अजय चौधरी||
किसान कर्जमाफी की मांग कर रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कारण हर कोई जानना चाहता है और कारण जो निकल कर सामने आता है वो किसान का कर्ज में डूबना ही है।
मगर किसान कर्ज में डूबता क्यों हैं। ऐसी नौबत आई ही क्यों? इसमें एक होता है मौसम की मार, मौसम की मार से किसान की फसल बर्बाद हो जाती है और वो उसकी लागत भी नहीं निकाल पाता। ऐसे में उसने उस फसल में जो लागत लगाई थी, साहूकार से या बैंक से खाद, बीज और कीटनाशक के लिए जो कर्ज लिया था वो अब कैसे चुकता करे। लेकिन हर किसान कर्ज नहीं लेता, अपने घर से भी पैसा लगाए तो घाटा तो उसे भी होता है और बार बार होने वाला ऐसा घाटा उसे जीते जी मार देता है।
अब मौसम की मार का ईलाज सरकार नहीं कर सकती पर सरकार फसल बीमा जैसी योजनाओं और मुआवजे के तहत ऐसे घाटे को काफी कम कर सकती है। बशर्ते बीमे की रकम इतनी कम हो कि किसान उसे चुका पाएं। मुआवजा भी सिर्फ जमींदार को मिलता है। खेती करने वाले मजदूर किसान को नहीं।
मगर किसान की आत्महत्या का असल कारण कर्ज होता ही नहीं है और कर्जमाफी भी उसका हल नहीं है। क्योंकि बैंक छोटे किसान को तो वैसे ही कर्ज नहीं देते। वो तो साहूकार या आसपास के लोगों से कर्ज लेते हैं । ऐसे में कर्जमाफ कर देने से उस आत्महत्या करने वाले किसान का कुछ भला नहीं हो पाता। ऐसे में बैंक अधिकतर संपन्न किसानों को ही कर्ज देते हैं। और समय समय पर सरकार के कर्जमाफ कर देने से न सिर्फ बैंकों को घाटा होता है बल्कि सरकार को भी बैंकों को भुगतान करने के लिए वित्तीय घाटा झेलना पड़ता है। जिसका असर सरकार की अन्य योजनाओं पर पडता है और विकास कार्य रोक दिए जाते हैं।
सवाल अभी भी वही है कि आखिर किसान कर्ज में डूबता क्यों है। इस सवाल के कई सारे जवाब हो सकते हैं। जिसमें भौतिकतावादी जीवन और बच्चों की अच्छी पढ़ाई लिखाई शामिल हो सकती है। मगर किसान के कर्ज में डूबने के असल कारण उसे अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) न मिल पाना और कीटनाशकों का प्रयोग करना है। चाहे मौसम की मार भी न हो फसल भी चाहे भरपूर निकली हो लेकिन किसान फिर भी घाटे में चला जाता है क्योकिं फसल की बिक्री से कई बार उसकी लागत भी नहीं निकल पाती। सरकार अगर सचमुच किसानों की भला चाहती है और उनकी आय दूगनी करना चाहती है तो उसे उसकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना होगा। साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि किसान की सारी उपज की बिक्री हो सके। चाहे उसे सरकार खरीदे या फिर आढ़ती या कोई प्राइवेट कंपनी। अधिक फसल होने के बावजूद किसान घाटे में जा रहा है क्योंकि फसल की अधिक पैदावार से बिक्री बाजार में उसका मूल्य कम हो जाता जिसका सीधा असर किसान पर पड़ता है। जबकि बिचौलियों के मुनाफे में कोई कमी नहीं आती।
किसान के कर्ज में डूबने या घाटे में जाने का दूसरा बड़ा कारण है खेतों में कीटनाशक का छिड़काव। शुरआत में कीटनाशक और खाद कही जाने वाली इस सामग्री का प्रयोग कम जमीन में अधिक फसल करने के नाम पर शुरू किया गया था। जिसे हरित क्रांति नाम दिया गया था। इस हरित क्रांति ने किसान, फसल और आम जन की ज़िंदगी में जहर घोलने का काम किया। अब ऐसा समय आ चुका है कि कीटनाशकों के बिना खेती संभव ही नहीं है। ये ना डालें तो खेत में कीट लग जाएं। रासायनिक खाद न डालें तो फसल अच्छी न हो। इन सब प्रोडक्ट्स ने ना सिर्फ जमीन की उर्वरक क्षमता को खत्म किया है बल्कि किसान को कर्ज में डुबाने के साथ साथ उसकी और लोगों की ज़िंदगी में जहर भी घोला है। जिससे कैंसर और हृदय रोग बढ़ रहे हैं। क्योंकि इन कीटनाशकों को छिड़कने वाला किसान भी इनकी चपेट में है और इन फल और सब्जियों को खाने वाला इंसान भी। किसान का इनको प्रयोग करना मजबूरी बन गया है। अगर ये सब न हो तो किसान की खेती की लागत मूल्य इतनी अधिक नहीं बढ़ेगी। और हां इसका उपाय ऑर्गेनिक खेती नहीं हो सकता क्योकिं जमीन को ठीक होने में 3 से 4 सालों का समय लग जाता है। उसके बावजूद भी खेत में फसल उसके बराबर नहीं हो पाती। जिसे किसान नहीं झेल सकता।
ऐसे में किसान की आत्महत्या का जो कारण निकल कर सामने आता है वो खेती की लागत का बढ़ना है। जो कीटनाशकों और फसल की अधिक पैदावार वाले रासायनिक खाद से बढ़ रही है। जिसका फिलहाल फौरी तौर पर कोई ईलाज नजर नहीं आ रहा। सरकार फौरी तौर पर एमएसपी तय कर ले और किसानों की पूरी फसल की खरीद सुनिश्चित करे तो किसान जरूर राहत की सांस लेंगे।