अजय चौधरी
दिल्ली सरकार को ये समझना होगा कि दिल्ली देश की राजधानी है। यहां देश भर से लोग रहने, पढने-लिखने और ईलाज कराने आते हैं। देश के बाकी हिस्सों में ऐसी सुविधाएं मौजूद नहीं है जैसी दिल्ली में है। अगर होती तो बाहर के लोग अपना शहर, घर-परिवार छोडकर यहां ईलाज कराने आते हैं। मुख्यमंत्री जी सोचिए जरा, क्या कोई सडक पर लेट कर खुश होता है क्या? मंहगी दिल्ली में खाने पीने और रहने को वो मजबूर हैं। आधे तो अस्पताल के बाहर ही दम तोड देते हैं, क्योंकी आस-पास के राज्यों से उन्हें दिल्ली रेफर कर दिया जाता है और उन्हें यहां भर्ती तक नहीं किया जाता। सोचो जरा, उनपर क्या बीतती होगी। माना कि दिल्ली में पहले से ही बहुत भार है, लेकिन राजधानी तो सबकी है।
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मैंने सोचा नहीं था कि आप अभी भी इतने अपरिपक्व हैं? अच्छा हुआ कि दिल्ली हाईकोर्ट ने जीटीबी हॉस्पिटल में दिल्ली से बाहर के लोगों का ईलाज न करने का आपका सर्कुलर गिरा दिया। कोर्ट ने इसे समानता के अधिकार के खिलाफ बताया। हमारे देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं।
जीटीबी अस्पताल में केजरीवाल सरकार ने ईलाज के लिए दिल्लीवासीयों का आरक्षण 80 फीसदी आरक्षण कर दिया था। चुनाव और वोट के लिहाज से तो ये सही हो सकता है क्योंकि बेहतर ईलाज मिलने पर इससे दिल्ली वाले खुश हो सकते थे। लेकिन वोटों की माया में सरकार नागरिक अधिकार तो भूल ही गई और बाकी देश के नागरिकों को दिल्ली से अलग-थलग कर डाला।
केजरीवाल सरकार के जीटीबी अस्पताल के लिए बनाए गए नियमों को सुनेंगे तो आप हैरान ही रह जाएंगे। एक अक्टूबर को जारी सर्कुलर के अनुसार दिल्ली वालों के लिए अस्पताल में विशेष आरक्षण की सुविधा शुरु की गई थी। जिसके अनुसार अस्पताल में मौजूद 17 रजिस्ट्रेशन काउंटरों में से 13 दिल्ली के नागरिकों के लिए आरक्षित किए जाने थे और बाकी 4 दिल्ली से बाहर वालों के लिए थे। यही नहीं मुफ्त दवाएं और मुफ्त बल्ड टेस्ट, एक्सरे आदि भी दिल्ली वालों के ही किए जाने थे।
सरकार सिर्फ इतने से ही संतुष्ट नहीं थी इसलिए उसने आईपीडी के 80 फीसदी बेड दिल्ली वालों के लिए आरक्षित कर दिए थे और बाकी 20 फीसदी दिल्ली वालों के। इससे पहले पिछले साल जीबी पंत अस्पताल में दिल्ली वालों को 50 फीसदी आरक्षण दिया जा चुका है।
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