विज्ञान में भी काफी अजीब सवाल होते हैं कई बार तो यह सवाल इतने अजीब होते हैं जिनके जवाब को ढूंढने में भी विज्ञान की खोज में जाती है। वही कहते हैं कि सवाल कभी गलत नहीं होते उनके पूछने का समय, तरीका और उस स्थान गड़बड़ हो सकते हैं। ऐसा ही एक सवाल जिसका वैज्ञानिक जवाब हो सकता है कि क्या होता अगर चंद्रमा ही नहीं होता, ऐसे में हमारे जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता, हमारा जीवन कैसा होता, आज से वह कितना अलग होता है या फिर आज की दुनिया कैसी होती, आइए जानते हैं इसके बारे में विज्ञान का क्या कहना है।
रात हमेशा तारों वाली-
ऊपरी तौर पर अगर चंद्रमा नहीं होता तो ज्यादा कुछ अलग नहीं होता, रात हमेशा तारों वाली होती। चंद्रमा हम बचपन से देखते आ रहे हैं और उसके बारे में बुजुर्गों से सुनते भी आ रहे हैं, उनके संबंधित कहानियां हमें सुनने को मिली और सौंदर्य पर लिखी कविताओं में चांद की कभी उपमा ही नहीं दी जाती. लेकिन यह सोचना बहुत ही गलत होगा कि इसके अलावा किसी तरह का कोई अंतर नहीं होता।
वैज्ञानिक मान्यताओं के मुताबिक-
पृथ्वी के बनने के करीब 3 करोड़ साल बाद चंद्रमा का निर्माण हुआ, वैज्ञानिक मान्यताओं के मुताबिक उस दौरान एक विशाल ग्रह जैसा एक पिंड पृथ्वी से टकराया था, जिससे पृथ्वी के मेटल का एक हिस्सा पृथ्वी से अलग होकर चंद्रमा बन गया। उसके 110 साल बाद चंद्रमा की भूगर्भीय गतिविधि भी बंद हो गई थी।
चद्रमा का ज्वारीय प्रभाव-
चंद्रमा के गायब होने या ना होने से एक यही असर होता है कि चंद्रमा का ज्वारीय प्रभाव नहीं होता, यानी हमारे समुद्र में ज्वार भाटा नहीं आते और समुद्र महासागरों में ऊंची ऊंची लहरे दिखाई नहीं देती। वह सिर्फ तूफानों और तेज हवाओं के समय ही होती, लेकिन खगोलीय बल के मामलों में पृथ्वी प्रभाव में ही रहती।
दिनों की लंबाई कुछ कम-
चंद्रमा ने ज्वारीय बल की वजह से सूर्य के बल को कम किया है, आज हमारी पृथ्वी के घूमने की गति भी कुछ ज्यादा होती और हमारे दिनों की लंबाई कुछ कम हो जाती। चंद्रमा का प्रभाव पृथ्वी के घूर्णन की गति को धीमा कर देता है अगर वह नहीं होता तो हमारे दिन सिर्फ 6 घंटे के होते और 24 घंटों में हम चार सूर्योदय और सूर्यास्त देख पाते।
शरीर की आंतरिक घड़ी भी बिल्कुल अलग-
आपको सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन सिर्फ इसी बदलाव के बहुत ज्यादा नतीजे देखने को मिल सकते हैं। इससे पूरी की पूरी ही दुनिया बदल जाती, दुनिया में हवा, तूफान की गति बहुत तेज हो जाती और हमारी शरीर की आंतरिक घड़ी भी बिल्कुल अलग होती। इससे पूरे ग्रह के जीव और उनके जीवन पर विकास अलग ही तरह का हो जाता, क्योंकि दिन में रोशनी और रात में अंधेरे दोनों का समय काफी कम हो जाता।
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पृथ्वी के मध्य में पानी का गुब्बारा-
चंद्रमा ना होने की वजह से जीवन की बहुत सारी प्रक्रिया या तो विकसित ही नहीं होती या फिर बहुत ही अलग तरीके से विकसित होती। चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से जो पृथ्वी के मध्य में पानी का गुब्बारा फुला हुआ है, वह भी नहीं होता यानी ध्रुवों पर भूमध्य क्षेत्र की तुलना में जो पानी है वह नहीं होता और ध्रुवों पर ज्यादा पानी होता।
एक बड़ा बदलाव पृथ्वी की धुरी के झुकाव का-
इसके साथ ही चंद्रमा ना होने की वजह से एक बड़ा बदलाव पृथ्वी की धुरी के झुकाव का भी होता, पृथ्वी की धुरी वर्तमान में 23 डिग्री पर झुकी हुई है। लेकिन इसमें योगदान चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का है उसके नाम होने से पृथ्वी का झुकाव या तो नहीं होता या फिर यूरिन की तरह 97 डिग्री होता, कभी सूरज दिखाई ही नहीं दे पाता और अगर होता तो एक हिस्से में 42 साल तक दिन और दूसरे हिस्से में 42 साल तक रात रहती।
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