Arctic: धरती के तापमान में लगातार हो रही वृद्धि का असर अब आर्कटिक क्षेत्र में साफ दिखाई दे रहा है। वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से एक चौंकाने वाला पैटर्न खोजा है, जो हमारी धरती के लिए एक बड़ी चेतावनी है।
AI से हुई नई खोज(Arctic)-
वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड के उत्तर-पूर्वी तट के पास स्थित स्वालबार्ड द्वीपसमूह का अध्ययन किया। उन्होंने AI मॉडल का इस्तेमाल करके 1985 से 2023 के बीच ली गई, लाखों सैटेलाइट इमेज का विश्लेषण किया। यह रिसर्च नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित की गई है।

चिंताजनक आंकड़े(Arctic)-
स्वालबार्ड में कुल 149 समुद्र-संपर्क वाले ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया। यह नतीजे चौंकाने वाले हैं, जिनमें 1985 से अब तक 800 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा ग्लेशियर पिघल चुके हैं, हर साल लगभग 24 वर्ग किलोमीटर बर्फ पिघल रही है और 2016 में सबसे ज्यादा नुकसान देखा गया, जब एक्सट्रीम वार्मिंग की वजह से बर्फ पिघलने की दर दोगुनी हो गई।
स्वालबार्ड की विशेष स्थिति-
स्वालबार्ड आर्कटिक का सबसे तेजी से गर्म हो रहा क्षेत्र है। यहां कुल क्षेत्र का 57% से ज्यादा हिस्सा ग्लेशियर से ढका है, यह वेस्ट स्पिट्सबर्गन करंट के रास्ते में है, जो गर्म अटलांटिक पानी को आर्कटिक तक पहुंचाता है और नॉर्थ अटलांटिक सेक्टर में वायु प्रवाह के मार्ग में स्थित है।

मौसमी बदलाव का पैटर्न-
वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्लेशियर पिघलने का एक निश्चित पैटर्न है। मई से जुलाई के बीच पिघलना शुरू होता है, अगस्त और सितंबर में सबसे तेज गति से पिघलते हैं, नवंबर और दिसंबर में फिर से जमना शुरू होते हैं।
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स्वालबार्ड के सभी ग्लेशियर-
अगर स्वालबार्ड के सभी ग्लेशियर पिघल जाएं, तो वैश्विक समुद्र स्तर में 1.7 सेंटीमीटर की वृद्धि होगी। इससे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन पर गंभीर असर पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए AI एक महत्वपूर्ण टूल साबित हो सकता है। इससे न सिर्फ समस्या की गंभीरता को समझने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे निपटने के नए तरीके भी विकसित किए जा सकते हैं।
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