किरण शर्मा
दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक फैसलों पर चर्चा करते हुए हाल ही में स्थायी समिति द्वारा एक प्रस्ताव पर बातचीत की गई। जिसमें स्नातक कार्यक्रम के अंतर्गत दर्शनशास्त्र में पढ़ाए जाने वाले डॉ भीमराव अंबेडकर के दर्शन नामक वैकल्पिक पाठ को हटाए जाने का सुझाव रखा गया। इस प्रस्ताव को लेकर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है और समिति द्वारा ऐसा करने पर आपत्ति जताई है। विभाग ने समिति के इस फैसले पर बहुसंख्यक लोगों के अंबेडकर से जुड़े होने की बात कही है। इस बारे में स्थाई समिति के अध्यक्ष का क्या कहना है आइए जानते हैं-
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक यह सामने आया, कि विश्वविद्यालय के B.A पाठ्यक्रम में (Philosophy) से अंबेडकर पर दिए गए वैकल्पिक कोर्स को हटाने का सुझाव पहली बार 8 मई को दिया गया था। जिसके बाद इस पर 12 मई को Postgraduate और Undergraduate की आयोजित पाठ्यक्रम समिति की बैठक में फिर से चर्चा की गई थी।
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क्या कहना है स्थाई समिति का
सूत्रों के मुताबिक इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान
स्थाई समिति के अध्यक्ष और डीन ऑफ कॉलेजेज बलराम पनी ने यह साफ तौर पर कहा, कि कमेटी की ओर से ऐसा कोई सुझाव नहीं दिया गया है जिसके अनुसार अंबेडकर पाठ्यक्रम को हटा दिया जाएगा। डीन ने कहा, कि इसके विपरीत कमेटी की ओर से ऐसा विचार किया गया था, कि दर्शनशास्त्र पाठ्यक्रम में नए और पुराने कोर्स को एक साथ मिला दिया जाए। जिससे यह छात्रों के लिए अधिक आकर्षक बन सकेगा
और अन्य कॉलेज के पाठ्यक्रम में भी इसे शामिल किया जा सकेगा। इससे विद्यार्थियों को विचारको की पृष्ठभूमि पढ़ने का मौका मिलेगा। इस तरह स्थाई समिति के अनुसार पाठ्यक्रम हटाने को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है।
लेकिन सूत्रों के हवाले से अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के
द्वारा यह सामने आया, कि अंबेडकर पर दिए गए कोर्स को हटाने के बारे में सुझाव भी दिया गया था।
इसके अलावा फैकल्टी ऑफ आर्ट्स के डीन अमिताभ चक्रवर्ती ने इंडियन एक्सप्रेस से अपनी बातचीत में बताया, कि बैठक में दर्शनशास्त्र के कई पाठ्यक्रमों को लेकर सुझाव दिए गए थे जिसमें डॉ बी. आर अंबेडकर की फिलॉसफी के अलावा अन्य विचारकों की भी राय ली गई ताकि उनके कोर्स भी पाठ्यक्रम में शामिल किए जा सके। इससे बच्चों को अपनी पसंद के विचारक चुनने का मौका मिलेगा।
हालांकि अभी तक इस प्रस्ताव को लेकर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है। इसका निर्णय अकादमी मामलों में सर्वोच्च फैसले लेने वाली संस्था अकादमिक परिषद के द्वारा लिया जाएगा।
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