कैलेंडर में मौजूद बारह महीनों में फरवरी का महीना सबसे अलग होता है। जहां हर महीने में तीस या उससे ज्यादा दिन होते हैं, वहीं फरवरी के महीने महज 28 दिन ही होते हैं। लीप ईयर में भी इसका सिर्फ एक ही दिन बढता है और उस साल फरवरी माह 29 दिन हो जाते हैं। लेकिन अक्सर आपके दिमाग में यह सवाल कौंधता होगा कि फरवरी के महीने में महज 28 दिन ही क्यों होते हैं। तो चलिए आज हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी देते हैं-
दरअसल, वर्तमान समय में जिस कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता है, वह रोमन कलेंडर पर आधारित है। लेकिन वास्तव में पहले के कैलेंडर में महीनो की शुरुआत मार्च महीने से होती थी और उस समय एक साल में 304 दिन होते थे। इस प्रकार एक साल में सिर्फ दस महीने ही होते थे। लेकिन समय के साथ कैलेंडर में कुछ बदलाव किये गए और कैलेंडर में दो महीने जनवरी और फरवरी जोडे गए। साथ ही इस कैलेंडर को बनाने के लिए चन्द्र वर्ष का सहारा लिया गया। चूंकि चाँद पृथ्वी का पूरा चक्कर 354 दिनों में पूरा करता है, इसलिए जनवरी और फरवरी को 28-28 दिन का रखा गया लेकिन रोम के लोग 28 अंक को अशुभ मानते थे।
जिसके चलते उन्होंने जनवरी में 1 और दिन जोड़ उसे 29 दिन का बना दिया। इस बदलाव के बाद साल में 12 महीने और 355 दिन होने लगे। लेकिन उन्होंने फरवरी माह में एक दिन नहीं जोडा क्योंकि वे फरवरी माह को भी 28 अंक की भांति अशुभ मानते थे और इस माह में यह लोग मरे हुए लोगो की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते थे। हालांकि कैलेंडर में काफी बदलाव किए गए थे लेकिन यह कैलेंडर सूर्य पर आधारित नहीं था, इसलिए यह मौसम अनुरूप नहीं बन पाया।
बाद में जुलियस सीजर ने 45 बीसी में कलेंडर को चंद्रमा के अनुसार न रखते हुए सूर्य के अनुसार रखा और कैलेंडर में कुछ बदलाव करते हुए हर वर्ष में 10 दिन और जोड़ दिए गए। इसके कारण अब हर वर्ष 365 दिन 6 घंटे का हो गया।क्योंकि सूर्य पृथ्वी का चक्कर 365 दिन और 6 घंटे में पूरा करता है। इसलिए पीछे बचे इन 6 घंटो को हर साल बचा लिया जाता है और हर चौथे साल मिला कर एक दिन फरवरी महीने में जोड़ दिया जाता है। इस वर्ष को हम लीप वर्ष कहते है।