गुजरात के सूरत के पांडेसरा इलाके में एक कपड़ा निर्माण यूनिट में एक सफेद रंग के कपडे का रोल लगातार छपाई मशीन पर चल रहा है। जिसमें केसरी और हरे रंग की डाई मिलाई जा रही है और अशोक चक्र की मुहर भी मशीन द्वारा लगाई जा रही है। इस प्रोसेस के बाद तिरंगा रोलरों के जरिए बाहर निकल एक ट्रोली पर एकत्रित हो रहा है।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक इस कंपनी के मालिक संजय सरावगी का कहना है कि उनके पास “हर घर तिरंगा” अभियान की मांग को पूरा करने के लिए एक करोड़ झंडों की पूर्ती कराने के आदेश है। सरकार ने इस अभियान के तहत देश में 24 करोड़ घरों को चिह्निवत किया है जिनपर अगस्त 13 से लेकर 15 तक आजादी के 75 साल के अमृत महोत्सव मनाते हुए झंडे फहराए जाने हैं। कॉर्पोरेट-सरकार साझेदारी के तहत ये सूरत की किसी कपड़ा यूनिट को मिलने वाला सबसे बड़ा ऑर्डर है। इसके लिए पहले झंडा संहिता में संशोधन किया गया था और मशीन निर्मित पॉलिएस्टर सामग्री को अनुमति दी गई थी, उसके बाद ही ये संभव हो पाया है।
सूरत भाजपा के सांसद दर्शन जरदोश जो केंद्र में कपड़ा और रेलवे के राज्यमंत्री भी हैं ने द इंडियन स्पेसिफिक को अपनी बातचीत में बताया है कि निगमों को इन झंडों के लिए फंड जुटाने के लिए अपना सीएसआर (कंपनी सोशल एकाउंटेबिलिटी) फंड इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है। उन्होंने कहा है कि हम प्रयास कर रहे हैं कि लोग झंडा खरीदें, इसलिए 20X30 माप वाले झंडे का निर्धारित मूल्य 25 रुपए रखा गया है। अगर जनता किसी चीज पर खर्च करेंगी तो वो उसकी देखभाल भी करेगी। अगर कोई चीज मुफ्त में दे दी जाए तो उसकी देखभाल नहीं की जाती है।
जरदोश के अनुसार सूरत के अलावा देश के अन्य हिस्सों जैसे नोएडा( उत्तरप्रदेश), महाराष्ट्र और दक्षिणी भारत में भी झंडे बनाने का काम चल रहा है। सूरत का टेक्सटाइल उद्योग काफी बड़ा है और हम सभी जानते हैं कि सूरत में क्षमता है कि वो किसी भी बड़ी मांग को पूरा कर सकता है क्योंकि यहां वो बुनियादी ढांचा पहले से ही विकसित है जिसकी जरुरत होती है इसलिए हमने यहां इस अभियान की पूर्ति के लिए 11 करोड़ झंडे बनाने का लक्ष्य हासिल किया है। इस अभियान के तहत राज्य सरकारों और केंद्र के अन्य मंत्रालयों को भी झंडों की मांग पूरी करने का लक्ष्य दिया गया है, क्योंकि देश में 24 करोड़ घर हैं और ये सुनिश्चित करने की हमारी कोशिश है कि हम हर घर तक तिरंगा पहुंचा सके।
संजय सरावगी का कहना है कि उन्होंने आदित्य बिड़ला समूह से मिले एक करोड़ झंडों के ऑर्डर को पूरा करने के लिए 3000 महिलाओं सहित कुल पांच हजार कर्मचारियों को लगाया हुआ है, उन्हें झंडों की ये खेप 10 अगस्त तक पहुंचानी है। हमने इसके लिए एक जुलाई को काम शुरु किया था। हमारे लोग दो शिफ्टों में इसके लिए 24 घंटे काम कर रहे हैं और वो यहां आने वाले खरीददारों के वहानों पर रोजाना झंडों को लोड़ करने का काम भी कर रहे हैं।
उन्होंने बताया इन वितरकों को केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय और राजेश वतालिया जो आदित्य बिड़ला समूह के ग्रासिम इंडस्ट्रीज के मार्कटिंग प्रमुख हैं ने मिलकर चुना है। हमें इसके अलावा मंत्रालय से मेघालय, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, मणिपुर और महाराष्ट्र को झंडे उपलब्ध कराने की भी सूचना मिली है।
उन्होंने बताया कि आदित्य बिरला ग्रुप की ग्रासिम इंडस्ट्रीज ने डिस्ट्रीब्यूटरशिप का काम विभिन्न वितरकों को सौपा है, जैसे जय प्रधान श्री ट्रेडेक्स प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली के जय सिंह शर्मा, गाड़िया एंटरप्राइजेज सूरत के अरविंद गाड़िया, लक्ष्मीपति साड़ियां सूरत के संजय सरवागी, डिस्टिनिक्टिव फर क्लॉथ प्राइवेट लिमिटेड, सूरत के विकास कुंडलिया और बृजेश गोंडालिया, सूरत के ही मनन गोंडालिया और बृजेश गोंडालिया, कोलकाता के उद्दीन एंटरप्राइजेज के सलाउद्दीन मंडल, अहमदाबाद, गुजरात में केएन टेक्सटाइल्स को, नई दिल्ली में अनिरथ कॉन्ट्रैक्ट्स के कबीर कुमार और अनघ्यमइंटरप्राइजेज, पंजाब के आशीष बजाज को ये काम सौंपा गया है।
केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली में सिलवासा के आलोक इंडस्ट्रीज को दो करोड़ झंडों का ऑर्डर मिला है। इस कंपनी के सीईओ तुलसी तेजवानी ने कहा, ‘हमें 15 जुलाई को आदेश मिला था और 8 अगस्त मंत्रालय द्वारा दी गई समय सीमा है। चूंकि ऑर्डर बड़ा है, इसलिए हम सूरत में अलग-अलग फर्मों को आउटसोर्सिंग कर रहे हैं। हम महाराष्ट्र के भिवंडी और मालेगांव और सूरत से ग्रे बेल्स खरीदते हैं और इसे सूरत में रंग कर प्रिंट करवाते हैं।
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तेजवानी ने कहा, ‘इन फैक्ट्रियों से सिलवासा में जैसे ही उत्पाद पहुंचाया जाता है, उसे काटा और सिला जाता है और फिर पैक किया जाता है। एक दिन में एक लाख झंडों से लेकर अब हम एक दिन में आठ लाख झंडों का कार्य पूरा कर रहे हैं।
तेजवानी ने बताया कि उनके पास सीएसआर के तहत फंड नहीं है इसलिए उन्हें अब एकदम अलग राज्यों को तिरंगे की खेप उपलब्ध कराने के लिए सूचित किया गया है और संबंधित राज्य सरकारें हमें उसके लिए भुगतान करेगी।
अहमदाबाद में, झंडा बनाने वाली ईकाइयों को बड़े पैमाने पर उद्योग घरानों से ऑर्डर मिले हैं। आमतौर पर यहां हर साल स्वतंत्रता दिवस के आसपास 10 से 15 लाख झंडे बनाए जाते थे लेकिन अब पहली बार उन्हें बड़े पैमाने पर ऑर्डर मिले हैं।