कश्मीर की हवा का रुख बदलता नजर आ रहा है। वैसे जनाजों में उमडने वाली भीड कश्मीर के लिए कोई नई बात नहीं है। पर इस बार ये भीड अलग थी। जनाजे में देश विरोधी नारे भी नहीं लग रहे थे बल्कि इस बार तिरंगे में लिपटा शव था। जनाजे में ये भीड किसी आतंकी के जनाजे में उमडने वाली भीड न होकर सेना के शहीद जवान का मातम मनाने के लिए घरों से निकली भीड थी। शुक्रवार को जम्मु कश्मीर के अनंतनाग के पंचपोरा गांव में लांस नायक मोहिउद्दीन राठेर को हजारों नम आंखों ने विदाई दी।
राठेर की अंतिम यात्रा में गांव वालों के साथ आसपास के इलाकों के हजारों लोग भी शामिल हुए। जैसे ही तिरंगे में लिपटा राठेर का शव सेना के वाहन में गांव की मस्जिद पहुंचाया गया, भीड़ खुद-ब-खुद उमड़ पड़ी। राष्ट्रीय राइफल्स के अफसरों की मौजूदगी में नमाज-ए-जनाजा पढ़ी गई। महिलाओं के हजूम को राठेर की पत्नी शाहजादा अख्तर (26) को सांत्वना देते हुए देखा गया।
जिस वक्त राठेर को बंदूकों की सलामी दी गई, कई लोग अपने आंसू नहीं रोक पाये। दक्षिणी कश्मीर का ये इलाका हिज्बुल मुजाहिदीन का गढ़ माना जाता है। लिहाजा एक सैनिक के लिए लोगों के इस जज्बात से खुद सेना भी हैरान है। इससे पहले श्रीनगर में आर्मी चीफ बिपिन रावत ने भी राठेर को श्रद्धांजलि दी थी।
राष्ट्रीय राइफल्स की 44वीं बटालियन में तैनात गुरुवार को शोपियां में आतंकियों का निशाना बने थे। वो साथियों के साथ कुन्गु गांव से एक ऑपरेशन के बाद लौट रहे थे जब कुछ आतंकियों ने उनके काफिले पर हमला कर दिया। हमले में मोहिउद्दीन के साथ उनके दो साथी भी शहीद हुए थे। जिस जगह ये हमला हुआ वो मोहिउद्दीन के घर से बमुश्किल 25 किलोमीटर दूर है।