भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में जर्मनी के समाचार पत्र Frankfurter Allgemeine Zeitung को दिए एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष विराम में अमेरिका की कोई मध्यस्थता नहीं थी। उन्होंने कहा कि यह भारत की सैन्य कार्रवाई थी जिसने पाकिस्तान को संघर्ष विराम के लिए मजबूर किया।
चीन-पाक साझेदारी को लेकर भारत गंभीर
जयशंकर ने इस दृष्टिकोण को खारिज करते हुए कहा कि भारत की नीति स्पष्ट और निर्णायक रही है। चीन-पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य साझेदारी पर टिप्पणी करते हुए जयशंकर ने कहा, “आप ख़ुद ही इसका आकलन करें।” इससे यह संकेत मिलता है कि भारत इस गठबंधन को लेकर सजग है और इसे क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से गंभीर मानता है।
दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के फैसले से रुका संघर्ष
जयशंकर ने कहा, “यह फैसला दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच सीधे संपर्क के ज़रिए हुआ। हमारी कार्रवाई में पाकिस्तान के एयरबेस और एयर डिफेंस सिस्टम को बड़ा नुकसान पहुंचा, जिससे उन्हें लड़ाई रोकनी पड़ी।”उन्होंने इस दौरान यह भी कहा कि भारत-पाक तनाव को ‘परमाणु युद्ध’ के खतरे से जोड़ना पश्चिमी देशों की आदत बन गई है, जो आतंकवाद को परोक्ष रूप से प्रोत्साहित करता है।
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संघर्षविराम में अमेरिका की नहीं कोई भूमिका
यह संघर्ष विराम 10 मई 2025 को लागू हुआ, जब दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच सीधी बातचीत के बाद निर्णय लिया गया। कुछ अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में अमेरिका की भूमिका की बात कही गई थी, लेकिन भारत सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है। यह बयान भारत की स्वतंत्र और आत्मनिर्भर सुरक्षा नीति को दर्शाता है, जिसमें वह बाहरी दबावों से प्रभावित हुए बिना निर्णायक कदम उठाता है।
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