Ekadashi 2024: सनानत धर्म में औषधियों के गुणों से भरे आंवले के पेड़ की पूजा का विषय महत्व है, साथ ही एक साल में दो बार आंवले के पेड़ की पूजा-अर्चना की जाती हैं। पहली पूजा आमलकी एकादशी को करते हैं और दूसरी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि जिसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है, वहीं लोककथाओं के अनुसार आंवले पेड़ की उत्तपति सृष्टि रचनाकार यानी ब्रह्मा जी के आंसुओं से हुई है।
आंवले की उत्पत्ति को लेकर प्रचलित पौराणिक कथा-
आंवले के पेड़ को सनातन धर्म से जोड़ कर देखा जाए तो यह पेड़ भगवान विष्णु को अति प्रिय है। साथ ही आंवले के पेड़ को लेकर यह मान्यता प्रसिद्ध है कि जब ब्रम्हा जी सृष्टि का सृजन किया, तो उन्होंने सबसे पहले आंवले का पेड़ ही उत्तपन्न किया। वहीं एक और मान्यता के मुताबिक, जब देव और दानवों ने अमृत की लालसा में समुद्र मंथन किया तब समुद्र मंथन से निकले विष की बूंदे जहां-जहां गिरी वहां पर भांग धतूरा की बूटियां जन्मी, ठीक उसी प्रकार जब इस मंथन के दौरान जब अमृत निकला तो वह जहां जहां छलका वहां पर आंवले के पेड़ की उत्त्पति हुई। आंवला स्वास्थ्य के नज़रिए से काफी गुणकारी होता है।
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ब्रह्मा के आँसुओं से हुई आंवले की उत्पत्ति-
आंवले को लेकर दूसरी पौराणिक कथा यह प्रचलित है कि भगवान शिव के आंसुओं से जिस प्रकार रुद्राक्ष की उत्तपति हुई ठीक उसी प्रकार ब्रम्हा जी के आंसुओं से आंवले पेड़ की उत्त्पति हुई। वहीं स्कंद पुराण के मुताबिक, जब पूरी पृथ्वी जलमग्न हो रही थी तब ब्रम्हा जी ने पृथ्वी को दोबारा बनाने का सोचा और इसके बाद उन्होंने भग विष्णु की तपस्या करना शुरू की। ब्रम्हा जी की तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु प्रकट उनके दर्शन कर ब्रह्मा जी की आंखों से खुशी के आंसु निकल पड़े, वह आंसु भगवान विष्णु के चरणों में जा गिरे जिससे आंवले पेड़ की उत्त्पति हुई। जिससे खुश होकर भगवान विष्णु ने यह कहा कि आंवला का पेड़ हमेशा ही मुझे प्रिय रहेगा साथ ही जो भी व्यक्ति इस पेड़ की पूजा करेगा उसके जीवन के सभी दुखों को नाश हो जाएगा।
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