Mysterious Craters of Siberia: साइबेरिया के यमल प्रायद्वीप पर साल 2014 में वैज्ञानिकों को एक रहस्यमयी गड्ढा मिला, जो 50 मीटर से भी ज्यादा गहरा और 30 मीटर चौड़ा थ। इसके आसपास फैली चीजों से यह साफ पता चल रहा था, कि यह गड्ढा किसी विस्फोट की वजह से हुआ है। तब से प्रायद्वीप और यमल की सतह से ऐसे बहुत से रहस्यमय गड्ढे बन चुके हैं। लेकिन इन गढ्ढों को लेकर सवाल यह था, कि आखिर यह गड्ढे बन कैसे रहे हैं। ऐसा हो क्यों रहा है, इसके पीछे का कारण क्या है। इसका कारण जानने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत सी संभावनाओं की खोज की और आखिरकार वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसके रहस्य का पता लगा लिया।
भारी मात्रा में मिथेन-
इसके रहस्य को सुलझाने के दौरान ग्लोबल वार्मिंग से लेकर स्थाई तुषार या पार्माफ्रॉस्ट जैसी कई क्रियाओं की भूमिका की पड़ताल की गई। जैसे इलाकों में स्थाई तुषार मिट्टी की वह अवस्था है, जब तापमान पानी के जमाव की वजह से कम हो जाता है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की रासायनिक इंजीनियर एना मोर्गाडो का कहना है, कि वह भारी मात्रा में मिथेन छोड़ते हैं, जिसका ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव पड़ सकता है। जांच के दौरान यह पाया गया, कि यह गैस विस्फोट सर्विस साइबेरिया के पर्माफ्रॉन्स में एक बड़ी गुफा जैसी आकृति बनाती है और हैरानी की बात यह है कि इसमें किसी की आवाज भी नहीं आती।
दुनिया भर में हलचल-
लेकिन इससे निकलने वाली मीथेन गैस निश्चित रूप से दुनिया भर में हलचल पैदा करती है और अब यूनाइटेड किंगडम और स्पेन की एक टीम ने इसके स्रोत का भी पता लगा लिया। मोर्गाडो का कहना है, कि ऐसे बहुत ही खास हालात होते हैं, जिससे ऐसी घटनाएं होती हैं। जांच के दौरान टीम ने पाया, कि यह सिर्फ पिघलते हुए पर्माफ्रॉस्ट से निकलने वाली गैस का मामला नहीं है, जो गर्म तापमान की वजह से फैलती और बुदबुदाती है। हालांकि ऐसा हो रहा है, लेकिन यह इतने बड़े जोरदार धमाके के लिए काफी नहीं है।
रासायनिक प्रतिक्रिया-
स्पेनिश नेशनल रिसर्च काउंसलिंग के भूभौतिकीविद जूलियन कार्टराइट का कहना है, कि विस्फोट होने के सिर्फ दो ही तरीके हैं, रासायनिक प्रतिक्रिया हुई हो और विस्फोट हुआ हो, जैसे एक डायनामाइट का फटना या आप अपनी साइकिल के टायर को तब तक पंप करते हैं, जब तक कि वह फट न जाए, यही फिजिक्स है। किसी भी विस्फोट की जांच में कोई रोशनी या दहन उत्पादन नहीं पाए गए थे, जो रासायनिक प्रतिक्रिया होने का संकेत देते। लिहाजा शोधकर्ताओं ने नतीजा निकलास कि ग्राउंड ब्रेकिंग दबाव का कोई भौतिक स्रोत नहीं होना चाहिए।
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पर्माफ्रॉस्ट के बाद जैसे-जैसे मिट्टी गर्म होती है, फैलती चली जाती है वह नीचे की ओर और पर्माफ्रॉस्ट से पिघलता हुआ पानी रिसता है। यह उतार-चढ़ाव आमतौर पर होता रहता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से यह जमीन में और भी गहराई तक जाता जा रहा है। यहां शोधकर्ताओं का कहना है, कि यह खारे पानी की एक परत तक पहुंच जाता है। लेकिन इस परत के पदार्थ के ऊपर की चीजों से मिलने लगते हैं, जिससे दबाव ऊपर के पर्माफ्रॉस्ट में दरारें बनताी है।
तेजी से विस्फोट-
जिसका आखिर में नतीजा यह होता है, कि मिथेन गैस तेजी से विस्फोट की तरह निकलती है और इसी वजह से ऐसा विस्फोट का धमाका तो सुनाई नहीं देता। लेकिन भारी मात्रा में मिथेन वायुमंडल में जरूर पहुंच जाता है। इसके साथ ही ऐसा भी कहा जाता है, की मिट्टी में दरारें हजारों साल के समय सीमा में होती है। लेकिन अध्ययन में पाया गया, कि मीथेन के विस्फोट की वजह बनने वाली ताकत इस प्रक्रिया को दशकों के अंदर होने वाली गति प्रदान कर सकती है। लेकिन निकलती जा रही मिथेन की मात्रा ग्लोबल वार्मिंग पर काफी बड़ा असर डालती हैं।
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