पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह के पौत्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. अजित सिंह के बेटे फिलहाल राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख जंयत चौधरी को पश्चिमी उत्तरप्रदेश का किसान वर्ग प्यार से छोटा चौधरी कहता है। इस पार्टी ने चौधरी चरण सिंह के ही समय से हमेशा किसानों की राजनीति की है। आज भी पार्टी किसानों के ही मुद्दे उठाती है। आरएलडी बीजेपी के साथ जा रही है ये तय कर दिया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस ट्वीट ने जिसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान से नवाजने की बात कह दी है। जयंत चौधरी ने बीते दिनों चौधरी सहाब की जयंती पर उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग रखी थी जिसे सरकार ने अब मान लिया है।
चौधरी सहाब को भारत रत्न दिया जाए ये किसानों की मांग लंबे वक्त से थी, लेकिन जयंत चौधरी ने खुद उनका पौत्र होते हुए खुद ये मांग पहली बार उठाई थी, जिसपर बीजेपी का मानना किसान वर्ग की नाराजगी को दूर करने के लिए तो है ही साथ ही ये दोनों पार्टियों के समझौते पर भी मुहर लगाता है। लेकिन जयंत के साथ समझौता बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है, इसके लिए बीजेपी को क्या क्या देना पड़ा वो धीरे-धीरे सामने आएगा।
2020 में राजधानी दिल्ली में हुए किसान आंदोलन में भी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद ) की अहम भूमिका रही है। इस आंदोलन में पार्टी और कार्यकर्ताओं का किसानों खासतौर पर टिकैत परिवार को पूरा सपोर्ट रहा है। अब बात किसानों की इस पार्टी की बीजेपी के साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की चल रही है। ऐसे में आप अगर ये समझ रहे हैं कि जिस पार्टी ने हमेशा किसानों की राजनीति की है और जिस बीजेपी के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़कर 8 विधायक चुनकर यूपी विधानसभा में भेजे हैं वो उससे सिर्फ कुछ लोकसभा की सीटों की खातिर समझौता कर लेगी तो ऐसा होने की संभावना नहीं है। हालांकि भारत रत्न से समझौते की शुरुआत हो चुकी है।
आरएलडी किसानों की पार्टी है तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने में उसने अहम भूमिका निभाई है। उन्हें किसान आंदोलन के दौरान 700 से अधिक किसानों की शहादत याद है ऐसे में वो किसानों के मुद्दे पर समझौता किए बिना बीजेपी के साथ नहीं मिल सकते। ऐसे में समझौता किस-किस बात को लेकर हुआ है ये अभी सामने आना बाकि है।
सूत्रों की मानें तो आरएलडी इस वक्त बीजेपी के सामने फसलों का एमएसपी (न्यूनत समर्थन मूूल्य) को लेकर कानून बनाने और गन्ना किसानों की पेमेंट तय समय में कराने को लेकर जैसे विभिन्न किसानी मुद्दों पर लेकर किसानों से अपनी बात मनवाने पर लगी है। क्योंकि छोटे चौधरी इन सभी मुद्दे का हल हुए बिना सत्ताधारी दल बीजेपी के साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।
छोटे चौधरी कांग्रेस से लेकर बसपा तक के संपर्क में इस दौरान रहे लेकिन कहीं से बात नहीं बनी। वो बिना किसी पार्टी के साथ गठबंधन करे बिना चुनाव लड़ने पर भी विचार कर रहे थे, जिसमें रालोद को बिना गठबंधन के भी 2 लोकसभा सीट जीतने की उम्मीद नजर आ रही थी, ये सीटें कैराना और मुज्जफरनगर हैं। लेकिन बीजेपी के साथ मिलकर 4 सीटों पर लड़ने से इन चार सीटों पर जीत की गारंटी मिलना तय हो गया है। राजनीति में समझ रखने वालों का मानना ये भी है कि रालोद को अगर केवल हाथी के साथ भी जाती तो भी वो यूपी में चार लोकसभा सीट जीती जा सकती थी लेकिन मायावती इस वक्त न तो किसी के संपर्क में है न ही अपने पत्ते खोल रही है। ऐसे में अखिलेश से तकरार के बाद रालोद के पास बीजेपी के साथ जाने के अलावा अन्य कोइ विकल्प नहीं बचा था।
हालांकि अगर अखिलेश यादव रालोद के साथ सीट बंटवारे को लेकर कोई पेंच न फंसाते तो बीजेपी से बात करने की नौबत आनी ही नहीं थी। अखिलेश वैसे तो रालोद को सात सीटें ऑफर कर रहे थे लेकिन इनमें से अधिकांश पर अपने कंडीडेट को ही चुनाव लड़वाना चाहते थे। खासकर मुज्जफरनजर सीट पर वो हरेंद्र मलिक को लेकर अड़े हुए थे, लेकिन ये सीट रालोद के लिए नाक का सवाल है, इस सीट से दिवंगत अजित सिंह कुछेक हजार वोटों के अंतर से लोकसभा चुनाव हारे थे। ऐसे में उनकी मौत के बाद ये सीट रालोद फिर से जीतकर उन्हें समर्पित करना चाहती है। लेकिन न तो सपा न ही बीजेपी ये सीट रालोद को देने को राजी है ऐसा भी माना जा रहा हैा
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मुज्जफरनगर से ही बीजेपी के केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान सांसद है। मुज्जफरनगर दंगे का ही असर था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 80 में से 73 सीटें हासिल कर ली थी। ऐसे में संजीव बालियान पश्चिम की राजनीति के बीजेपी के बड़े चहरे हैं वो उनको हटाकर ये सीट रालोद को देने को राजी नहीं है। ऐसे में इस सीट को लेकर दोनों दलों के बीच क्या समझौता हुआ है ये अभी सामने नहीं आना बाकी है।
अगर रालौद किसानों को दरकिनार कर बीजेपी की शर्तों पर लोकसभा चुनाव लड़ती है तो ऐसे में उसके लिए पश्चिम की राजनीति 2014 की तरह समाप्त होने की कगार पर आ जाएगी। लेकिन जयंत चौधरी एक समझदार नेता हैं वो किसानों की मांगे मनवाए बिना बीजेपी के साथ नहीं गए होंगे। केवल भारत रत्न से किसान खुश हो जाएं ऐसा भी नहीं माना जा सकता है। जयंत फिलहाल केंद्र में बैठी बीजेपी से चुनाव के इस मौसम में कुछ अहम मुद्दों पर मोहर लगवा सकते हैं। कुल मिलाकर ये भी कहा जा सकता है कि आरएलडी की शर्तों पर बीजेपी राजी हो गई है।
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