अजय चौधरी
ये उस वक्त का है जिस वक्त मेरा ब्लॉग लिखने का शुरुआती दौर हुआ करता था। 2014 में ये “पहला एहसास” लिखा था। वर्डप्रेस पर बना पहला ब्लॉग भी यही था। उस दौरान ग्रेजुएशन कंप्लीट ही हुई थी। मेरा कॉलेज का दोस्त रोहित जो आज भी मुझे याद कर लेता है और मैं उसे। अभी कुछ दिन पहले ही मिलने आया तो बातों ही बातों में इस लेख का जिक्र छेड बैठा। मैंने कहा ढूंढना पडेगा वो लेख भी और ब्लॉग भी। तो आज ढूंढ ही लिया। अब इसे अपने परमानेंट ब्लॉग यानी वेबसाइट पर पोस्ट कर रहा हूं। ताकि ढूंढने में आसानी रहे। कुछ कविताएं भी यहीं पोस्ट करुंगा धीरे धीरे। ब्लॉग का लिंक भी लगा रहा हूं-
https://phirbhimuskuratizindagi.wordpress.com/
उस दिन जैसा लिखा था ज्यों का त्यों यहां पोस्ट कर रहा हूं ताकि वो एहसास और स्वाद बदले ना…
नमस्कार, बहुत दिनों से ब्लॉग लिखने की कोशिश में था पर जिंदगी न जाने कैसी उलझनों की उधेडबुन में फंसी थी, समय ही नहीं निकल पा रहा था। बहुत दिन पहले ये लेख लिखने का विचार मेट्रो में सफ़र के दौरान मन में आया था, आज हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर इस विषय के बारे में लिखने का मौका मिला उसके लिए प्रभु का शुक्रिया।
स्कूल का पहला दिन, कॉलेज का पहला दिन, ऑफिस का पहला दिन, या फिर ज़िन्दगी का पहला दिन- जन्मदिन, होता है क्यों इतना खास, सोचा है कभी? पहला प्यार, पहला यार, पहली किताब, पहला मोबाइल, पहली बाइक, पहली कार और इन सब का पहला एहसास दिलाता है जिंदगी को कुछ खास एहसास। इन सब के बीच सवाल यही उभर कर सामने आता है की वो पहले एहसास वाली बात, आखिर तक क्यों नहीं रहती? वो खुशी बस याद ही बन कर क्यों रह जाती है?
अब इसी सवाल का जवाब खोजने की कोशिश में निकले है हम, चलो यही से शुरुआत करते हुए हम पहुंच जाते हैं अपने पुराने दिनों में, कॉलेज वाले अगर याद्दाश अच्छी खासी हो तो स्कूल के दिनों में भी जा सकते है नहीं तो कॉलेज के पहले दिन तक ही ठीक है और हाँ, जिन्हें स्कूल बदलने का अधिक शौक था वो अपने नए स्कूल के पहले दिन में जा सकते हैं। इसके अलावा ऑफिस वाले ऑफिस के पहले दिन और मेरे कुछ युवा साथी पहली गर्लफ्रेंड, पहला बॉयफ्रेंड अगर और आगे बढ़ गये हो तो फिर शादी के पहले दिन पर भी जा सकते हैं।
कहने का मतलब है कि स्वादानुसार जिस भी पहले पल को याद करना चाहते हो याद करो, याद करो वो उर्जा जो उस दिन तुम्हारें अंदर थी आज क्यों नही? हाँ ये भी सच है कि साथी बदलते रहते हैं पुराने पीछे छूटते रहते है और नए जुड़ते चले जाते है, स्कूल वाले स्कूल में ही छूट जाते है और कॉलेज वाले कॉलेज में ही, हम कहते रह जाते है कि एक दिन प्लान बनाकर सारे मिलेंगे मगर मिलते तो सिर्फ कोई एक-आद किस्मत वाले ही हैं। बस वो पल एक हसीन याद बन हमारे दिल में या फिर तस्वीरों में कैद होकर रह जाते हैं।
हम में से बहुत से ऐसे होते है जो बदल जाते है और कायरों की भांति नजर भी चुराना सीख लेते है। जिंदगी की भागदौड में सच पूछो तो हम खुद से और अपने चाहने वालों से दूर हो जाते है। ऐसे में बस एक बार उस पहले एहसास में उस पल में जी के तो देखे, भूल गये है जिन्हें उन्हें याद करके देखें, ज़िन्दगी कितनी भी परेशानियों में हो एक बार हँसते हुए जीना तो सीखें फिर देखना हर दिन पहले दिन जैसा होगा।
किसी ने सही कहा है-
“जीना है तो कमल की तरह जियो
मंद कीचड़ में भी मुस्कुरा के जीयो”
