यूरोप अंतरिक्ष एजेंसी का 1360 किलो के वजन वाला एक सेटेलाइट जल्द ही पृथ्वी पर गिरने वाला है, यह एक स्पेसक्राफ्ट भी है। इसे यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने 5 साल पहले लांच किया था, जो अंतरिक्ष में अपने शुरुआती 3 साल का मिशन पूरा करने के बाद वापस पृथ्वी के वायुमंडल में आएगा और यह पूरी तरह से तबाह हो जाएगा। एयोलस को पृथ्वी एक्सप्लोरर रिसर्च मिशन के लिए भेजा गया था, इसे नई स्पेस टेक्नोलॉजी के मुताबिक, डिजाइन किया गया था।
सबसे प्रभावशाली मौसम निगरानी सेटेलाइट-
यह ESA (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) का सबसे प्रभावशाली मौसम निगरानी सेटेलाइट बन गया। ESA के मुताबिक, इसका लेज़र अभी भी काम कर रहा है। लेकिन इसका इंधन पूरी तरह से खत्म हो चुका है और इसका टैंक लगभग खाली हो गया है। क्योंकि यह स्पेसक्राफ्ट अभी 320 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की चक्कर लगा रहा है और धरती के वायुमंडल ने इसे पहले से ही अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही सूरज से आ रही प्लाज्मा की लहरें भी इसे धरती की और धक्का दे रही हैं।
ज्यादा इंधन का इस्तेमाल-
ESA के बयान के मुताबिक, हाल ही के महीनों में तेज सौर गतिविधियों का मतलब है कि सेटेलाइट कक्षा में बने रहने के लिए ज्यादा इंधन का इस्तेमाल कर रहा है, एलोयस के लिए यह एक तरह से हवा में विपरीत दौड़ने जैसा है।
वैज्ञानिक गतिविधि बंद-
30 अप्रैल को ही यह एयरक्राफ्ट अपनी वैज्ञानिक गतिविधि बंद कर चुका है और इसके उपकरणों को भी अब विशेष मोड में डाल दिया गया है। ताकि यह अपने आखिरी काम को आराम से पूरा कर सके और इसके माध्यम से अगले एलोयस-2 मिशन की तैयारी में मदद मिलेगी। आने वाले महीनों में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी इसे स्वाभाविक तरीके से मौजूद 320 किलोमीटर की ऊंचाई से लगभग 280 किलोमीटर तक आने देगा। फिर यह धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह पर 100 किलोमीटर ऊपर लाया जाएगा और इसके खत्म होने का काउंटडाउन शुरू हो जाएगा।
Re-Entry-
वैज्ञानिकों का कहना है, कि जैसे ही ये 80 किलोमीटर की ऊंचाई के आसपास आएगा, इसमें आग लगने लगेगी। ESA की ओर से भरोसा दिया गया है, कि Re-Entry की वजह से किसी नुकसान की आशंका बहुत कम है। आखिरी तारीख इस बात पर निर्भर करती है कि सौर गतिविधियां किस तरह से इस प्रक्रिया को गति देती है, लेकिन अगस्त के आखिर तक इसके बचने की संभावना नहीं है।
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यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी-
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया, कि इंजीनियरों ने पूरी एतियात बरती है। पृथ्वी के वायुमंडल में वापस आने पर इसकी दिशा ऐसी रखी जाएगी की वह खुले समुद्र की जाए, जिससे पृथ्वी पर किसी भी तरह के नुकसान होने की संभावना कम हो जाएगी।