किरण शर्मा
दिल्ली सरकार को पहले भी विज्ञापनों के मामलों पर घेरा गया है। अब जनहित याचिका के जरिए ऐसा कहा गया, कि दिल्ली में सबसे अधिक श्रम कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है क्योंकि रिक्तियों का विज्ञापन कम मासिक वेतन पर जारी किया जा रहा है। याचिका के जरिए दिल्ली सरकार को किसी आधिकारिक पोर्टल अलावा किसी व्यक्ति, कंपनी, संगठन या प्रतिष्ठान के अन्य मंचों पर निर्धारित परिश्रमिक से कम मासिक वेतन पर रिक्तियों का विज्ञापन जारी करने पर रोक लगाने को कहा गया है। दिल्ली के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने दिल्ली सरकार के वकील को इस मुद्दे पर अधिकारियों को निर्देश देने को कहा है। इसके साथ ही इस मामले की अगली सुनवाई 23 मई को तय की गई है।
क्या है पूरा मामला-
दरअसल, याचिकाकर्ता मोहम्मद इमरान अहमद ने दायर याचिका में कहा, कि वह कर्मचारियों और श्रमिकों के मूल अधिकारों के संरक्षण दिल्ली में बंधुआ मजदूरी खत्म करने और मजदूरों के साथ होने वाले शोषण को समाप्त करने के लिए श्रम कानूनों में परिवर्तन की मांग कर रहे हैं। याचिका में साफ स्पष्ट किया गया, कि दिल्ली सरकार ने एक ऑनलाइन पोर्टल के जरिए विभिन्न रिक्त पदों के लिए विज्ञापन दिया था। जिनमें फील्ड मार्केटिंग कर्मचारी, ऑफिस बॉय से लेकर रिलेशनशिप मैनेजर और अकाउंटेंट जैसे हजारों पदों के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतन से कम मासिक वेतन पर विज्ञापन जारी किया गया था। याचिकाकर्ता ने कहा, कि उन्होंने कर्मचारियों के पारिश्रमिक के कानून के अनुरूप भुगतान का अनुरोध किया लेकिन अधिकारियों ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की। सभी जानते हैं कि दिल्ली की तरफ सबसे ज्यादा नौकरी पेशा लोग रुख करते हैंं। याचिका में दावा किया गया, कि सरकारी पोर्टल की तरफ देखें तो दिल्ली में सबसे अधिक श्रम कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है।
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इस बारे में दिल्ली सरकार के वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि Covid-19 महामारी के दौरान सरकारी विज्ञापनों की जगह सबसे अधिक प्राइवेट विज्ञापनों को जारी किया गया था।
जो कि सरकार से संबंधित नहीं थे।
उन्होंने याचिका के बारे में कहा, कि सरकारी अधिकारी इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट है कि न्यूनतम पारिश्रमिक का पालन करना जरूरी है।
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