
शैलेश शर्मा
एनआरसी यानी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस) पर सवाल पे सवाल और बहसें तेज है पत्रकारिता के मुखौटे में बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने असम में 40 लाख बांग्लादेशी घुसपैठीयों की पैरवी में वोट बैंक की नींव की मजबूती में अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। पहले भी रोहिंग्या का सीमेंट भरपूर लगाया जा चुका है। सवाल ये है 6 A को 1985 में अमेंडमेंट करके बिल को पास कराया गया लेकिन 2014 तक कोई कदम नहीं उठाए गए जबकि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हमेशा बांग्लादेशियों को वापस जाने पर बल दिया है अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी ने अपना काम शुरू किया तो विपक्षियों के पेट में दर्द चालू हो गया जबकि पिछली सरकार के गृह मंत्रालय के मुखिया मुक्कदम जायसवाल (MOS) ने संसद में बोला था कि कम से कम 50 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए असम में है। अब सवाल उठता है कि पिछली सरकार भी मानती थी की असम में 5 लाख की घुसपैठ है और अब की सरकार भी मानती है 40 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए है तो फिर एनआरसी को काम करने दी दीजिए उस पर सवाल क्यों ?
हर बात पर कैसे आहत होती है भावना?
क्या है कानूनी पेंच-
कुछ कानूनी दांव पेंच भी हैं, आर्टिकल 15 जो अड़ंगा लगा सकता है। दूसरा अगर सिद्ध भी ही जाए 40 लाख घुसपैठिए हैं तो क्या बंगलादेश उन्हें वापस ले लेगा। हालांकि बंगलादेश के सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। तीसरा मुख्य सवाल है कि अगर ये सब मुश्किल है तो एनआरसी का गठन और अमेंडमेंट ही क्यों किया गया इसके लिए पूर्ववर्ती सरकार ही दोषी है और पूर्ववर्ती सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष साफ करना चाहिए कि एनआरसी और सुप्रीम कोर्ट का महत्व ही क्या है? इन संवैधानिक संस्थाओं को समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि हमारा देश धर्मशाला है तो एनआरसी का काम क्या है? इसका जवाब पूर्वर्ती सरकार और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग को देना होगा।
संसद की गरीमा और राहुल का आंख मारना
वोट बैंक की राजनीति
अहम मुद्दे के मुख्य पक्ष ये है कि हमारे संसाधन सीमित है जनसंख्या वृद्धि चरम पर है और हम अपने घर के बच्चों को आधार भूत सुविधाएं दे नहीं पा रहे है इसके साथ “अतिथि देवो भव” “वसुधैव कुटुंबकम्” “मानवता और मानवाधिकार की भावना की चासनी से वोट बैंक की जलेबी कुछ राजनीतिक दलों को परोसी जा रही है। देश के टैक्स पेयर्स का पैसा बांग्लादेशियों के यतीम खाने में लगाना है तो हमारे देश के बच्चों के हाथ में भीख का कटोरा जरूर आ जाएगा । क्यों ना पैरवी करने वाले नेताओं को और खासकर एक दो मीडिया घराने को उन 40 लाख घुसपैठियों की जिम्मेदारी ले लेनी चाहिए और जिम्मेदारी भी ऐसी हो जिसमें पालन पोषण से लेकर उनके आतंकवादी ना बनने तक की हो। समर्थन करने वाले नेता और उनके राजनीतिक दल व 2 और 3 मीडिया हाउस उन 40 लाख घुसपैठियों को आजीवन उनकी सारी पुस्तों को पाल सकते है। इससे दोहरा चरित्र भी सामने नहीं आएगा और समस्या का समाधान भी निकल जाएगा। इसी फार्मूले को लेकर सरकार को संसद में सवाल उठाने चाहिए। अगर सरकार ये सवाल ना उठाए तो जनता को उठाना होगा वरना और घुसपैठियों का सिलसिला जारी रहेगा फिर चाहे श्रीलंका हो बंगलादेश हो पाकिस्तान हो सभी हमारे देश की धर्मशाला में मुसाफिर खाना और यतीमखाना बनाएंगे। देशवासियों तुम्हे जागना होगा सवाल पूछना होगा इस देश को धर्मशाला मत बनने दो……..जय हिन्द
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”