अजय चौधरी
मुंबई में अभी इंसानियत बाकी है, पर्यावरण की चिंता बाकी है, दिल्ली से ये चिंता चंद लोगों को छोडकर काफी पहले ही पलायन कर चुकी है।
वहां अभी पेड और पंछियों के लिए आंसू बहाने वाले बाकी है, यकीनन यहां नहीं है, होते तो जावेडकर पेड की कटाई के लिए दिल्ली का उदहारण नहीं देते। मेट्रो के एक के बदले पांच पेड का वादा जगह के अभाव में कभी पूरा हो ही नहीं पाया।
एक झटके में मुंबई के आरे में 800 पेड काटे जाने की खबर है, अभी हजारों काटे जाने बाकि हैं। मेट्रो के लिए ये पेड काटे जाने जरुरी थे ऐसा सरकार और कोर्ट दोनों को लगता है। माना मेट्रो जरुरी है लेकिन ये लोग मेट्रो का नहीं केवल मेट्रो शेड का विरोध कर रहे थे।
यहां सब काम समयबद्ध और सुनियोजित तरीके से होता है, ताकि याची के सुप्रीम कोर्ट में जाने से पहले ही पेड काटे जा चुके हों। सुप्रीम कोर्ट तो 7 से 12 तक दशहरे की छुट्टी पर है। तब तक ऐसे सभी काम निपटाए जा सकते हैं। बाद में कोर्ट वही एक के बदले 5 पौधे लगाने का आदेश मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड को दे सकता है।
लेकिन ये महज विंडबना नहीं हो सकती कि अदालत का आदेश आने से पहले ही साईट पर पेड काटने के लिए बडी मशीनें और अमला एक साथ पहुंच जाए और बृहन्मुंबई नगर निगम भी तुरंत पेडों को काटने की अनुमती दे दे और रात भर में 800 पेड काटकर एक तरफ कर दिए जाएं।
रात में पेड पर सोने वाले पक्षी, उनके घोंसले और अंडों का क्या हुआ होगा? वो अपनी जनहित याचिका लेकर कहां जाएं? और अपनी रजिस्ट्री कहां कराएं?