दिनेश शर्मा।।
‘नम्मा मेट्रो हिंदी बेड़ा’… भई सुन्ने में आपको लग रहा होगा कि ये कोई साउथ इंडियन फिल्म का डायलॉग है या फिर रजनीकांत की आने वाली किसी फिल्म का नाम, लेकिन दोनों ही ‘गैस’ गलत हैं। ‘नम्मा मेट्रो हिंदी बेड़ा’… आजकल ये सोशल मीडिया के दिवानों का नया पता है। भई हैशटैग के साथ ये लंबे वक्त से वायरल जो हो रहा है और रिजल्ट के तौर पर इसने बेंगलुरु में नई क्रांति भी ला दी है। हिंदी विरोधी क्रांति… जनाब अब बैंगलुरु अपने अधिकारों को लेकर जाग चुका है। अधिकार… भई जब दक्षिण के बाकि राज्यों में साइन बोर्डों पर केवल अंग्रेजी और घर की भाषा में लिखा होता है… तो केवल बैंगलुरु के साथ भेदभाव काहे भई…! सचमुच ‘बहूत ना ईसाफी’ है।
आप सोच रहे होंगे कि जनाब ये मांजरा है क्या? तो साहिबान बात जे है… कि बेंगलुरु मेट्रो में साइन बोर्डों पर अंग्रेजी और कन्नड़ भाषा के साथ हिंदी में भी लिखा होता है… कन्नड़रक्षकों (कर्नाटक रक्षणा वेदिके) को ये पसंद नहीं आया। जिसे लेकर ‘नम्मा मेट्रो हिंदी बेड़ा’के नाम से ‘क्रांतिभूमि’ सोशल मीडिया पर ज़ोरदार अभियान चलाया गया। अमां… हाफिज सईद की बातें में लोग क्या आएंगे… छोड़ो… इस क्रांतिकारी अभियान से लोग इस कदर प्रभावित हुए कि जा पहुंचे बेंग्लुरु के मेट्रो मुख्यालय और दिया जोरदार धरना। नतीजन… ताजी खबर ये है कि केम्पेगौड़ा स्टेशन और चिकपेटे स्टेशन पर हिंदी में लिखे नाम ढक दिए गए… वो भी गम, टेप, रंगीन कागज और कपड़े से। बताओ इतनी गर्मी में इतनी सारी चीजें से ढका…उफ्फफफ…! खैर… दिलचस्प बात ये है कि इस हैरतअंगेज कारनामे को अंजाम देने वाले महाश्य का अभी कोई पता ठिकाना नहीं है। कानाफूसी है कि ये कन्नड़रक्षकों का है काम हो सकता है!
अब इनको कौन समझाए कि बेंगलुरु मेट्रो, केंद्र और कर्नाटक सरकार की संयुक्त परियोजना है। इसके चलते उस पर केंद्र सरकार का ‘त्रिभाषा सूत्र’ अपने आप लागू हो जाता है। शॉर्ट में कहें तो इसके तहत स्थानीय भाषा, हिंदी और अंग्रेजी में सूचनाएं लिखने और प्रकाशित करना जरूरी है। खैर, पिक्चर अभी बाकि है, देखते रहिए आगे-आगे होता है क्या? अरे हैं, सोशल मीडिया की नई क्रांति का मतलब तो बताया नहीं, ‘नम्मा मेट्रो हिंदी बेड़ा’ अर्थात् ‘हमारी मेट्रो, हम हिंदी नहीं चाहते’।