साल 1950, दिन था 12 फरवरी। असम के डिब्रूगढ़ इलाके में एक घरेलू यात्री विमान, जो कोलकाता से असम की ओर जा रहा था, अचानक संपर्क से बाहर हो गया। कुछ घंटों बाद यह खबर आई कि विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और उसका मलबा डिब्रूगढ़ के पास जंगलों में मिला है।
हादसे की भयावहता
विमान में सवार अधिकतर यात्री मारे गए थे। राहत और बचाव कार्यों के लिए सेना, स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों की मदद ली गई। कई दिनों तक चले इस अभियान के दौरान लोगों को यह विश्वास था कि कोई जीवित नहीं बचा होगा। लेकिन तीसरे दिन एक खबर ने सबको चौंका दिया।
मलबे से मिला चमत्कारी बच्चा
राहत दल को विमान के पिछले हिस्से में एक करीब 5 साल का बच्चा मिला, जो न सिर्फ ज़िंदा था, बल्कि होश में भी था। बच्चे के शरीर पर मामूली खरोंचें थीं, लेकिन वह पूरी तरह सुरक्षित था।
बच्चे ने जो कहानी बताई, वह और भी हैरान करने वाली थी। उसके अनुसार, जब विमान नीचे गिरा, तब वह सीट से बंधा हुआ था। एक पेड़ की शाखाओं ने विमान का टकराव कुछ कम कर दिया, जिससे उस हिस्से पर चोट कम आई और बच्चा सुरक्षित रह गया।
रहस्य और सवाल
इस हादसे ने कई सवाल खड़े किए:
- क्या पेड़ ने वाकई विमान के टकराव की ताक़त को कम किया?
- क्या किसी दैवीय शक्ति ने उस बच्चे की रक्षा की?
- अगर तकनीक नहीं थी तो इतने जंगलों में वह बच्चा कैसे ज़िंदा रहा?
आज भी यह हादसा भारत के सबसे रहस्यमयी एविएशन घटनाओं में गिना जाता है। उस बच्चे की पहचान बाद में “अमिताभ रॉय” नाम से हुई और कहा जाता है कि बड़े होकर उसने सामान्य जीवन जिया, लेकिन मीडिया से हमेशा दूर रहा।