अजय चौधरी ।।
दिल्ली-मथुरा रेलमार्ग पर खचाखच भरी लोकल ईएमयू ट्रेनों में जहां सीट पर बैठनेको लेकर आए दिन झगड़े होते रहते हैं। वहीं अवैध रुप से सफर करने वाले दूधियों और ट्रेन में चलने वाली किर्तन पार्टियों के लाउडस्पीकर के कारण लोगों का सफर कठिन और जोखिम भरा रहता है। दूधियों और किर्तन मंडली की मनमानी से भी लोकल ट्रेनों में सफर करने वाले यात्री काफी परेशान हैं। किशोर जुनैद का भी सीट को लेकर दैनिक यात्रियों से उलझना भारी पडा था और उसे अपनी जान से हाथ धोना पडा। हालांकि इस झगडे को जुनैद को हत्यारों ने धर्मिक रंग दे दिया था ताकि ट्रेन में मौजूद अन्य यात्रियों का साथ मिल सके।
दूधियां और किर्तन मंडली के सदस्य इन ट्रेनों के दैनिक यात्री हैं। जिनसे उलझना अन्य यात्रियों को भारी पडता है। दैनिक यात्रियों के आंतक से परेशान अन्य यात्री अब जुनैद हत्याकांड के बाद मेट्रो का रुख कर रहे हैं क्योंकि सुरक्षा के नाम पर इन ट्रेनों में कुछ भी नहीं है। दिल्ली में एक निजी कंपनी में नौकरी करने वाले मुनीश शर्मा ने दस्तक इंडिया को बताया कि लोकल ट्रेन की लेटलतीफी से तो वो पहले से ही परेशान थे मगर अब इन ट्रेनों में सफर करना जोखिमभरा है। मुनीश शर्मा ने बताया कि मेट्रो का सफर उन्हें मंहगा जरुर पड रहा है जिसका असर अनके बजट पर भी पडा है लेकिन अब मन में असुरक्षा का भाव नहीं रहता। मुनीश शर्मा की तरह बहुत सारे ऐसे यात्री हैं जिन्होंने लोकल ट्रेनों से मेट्रो का रुख किया है।
दिल्ली से फरीदाबाद और पलवल होते हुए मथुरा तक चलने वाली इन ईएमयू शटलों में दूधियाओं से लेकर किर्तन मंडली वालों की डिब्बे से लेकर सीट तक फिक्स होती है। अगर उनकी सीट पर कोई अन्य यात्री बैठ जाए तो वो सीट से खिसका खिसका कर उठा दिया जाता है। भले ही वो उनसे पिछले स्टेशन से ट्रेन में बैठ आ रहा हो। किर्तन मंडली के लाउडस्पीकर से अन्य यात्री खासे परेशान हैं। रोक के बावजूद भी ट्रेन में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल बदस्तूर जारी है। अपने परिवार के साथ लोकल ट्रेन में नई दिल्ली से बल्लभगढ के लिए बैठे कमल अरोडा ने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि जहां वो बैठ रहे हैं वो सीट किर्तन मंडली वालों के लिए निर्धारित है। कमल अरोडा के अनुसार निजामुद्दीन स्टेशन आने के बाद उन्हें परिवार सहित अपनी सीट छोडनी पडी और बाकी का सफर खडे होकर तय करना पडा। अगर उन्हें पहले पता होता कि ये सीट किर्तन मंडली वालों के लिए फिक्स है तो वे इस डिब्बे में सवार ही न होते।
नियमानुसार कोई भी दूधिया केवल वेंडर डिब्बे का ही इस्तेमाल कर सकता है,लेकिन रेलवे की अनदेखी के चलते इस रूट पर दूधिए सवारी डिब्बों से ही गंतव्य तक पहुंचते हैं। जिसका खमियाजा यात्रियों को उठाना पड़ता है। कई बार इन दूधियों द्वारा यात्रियों के साथ न केवल बदतमीजी की जाती है बल्कि उनके साथ गाली गलौच से मारपीट तक की घटनाएं होना आम बात है। बल्लभगढ, न्यू टाऊन, असावटी रेलवे स्टेशन और पलवल स्टेशन पर दूधियाओं के आतंक से यात्री परेशान रहते हैं और चुपचाप इन सब का सामना कर रहे हैं।
बल्लभगढ रेलवे स्टेशन पर सुबह सात बजे ही प्लेटफार्म पर जैसे ही ट्रेन रुकती है, भीड की धक्का मुक्की के बीच दूधियों के दरवाजे पर रखे दूध के डिब्बे यात्रियों के चढने और उतरने में अड़चन बने रहते हैं। धक्का मुक्की के बीच यात्री डिब्बे में चढते वक्त दूध के डिब्बों से टकराकर कई बार चोटिल होने से बाल बाल बचते रहते हैं। मथुरा से आने वाली ईएमयू ट्रेन में सामान के लिए निर्धारित डिब्बे में दूधियों की संख्या कम, जबकि अन्य डिब्बों में सफर करने वाले दूधियों की संख्या कहीं अधिक होती है। इससे न तो यात्री आसानी से उतर पाते हैं और न ही आसानी से चढ़ पाते है। इस दौरान कईं बार यात्री ट्रेन से उतरते वक्त गिरते गिरते बच भी जाते हैं।
वहीं न्यू टाउन रेलवे स्टेशन पर भी स्थिति कमोबेश इसी प्रकार रहती है,यहां भी ट्रेन रुकते ही यात्रियों में अफरा तफरी का माहौल रहता है। स्टेशन खड़े यात्री ट्रेन पर चढऩे के लिए आतुर रहते हैं, जबकि पलवल की ओर से आने वाले काफी संख्या में यात्री यहां उतरते है। यहां भी डिब्बे के दरवाजे पर दूध के डिब्बे अडचन बने रहते है। कुछ यात्री चढने और कुछ यात्रियों के उतरने को लेकर धक्का मुक्की होना रोजाना की बात हो गई है। वहीं ट्रेन में बैठे दूधिए हटो..हटो..हटो.. का शोर मचाते हुए दूध के डिब्बों को नीचे उतारना शुरू कर देते हैं। फरीदाबाद स्टेशन पहुंचने पर ट्रेन में बैठे यात्रियों को कुछ राहत मिलती है।
काफी संख्या में सवार दूधिए ओखला व दिल्ली के अन्य रेलवे स्टेशनों तक जाते है। इसके बाद ओल्ड फरीदाबाद स्टेशन पर दिल्ली की ओर से पलवल तक जाने वाली ईएमयू ट्रेन का इंतजार ये दूधियां करते हैं। प्लेटफार्म नंबर एक पर इस ट्रेन के आते ही बल्लभगढ़ तक के लिए सफर तय किया जाता है, जो दूधिए सुबह छह बजे की ट्रेन से दिल्ली की ओर दूध बेचने गए थे, अब इस ट्रेन से वे वापिस लौट जाते है।
वाणिज्य निरीक्षक राजेश कुमार ने बताया कि ट्रेन में दूधिए वेंडर के लिए निर्धारित डिब्बे में ही सफर कर सकते हैं। इसके लिए इन्हें अलग पास बनवाना होता है। कोई दूधिया सवारी डिब्बों में बैठता है तो आरपीएफ और उसका स्टाफ कार्यवाही करता रहता है। वहीं चलती ट्रेन में किर्तन करने वालों पर राजेश कुमार ने बताया कि रेलवे के सामने ऐसे मामले आने पर वो इसमें शामिल यात्रियों का चलान करता है और लाउडस्पीकर जब्त कर लेते हैं।