मेट्रो के किराये की बढ़ोत्तरी की रोक को लेकर दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को डीएमआरसी चीफ मंगू सिंह को वॉर्निंग दी और साथ ही ये भी कहा कि अगर वह सरकार के स्टैंड को प्रमुखता से नहीं रखेंगे तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
वहीं परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने मंगू सिंह को लिखे लेटर में कहा है कि डीएमआरसी बोर्ड में दिल्ली सरकार पांच डायरेक्टर्स को नॉमिनेट करती है और केंद्र सरकार के साथ विचार-विमर्श करके आपको मेट्रो का एमडी नामित किया है।
आपको को बता दें की सरकार की ओर से नामित किए जाने वाले एमडी को दिल्ली सरकार के स्टैंड का समर्थन करना होता है। लेटर में कहा गया है कि अगर डीएमआरसी बोर्ड की मीटिंग में दिल्ली सरकार के स्टैंड को ठीक तरीके से नहीं रखा जाएगा तो सरकार को मौजूदा नियम-कायदों के मुताबिक कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
लेटर के जरिए मेट्रो एमडी को कहा गया है कि दिल्ली सरकार मेट्रो किराये में बढ़ोतरी के खिलाफ है और डीएमआरसी बोर्ड की मीटिंग समेत दूसरी फोरम में उन्हें दिल्ली सरकार के स्टैंड को रखना होगा।
सरकार ने इस लेटर के जरिए साफ संकेत दे दिया है कि अगर दस अक्टूबर से किराये में बढ़ोतरी को नहीं रोका गया तो सरकार कार्रवाई कर सकती है। परिवहन मंत्री ने अपने लेटर में कहा है कि 10 अक्टूबर से मेट्रो किराये में जो बढ़ोतरी की जा रही है।
वह फेयर फिक्सेशन कमिटी की सिफारिशों के खिलाफ है।
कमिटी की सिफारिशों के मुताबिक किराया बढ़ोतरी में कम से कम एक साल का गैप होना चाहिए और इस साल पांच महीने के अंतराल पर दूसरी बार किराये में बढ़ोतरी की जा रही है
परिवहन मंत्री ने गुरुवार को मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि डीएमआरसी बोर्ड में दिल्ली सरकार के पांचों डायरेक्टर्स की तुरंत मीटिंग बुलाई जाए।
सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि यह मीटिंग हो गई है और इस मीटिंग में दिल्ली सरकार के स्टैंड को रखा गया।
बताया गया है कि सरकार के स्टैंड के बारे में डीएमआरसी बोर्ड को बता दिया गया है। सरकार ने कहा है कि हर हाल में 9 अक्टूबर से पहले डीएमआरसी बोर्ड की मीटिंग हो और उस मीटिंग में किराया बढ़ोतरी का फैसला टाला जाए। दिल्ली सरकार ने कहा है कि 5-21 किमी की दूरी के लिए किराये में 100 पर्सेंट की बढ़ोतरी की सिफारिश करना समझ से परे है और डीएमआरसी ने कैसे किराये में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी करने का फैसला ले लिया है। 5 से 21 किमी की दूरी का सफर करने वाले सबसे ज्यादा होते हैं और उन लोगों के हितों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है।