13 जून 2025 को पश्चिम एशिया में तनाव ने उस स्तर को पार कर लिया, जहां से वापसी आसान नहीं लगती। इजरायल ने ईरान पर बड़ा हमला कर दिया, जिसमें उसके परमाणु ठिकाने और सैन्य प्रतिष्ठान निशाना बने। जवाब में ईरान ने इजरायली सैन्य अड्डों पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। ये संघर्ष सिर्फ दो देशों के बीच की लड़ाई नहीं रह गई, यह पूरे मध्य पूर्व के लिए एक संभावित संकट का संकेत है।
कैसे भड़का युद्ध?
हॉन्गकॉन्ग की एक फ्लाइट की तरह ही अचानक ही नहीं हुआ यह हमला। वर्षों से दबे तनाव और राजनीतिक बयानबाज़ियों की बुनियाद पर खड़ी यह लड़ाई अब जमीनी हकीकत बन चुकी है। 13 जून की सुबह इजरायली सेना ने ईरान के खिलाफ अपने हमले की शुरुआत की। इसके निशाने पर ईरान की परमाणु साइटें, वैज्ञानिक और आईआरजीसी (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) के अधिकारी थे।
तेहरान ने दावा किया कि रिहायशी इलाकों पर भी बमबारी हुई, जिससे आम नागरिकों की मौत हुई। शाम होते-होते, ईरान ने जवाबी हमला किया और इजराइल के आयरन डोम सुरक्षा सिस्टम को चकमा देते हुए तेल अवीव तक मिसाइलें पहुंचीं।
इतिहास: जब थे दोस्त
आज जो देश एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं, कभी एक-दूसरे के भरोसेमंद साझेदार हुआ करते थे। 1948 में जब इजरायल अस्तित्व में आया, तो ज्यादातर इस्लामी देशों ने उसे मान्यता नहीं दी। लेकिन ईरान ने, तुर्की के साथ मिलकर, न सिर्फ इजरायल को मान्यता दी, बल्कि व्यापार और खुफिया साझेदारी भी की। इजरायल के मोसाद और ईरान की SAVAK एजेंसी के बीच गठजोड़ गहरा था।
बदलते रिश्ते: 1979 की क्रांति
1979 की इस्लामी क्रांति के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई। शाह को हटाकर अयातुल्ला खुमैनी सत्ता में आए और उन्होंने इजरायल को ‘इस्लाम का दुश्मन’ और ‘छोटा शैतान’ करार दिया। इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते दुश्मनी में तब्दील हो गए।
ईरान ने हिजबुल्लाह, हमास और हूती जैसे संगठनों को न सिर्फ आर्थिक बल्कि सैन्य सहायता भी देनी शुरू कर दी। इजरायल ने जवाब में उनके ठिकानों पर हमले किए।
मौजूदा हालात
अब जब इजरायल ने सीधे ईरान की जमीन पर हमला किया है और ईरान ने भी जवाबी मिसाइलों से हमला कर दिया है, तो यह युद्ध अब केवल प्रॉक्सी वॉर नहीं रहा। नेतन्याहू ने बयान दिया कि “युद्ध तब तक जारी रहेगा जब तक अयातुल्ला खामेनेई मारे नहीं जाते।” यह बयान युद्ध की गंभीरता को दर्शाता है।
क्या होगा आगे?
यह युद्ध एक नई दिशा में जा रहा है जहां से लौटना मुश्किल है। पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका, न्यूक्लियर डील पर काम कर रहे थे, लेकिन अब यह डील अधर में लटक गई है। इस क्षेत्र में तेल, व्यापार और शांति सब कुछ खतरे में है।
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