जैनीयों के अनुसार ये उनके धर्म में है और इससे मोक्ष की प्राप्ती होती है।
खैर इन सब बातों को अभी के लिए छोड देना चाहिए। तरुण सागर महाराज सिर्फ अपने धर्म में ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में अपने कडवे वचनों के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने 51 वर्ष की उम्र में दिल्ली के शाहदरा में अंतिम सांस ली। प्राप्त जाकारी के अनुसार उन्होंने समाधी ले ली है। यही उनकी इच्छा भी थी। उन्हें कैंसर भी था ऐसा भी बताया जा रहा है और पीलिया होने पर उनके शरीर में खून की कमी हो गई थी। तब उन्होंने समाधी लेने का फैसला किया और अन्न त्याग दिया। तरुण सागर जी सिर्फ एक मुनि ही नहीं थे वो हमारे समाज के सुधारक के रुप में भी काम कर थे।
क्या है कडवे वचन-
तरुण सागर महाराज जी समाज में व्यापत बुराईयों पर कडा प्रहार करते थे। जिन्हें कडवे वचन के रुप में जाना जाता है। कडवे वचनों को ऐसे भी समझा जा सकता है कि किसी को जो कहना साफ कहना। गलत को खुलकर गलत कहना। अपनी इसी विशेषता के लिए तरुण सागर महाराज जाने जाते थे।
तरुण सागर महाराज का मानना था कि मेरे वचनों से किसी को बुरा लगता है तो वो उससे माफी मांग लेंगे लेकिन जब मुनी तरुण सागर कहने के लिए बैठते हैं तो किसी को नहीं बक्शते। यही उनका अंदाज था।
नग्न क्यों रहते हैं जैन मुनि-
जैन धर्म में कहा जाता है कि मुनी दिगंबर रहता है। मुनी वो होता है जो समाज की नंगता को ढकने के लिए अपने वस्त्र उतार कर फेंक देता है। जैन मुनियों के अनुसार शरीर पर कपडा अपने विकारों को छुपाने के लिए पहना जाता है। दिगंबर मुनी अविकार है इसलिए उसे वस्त्र की कोई जरुरत नहीं है। उनके अनुसार वो नंगा नहीं होते दिगंबर हैं। दिगंबर और नांगे में बहुत अंतर होता है। जो नांगे होते हैं वो भोगी और विनाशी होते हैं और दिगंबर वो है जिसने दिशाओं को अंबर यानी वस्त्र बना लिया है।
देखिए दिगंबर साधु और जैन मुनी एक ही बात है इसमें कन्फयूज मत होना। मुनी तरुण सागर के ही अनुसार दिगंबर मुनि वो होता है जिसके पैरों में जूता नहीं, सर पर छाता नहीं, बैंक में खाता नहीं, परिवार से नाता नहीं, जिसके तन पर कपडे नहीं, जिसके मन में लफडे नहीं, जिसके वचन में झगडे नहीं, जीवन में कोई लफडे नही, जिसका कोई घर नहीं, जिसे कोई डर नहीं, जिसके संग बीवी नहीं, जिसके साथ टीवी नहीं, उसे कहते हैं दिगंबर मुनी।
मोर पंख उन छोटे जीवों की रक्षा के लिए होते हैं जो आंखों से दिखाई नहीं देते। दिगंबर मुनि बैठने से पहले अपने आसन पर मोर पंख को उस आसन पर फेरते हैं जहां उन्हें बैठना है। ताकी उनके द्वारा किसी जीव की हत्य या कष्ट न हो। लेकिन कुछ लोग समझते हैं कि जैन मुनि इसे तन ढकने के लिए अपने साथ रखते हैं।
हमें लगता है आज के लिए इतना ज्ञान बहुत है, अब जाते जाते अधिक ज्ञान की प्राप्ती के लिए मुनि तरुण सागर महाराज के ये कडवे वचन सुन लीजिए और यकीं मानीए आपको ये कडवे वचन कडवे नहीं मीठे ही बनाएंगे-
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