अमेरिकी सदन की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी चीन की धमकियों को नज़रअंदाज़ कर मंगलवार शाम ताइवान पहुंच गई। बीते हफ्ते चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा था के उसे आग से नहीं खेलना चाहिए। अंग्रेजी वेबसाइट इंडिया टुडे के मुताबिक एक आजाद स्व-शासित द्वीप ताइवान (जिसपर चीन अपना हक जताता है) में पेलोसी बीते 25 सालों में यहां का दौरा करने वाली अमेरिका की सर्वोच्च अधिकारी बन गई हैं। उनके आने के बाद ताइवान के आकाशीय क्षेत्र में 21 चीनी लड़ाकू विमान घुसने की खबर भी आती है।
अब जानते हैं पेलोसी ताइवान के दौरे पर क्यों आई हैं-
पेलोसी ने ताइवान पहुंचने के बाद ट्विटर का सहारा लेती हैं और ट्वीट करती हैं – “हमारी यात्रा यहां इस बात को दोहराती है कि अमेरिका ताइवान के साथ खड़ा है, हिंद-प्रशांत में हमारा एक मजबूत, जीवंत लोकतंत्र हमारा साझेदार है”।
Our visit reiterates that America stands with Taiwan: a robust, vibrant democracy and our important partner in the Indo-Pacific. pic.twitter.com/2sSRJXN6ST
— Nancy Pelosi (@SpeakerPelosi) August 2, 2022
एक अन्य ट्वीट में वो कहती हैं, “हमारे इस प्रतिनिधिमंडल की ताइवान यात्रा अमेरिके के ताइवान के जीवंत लोकतंत्र का समर्थन और उसके प्रति सम्मान को भी दिखाता है। ताइवान के नेतृत्व के साथ हमारी बातचीत हमारे साझेदार के लिए हमारे समर्थन की पुष्टि करती है और हमारे साझा हितों को बढ़ावा देती है, जिसमें एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को आगे बढ़ाना शामिल है।
Our delegation’s visit to Taiwan honors America’s unwavering commitment to supporting Taiwan’s vibrant Democracy.
Our discussions with Taiwan leadership reaffirm our support for our partner & promote our shared interests, including advancing a free & open Indo-Pacific region.
— Nancy Pelosi (@SpeakerPelosi) August 2, 2022
ट्वीट खुद पेलोसी के द्वीप पर जाने के पीछे की वजह बताते हैं। एक राजनेता के रूप में, पेलोसी लगातार चीन की आलोचना करती आई हैं, उनमें से आलोचना की मुख्य वजह मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा रहा है। पलोसी अब 1979 के कानून का हवाला देते हुए बताती हैं कि अमेरिका ने इसे एक लोकतांत्रिक देश घोषित किया था। पेलोसी के विचारों का ये हिस्सा उनके ताइवान आने से पहले वाशिंगटन पोस्ट में छापा गया है। जिसमें वो लिखती हैं कि हमें ताइवान के साथ खड़ा होना चाहिए। यह जरूरी है कि अमेरिका और उसके सहयोगी राष्ट्र ये स्पष्ट करें कि वो निरंकुश लोगों के सामने कभी नहीं झुकेंगे।
पेलोसी इससे पहले यूक्रेन की राजधानी कीव में कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर चुकी हैं। उन्होंने अपनी ताइवान यात्रा ऐसे समय में चुनी है दुनिया निरंकुशता और लोकतंत्र के बीच का विकल्प चुनने में लगी है। वे लंबे समय से संकटग्रस्त लोकतंत्र आंदोलनों के समर्थन में खड़ी दिखाई देती हैं। इससे पहले पेलोसी ने अप्रैल महा में अपनी ताइवान यात्रा तय की थी लेकिन उस वक्त कोरोना पॉजिटिव आने के कारण उन्हें ये यात्रा टालनी पड़ी थी।
पेलोसी के ताइवान आने से चीन इतना नाराज़ क्यों है?
चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता आया है। ऐसे में ताइवान में अगर अमेरिका का कोई वरिष्ठ अधिकारी आता है तो वो ताइवान की स्वतंत्रता के लिए अमेरिकी समर्थन का संकेत देता है। चीन के नाराज होने का दूसरा कारण भी है, बीते हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन से फोन कॉल के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अमेरिका आग से खेल रहा है। इस धमकी के बावजूद पेलोसी इन सब बातों को नजरअंदाज़ करते हुए ताइवान पहुंच जाती हैं।
पेलोसी की ताइवान यात्रा चीनी राजनीति के एक संवेदनशील समय पर हो रही है, जिसे लेकर बीजिंग की तरफ से अमेरिका को अब कड़ी प्रतिक्रिया मिलने की संभावना जताई जा रही है। चीन की घरेलू राजनीति का भी ये तनावपूर्ण समय माना जा रहा है। राष्ट्रपति शी और चीन का उत्कृष्ट समाज इसे शी जिनपिंग (और) उनके नेतृत्व के अपमान के रूप में देखेंगे और प्रतिक्रिया करने के लिए वे खुद को मजबूर महसूस करेंगे और खुद की ताकत दिखाने की कोशिश भी कर सकते हैं।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी देश में अपनी स्थिरता सुनिश्चित करना चाहती है और चीजों को नियंत्रण से बाहर होने से रोकना चाहती है।
चीन ने अभी तक पेलोसी की यात्रा पर क्या प्रतिक्रिया दी है-
पेलोसी की ताइवान यात्रा पर चीन के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि “इस यात्रा का चीन-अमेरिका संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, इसके जवाब में चीन निश्चित रूप से अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा।”
सीएनएन की खबर के मुताबिक चीनी रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी हाई अलर्ट पर है। वो अपने लिए टारगेटिड मिलिट्री ऑपरेशनस की एक एक सीरीज को लॉन्च करेगी ताकि स्थिती को काबू में लिया जा सके और जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा हो सके और ताइवान स्वतंत्रता की अलगाववादी योजनाएं और बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप पूरी तरह विफल हो सके।
ताइवान पर अमेरिका का क्या जवाब है?
बाइडेन प्रशासन ने कहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी “एक-चीन नीति” के लिए प्रतिबद्ध है। अमेरिका ने 1970 के दशक से ‘वन चाइना’ नीति बनाए रखी है, जिसके तहत उसने पाया है कि ताइवान चीन का हिस्सा है। लेकिन उसके ताइवान के साथ अनौपचारिक संबंध है। बीजिंग ताइवान को चीन का हिस्सा मानता आया है, लेकिन चीन इसे बार-बार धमकी देता है और किसी भी समय सैन्य बल के दम पर इस द्वीप को कब्जाने से इंकार भी नहीं करता है।
वहीं पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर जहां बाइडेन ने कुछ सतर्कता व्यक्त की है वहीं उनके प्रशासन ने उनकी यात्रा का विरोध नहीं किया है। उनकी यात्रा से पहले अमेरिका ने कहा था कि ये उनका निर्णय है कि उन्हें यात्रा पर जाना है या नहीं।
द इंडिपेंडेंट की खबर के मुताबिक सोमवार को ही अमेरिकी सेना ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को बढ़ा दिया था और विमानवाहक पोत यूएसएस रोनाल्ड रीगन और उसका स्ट्राइक ग्रुप फिलीपीन सागर में देखा गया था।
पेलोसी की यात्रा पर ताइवान का पक्ष?
पेलोसी के स्वागत में वहां के हवाई अड्डे के पास 101 मंजिला ताइपे इमारत पर एक संदेश दर्शाया गया था, जिसमें लिखा था “यूएस-ताइवान दोस्ती हमेशा के लिए” यहां अमेरिकी अध्यक्ष का ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने स्वागत किया था।
बुधवार को ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने राष्ट्रपति भवन में पेलोसी और उनके प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और कहा, “ताइवान की संप्रभुता को मजबूत करने के लिए हम कुछ भी करेंगे।”
द इंडिपेंडेंट ने राष्ट्रपति के प्रवक्ता जेवियर चांग के हवाले से कहा, “स्पीकर पेलोसी ने न केवल लंबे समय तक ताइवान का समर्थन किया है, बल्कि ताइवान के लोकतांत्रिक विकास और क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा पर भी ध्यान दिया है।”