अजय चौधरी
असम में एनआरसी की सूची में जिन 19 लाख लोगों को निकाला गया है उसमें सबसे अधिक एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक ही हैं। ये बात दिल्ली के जंतर मंतर पर एनआरसी के खिलाफ धरने पर बैठे असम से आए लोगों ने कही। गुरुवार को भारत मुक्ती मोर्चा के बैनर तले असम से आए सैंकडों लोगों ने अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने की नाकाम कोशिश की। नाकाम इसलिए क्योंकि सरकार उनकी बात सुनना ही नहीं चाहती और दिल्ली की मीडिया की इन लोगों में कोई दिलचस्पी है ही नहीं। जंतर-मंतर पर ये लोग अपने भारत के नागरिक होने के जितने सबूत जुटा सकते थे वो सब लेकर बैठे थे। ये सन् 1964 के माईग्रेशन सर्टिफिकेट और अपने वोटर आईडी कार्ड से लेकर उस समय के जमीन के कागज, जातिगत प्रमाणपत्र सब लेकर यहां आए हैं। कुछ लोग 56 के रिफ्यूजी वाले दस्तावेज भी लेकर आए हैं जो उस समय उन्हें असम सरकार ने दिए थे लेकिन आज एनआरसी में उनका नाम नहीं है। इन सब का यही कहना है कि जब उन्हें उस समय भारत में नागरिक के रुप में रखा गया। सब अधिकार दिए गए, सारे दस्तावेज उस समय के जो थे वो उनके पास हैं तो आज वो भारत के नागरिक कैसे नहीं है?
भीड में कुछ लोग ऐसे भी थे जो ये दिखा रहे थे कि कैसे उनका नाम एनआरसी में है लेकिन उनके बेटे का नहीं है। जब हम भारत के नागरिक हैं तो हमारा बेटा कैसे नहीं है? कुछ पुरुष भारत के नागरिक थे लेकिन उनकी पत्नियां अब भारत की नागरिक नहीं हैं। क्योंकि वो शादी के बाद दूसरे घर आ गई और वो अब अपने पुराने कुछ कागज पेश न कर पाई।
भारत मुक्ति मोर्चा के असम के अध्यक्ष विजय कुमार ने बताया कि एनआरसी की अंतिम सूचि में 19 लाख लोगों में से सात लाख लोग मुस्लिम हैं और साढे 12 लाख लोग गैर मुस्लिम हैं। इनमें अधिकतर लोग एससी एसटी और ओबीसी के हैं। इनके पास वैध दस्तावेज होने के बावजूद इनका नाम एनआरसी की अंतिम सूचि में नहीं डाला गया। इसके विरोध में हम लोग दिल्ली में धरना-प्रदर्शन करने और राष्ट्रपति को ज्ञापन देने आए हैं। उन्होंने बताया हम इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे।
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शेड्यूल कास्ट यूनियन, असम के उपप्रधान गोपास सरकार ने बताया कि वो यहां ये बताने आए हैं कि किस तरह एनआरसी के नाम पर उनके ऊपर अत्याचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा असम में सन् 83 में जो बिहार, बंगाल और उत्तरप्रदेश से गए लोगों को भगाने के लिए बडा आदोंलन हुआ था। उस समय हमें भगाने के लिए बडे स्तर पर हत्याएं और हमारे घर जलाए गए थे। पहले हमें तलवार से काटा गया अब हमें कलम से मारा जा रहा है और हमें बंग्लादेशी और पाकिस्तानी साबित किया जा रहा है। हमें जबरदस्ती डिटेंशन कैंप में भेजा जा रहा है, जहां हमें सताया जा रहा है। हम कोई अपराधी नहीं है जो हमें वहां जेल की तरह डाला जा रहा है। बाद में हाईकोर्ट की दखल के बाद ही हमें वहां से बहार निकाला जाता है।
एनआरसी का डाटा लीक होने का आरोप भी उन्होंने लगाया है। उन्होंने कहा कि दूसरे ड्राफ्ट में जिन लोगों का नाम आ गया था, उस डाटा को लीक किया गया और विरोधी दल के लोगों को दिया गया। जिसके बाद उन्होंने उस डाटा में से हम लोगों को छांटकर हमारे ऊपर आपत्ति उठाई। जिसके बाद एनआरसी ने हमें डाउटफुल केस में डाल दिया कि ये भारत के नागरिक नहीं है। डाटा लीक कर ऐसा जान बूझ कर किया जाता है ताकि हमें और सताया जा सके। इसके बाद हमें पूछताछ के लिए पास के सेंटर न बुलाकर 300 किलोमीटर दूर बुलाया जाता है और वहां तक पहुंचने में उनका दो दिन से अधिक समय लग जाता है और 3000 से 4000 रुपए खर्चा आ जाता है। इस खर्चे को उठा पाने में गरीब लोग असमर्थ हैं।