समलैंगिक विवाह पर लगातार नौवें दिन भी सुनवाई चली, सुनवाई के दौरान केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि कांग्रेस पंजीकृत प्रदेश राजस्थान समलैंगिक विवाह के विरोध में है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सेंटर ने बताया कि समलैंगिक विवाह के मुद्दों पर 7 राज्यों ने क्या जवाब भेजा है। राजस्थान, जहां पर कांग्रेस की सरकार इस विचार का विरोध करती है वहीं महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, क्षेत्रों के प्रदेश, मणिदीप, असम और सिक्किम ने कहा है कि उन्हें इस पर विचार के लिए और समय चाहिए।
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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए लगातार नौवें दिन भी सुनवाई हुई।
इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय कानून किसी भी व्यक्ति को बिना उसके अनुपति को देखे बच्चे को गोद लेने की अनुमति देता है।
एनसीपी ने तर्क दिया-
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क दिया कि लिंग की अवधारणा पर मां और भाईचारा नहीं हो सकता है।
कानून की स्थिति के बाद दीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों के संविधान पीठों को एनसीपी सीएचआर ने बच्चों का कल्याण सर्वोपरि बताया। एनसीसीपी ने आगे बताया, कई फैसलों में कहा गया है कि बच्चे को गोद लेने से कोई भी मौलिक अधिकार के तहत नहीं आता है।
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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसकी जांच की जानी चाहिए कि क्या विषमलैंगिकता विवाह का एक प्रमुख तत्व है या नहीं। विवाह के मूल तत्वों को संविधानिक संरक्षण प्राप्त है तो ऐसा बिल्कुल नहीं कहना चाहिए कि संविधान के विवाह का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने आगे कहा कि धर्म की स्वतंत्रता से पता चलता है कि विवाह की उत्पत्ति होती है, क्योंकि हिंदू कानूनों के अनुसार इसका कोई कारण नहीं है।
सेंटर ने कोर्ट को सूचित किया था-
केंद्र ने 19 अप्रैल को अदालत को बताया कि राज्यों के मुख्य सचिवों को चिट्ठी लिखकर सूचित किया गया है कि समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट कर रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उनकी अविचल होने की अवधारणा उत्पन्न हुई है और उन्हें इस मूल प्रस्ताव को स्वीकार करना होगा क्योंकि संरक्षण का अधिकार विवाह है।