सनातन धर्म में नदियों को बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। वहीं, भारतवासी नदियों को मां का दर्जा देते हैं। ऐसा माना जाता है, कि यदि किसी खास दिन नदी में स्नान कर उसकी पूजा अर्चना की जाएं, तो आपके सभी बुरे कर्मों का नाश हो जाता है और आपको पुण्य की प्राप्ति होती हैं। भारत देश में ऐसी कई नदियां हैं, जिन से जुड़ी पुरानी कथाएं आज भी लोगों के बीच में प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में ऐसी में नदी मौजूद है जिसकी पूजा अर्चना तो दूर उस नदी के पानी को हाथ लगाने से भी डरते हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं भारत के उत्तर प्रदेश की कर्मनाशा नदी की। लोगों का मानना है, कि यह नदी श्रापित है। जिसके चलते जो भी इस नदी के पानी को हाथ लगाता है या पीता है तो उसके काम बिगड़ने शुरू हो जाते हैं। साथ ही ऐसा माना जाता है, कि कर्मनाशा नाम शब्दों से मिलकर बना है, पहला कर्म दूसरा नाश। लोगों का मानना है, कि जो कोई भी कर्मनाशा नदी के पानी को हाथ लगाता है, तो उसके के सभी अच्छे कर्मों का नाश हो जाता है।
पौराणिक कथा –
कर्मनाशा नदी को लेकर पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस नदी का संबंध राजा हरिश्चंद्र के पिता सत्यव्रत से हैं। एक बार सत्यव्रत ने अपने गुरु वशिष्ठ से शरीर के साथ स्वर्ग पर जाने की इच्छा जताई, लेकिन गुरु वशिष्ट ने इस बात से इनकार कर दिया। जिसके बाद राजा सत्यव्रत ने यहीं इच्छा गुरु विश्वामित्र के सामने रखी। विश्वामित्र की विशिष्ट से शत्रुता थी, जिसकी वजह से विश्वामित्र ने अपने बल और तप के कारण सत्यव्रत को शरीर के साथ ही स्वर्ग भेज दिया। इस बात से इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा सत्यव्रत का सिर नीचे की तरफ कर धरती पर भेज दिया।
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गुरु विश्वामित्र ने अपने तप और बल का संपूर्ण प्रयोग कर राजा सत्यव्रत को स्वर्ग और धरती के बीच में ही लटका दिया। इसके बाद देवताओं का युद्ध हुआ इस दौरान ही राजा सत्यव्रत आसमान में उल्टे लटके रहे और उनके मुख से लगातार लार बह रही थी। जब गुरु वशिष्ट ने यह सब देखा तो, उन्होंने राजा सत्यव्रत कि इस अभ्रद व्यवहार और लालसा के कारण उन्हें श्राप दे दिया। ऐसा माना जाता है, कि राजा के मुख से गिरती लार ही धरती पर नदी के रूप में आई, जो कि श्रापित कर्मनाशा नदी बन गई।
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