भारत में मेडिकल सीटों की सीमित संख्या और ऊँची फीस के चलते कश्मीरी छात्रों का झुकाव ईरान की ओर बढ़ा है। ईरान के विश्वविद्यालय WHO से मान्यता प्राप्त हैं और यहां की मेडिकल डिग्री भारत में वैध मानी जाती है। साथ ही, कई छात्र धार्मिक अध्ययन और शिया इस्लाम की गहन पढ़ाई के लिए भी ईरान जाते हैं, जो भारत में सीमित है।
अप्रवासी एजेंटों और निजी नेटवर्क का प्रभाव
ईरान जाने वाले अधिकांश छात्रों को रास्ता दिखाने वाले हैं कुछ विशेष अप्रवासी एजेंट और स्थानीय धार्मिक संगठन, जो कश्मीर में गुप्त रूप से काम करते हैं। ये नेटवर्क छात्रों को दाख़िले से लेकर ठहरने तक की पूरी व्यवस्था कर देते हैं। कुछ एजेंट इसे “धार्मिक भाईचारे की सेवा” कहते हैं, जबकि सुरक्षा एजेंसियाँ इसे अलग नजरिए से देख रही हैं।
कश्मीर से ईरान तक-एक वैकल्पिक शैक्षणिक मार्ग
यह एक दिलचस्प ट्रेंड है कि ये छात्र यूरोप, खाड़ी या अमेरिका की बजाय ईरान जैसे तनावग्रस्त क्षेत्र में पढ़ाई को तरजीह दे रहे हैं। इसका संबंध केवल शिक्षा से नहीं, बल्कि पहचान, समुदाय और वैचारिक माहौल से भी है।इस पूरे सिलसिले को देखा जाए, तो यह केवल शिक्षा की बात नहीं है—यह सांस्कृतिक, धार्मिक और रणनीतिक जुड़ाव की भी कहानी है।
सुरक्षा एजेंसियों की सतर्क निगाहें और राजनीतिक संदेश
हाल के वर्षों में सुरक्षा एजेंसियों ने नोट किया है कि ईरान जाने वाले कुछ छात्रों के संपर्क कट्टरपंथी धार्मिक समूहों से भी जुड़े पाए गए हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह केवल शिक्षा का मसला है या इसके पीछे कोई वैचारिक या राजनीतिक एजेंडा भी काम कर रहा है? ईरान के धार्मिक संस्थान जहां शिया दर्शन पर गहन अध्ययन कराते हैं, वहीं कुछ मामलों में राजनीतिक विचारधारा का भी प्रभाव देखा गया है। इस ट्रेंड ने न केवल खुफिया एजेंसियों को सतर्क किया है, बल्कि नीति-निर्माताओं के लिए भी यह एक संवेदनशील मुद्दा बनता जा रहा है।
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