भारत प्रशासित कश्मीर के बारामुला ज़िले के टॉपरपटन गांव के गुलज़ार अहमद वानी को सत्रह साल बाद अदालत ने कुछ दिनों पहले बरी किया है। साल 2000 में उन्हें साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में धमाके करने के इल्ज़ाम में दिल्ली के आज़ादपुर इलाके से गिरफ़्तार किया गया था। साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन धमाके में नौ लोग मारे गए थे।
दरअसल गिरफ़्तारी के समय गुलज़ार अहमद की उम्र महज़ 26 साल थी। उस वक्त वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अरबी में पीएचडी कर रहे थे। गुलज़ार अहमद वानी के अनुसार, जिस समय मुझे दिल्ली से गिरफ़्तार किया गया उस समय दुनिया भर में आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग की शुरुआत हुई थी। भारत सरकार छात्र संगठन सिमी पर प्रतिबंध लगाना चाहती थी और ये दिखाने की कोशिश की गई कि कश्मीरियों और सिमी में आपसी संबंध है। इसके बाद कुछ धमाकों के मामले में सिमी पर आरोप लगने के कारण मुझे भी गिरफ़्तार कर लिया गया। हालांकि वानी ने इस बात से इंकार किया कि सिमी से उनका कभी कोई संबंध रहा है।
वानी का कहना है कि जिस दिन उन्हें गिरफ़्तार किया गया उसके दस दिन बाद उनकी गिरफ़्तारी दिखाई गई। उन्होंने बताया कि इस दौरान उन्हें जिस तरह की प्रताड़ना झेलनी पड़ी वो बताया नहीं जा सकता। घर लौटने के बाद वानी बहुत कम लोगों को पहचान पा रहे थे।