इस्लाम में नववर्ष का पहला महीना Muharram 2025 होता है जो इस बार 27 जून से शुरू हो गया है। मोहर्रम का सबसे पवित्र दिन असुर 6 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा। यह दीन इस्लाम धर्म में दोनों प्रमुख समुदाय सिया और सुन्नी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है लेकिन दोनों से बहुत अलग-अलग तरीके से मनाते हैं।
सुन्नी मुसलमान के लिए मुहर्रम उपवास और आस्था का प्रतीक
मोहर्रम का पर सुन्नी मुसलमान के लिए असुरा के दिन उपवास रखने और आस्था का प्रतीक होता है सुन्नी मुसलमान का ऐसा मानना होता है कि इस दिन हजरत मूसा को अल्लाह ने फिरोंन की अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। इस उपलक्ष में सुन्नी समुदाय के लोग इस दिन रोजा रखते हैं और खुदा का शुक्रिया करते है।

शिया समुदाय के लोग मोहर्रम को शोक और मातम मानते
मोहर्रम के उत्सव पर शिया समुदाय के लोग इस दिन को मातम के रूप में मनाते हैं इतिहास के अनुसार शिया समुदाय के लोग इस दिन ही दिगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाई को कर्बला के मैदान मैं यजीद की सेना के द्वारा बेरहमी से शहीद कर दिया गया था। इसलिए शिया समुदाय के मुसलमान इस दिन काले कपड़े पहनते हैं और ताजिया निकलते हैं। ताजिया इमाम हुसैन की कुर्बानी की याद में निकाला जाता है। कई सारे ऐसे भी श्रद्धालु होते हैं जो खुद को तलवार या जंजीर को मार कर अपना दुख बताते हैं।
Muharram 2025 कि इस खास उत्सव के दौरान भारत के साथ दुनिया भर में इस दिन विशेष तैयारी होती है सुरक्षा के व्यापक इंतजार भी किए गए हैं और कहीं जगह पर मुसलमान लोग धार्मिक जुलूस लेकर निकलते हैं, जिस कारण मार्ग परिवर्तन और विशेष व्यवस्था का खास तौर पर ध्यान रखा गया है खास तौर पर शिया समुदाय के लोगों के लिए क्षेत्रीय प्रशासन में शांतिपूर्ण तरीके से ताजिया निकाला जाए इस पर ध्यान दिया गया है।
मुसलमान में मोहर्रम का त्यौहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता है बल्कि न्याय, बलिदान और इंसानियत के लिए खड़े होने का प्रतीक होता है। इमाम हुसैन की शहादत आज भी हमें सच्चाई और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देती है।
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