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Dastak India > Home > देश > हरित क्रांती ही बनी किसानों की बर्बादी का कारण
देशविचार

हरित क्रांती ही बनी किसानों की बर्बादी का कारण

dastak
Last updated: July 6, 2017 12:28 pm
dastak
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अजय चौधरी।।

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर हैं। और आज भी निर्भर है। ये वो सच है जो हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। मगर इस कृषि प्रधान देश में प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक किसान आत्महत्या कर लेते हैं और ये आंकडा वर्ष प्रतिवर्ष बढता ही जा रहा है। और ये हम नहीं कह रहे बल्कि एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकोर्ड ब्यूरो) कह रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में 12,602 किसानों और खेती से जुडे मजदूरों ने आत्महत्या की। जबकि 2014 में ये आंकडा 12,402 का था।

किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण किसान के कर्ज में डूबने को ही माना जाता है। लेकिन किसान के कर्ज में डूबने का कारण और इसी नौबत आना खेती की लागत मूल्य बढ जाना ही है। भारत में सन 1950 के दशक में हरित क्रांती की शुरुआत हुई। इसके साथ ही सम्पूर्ण कृषि संस्कृति के केन्द्रीकरण की शुरुआत हुई। रासायनिक खाद्य जैसे यूरिया, सुपरफास्फेट आदि के कारखाने लगे और किसानों को ये उर्वरक उपलब्ध कराए जाने लगे। हालांकि शुरुआती वर्षों में किसानों ने इन उत्पादों का कम इस्तेमाल किया लेकिन इन्हें कृषि का उत्पादन बढाने वाला समझकर धीरे धीरे इन्हें प्रयोग में ले आए।

बस यहीं से किसान की आत्महत्या की कहानी की शुरुआत हुई। खाद्य कहा जाने वाला ये रसायनिक जहर धीरे धीरे खेती की जरुरत बन गया। ये सब वैसा ही था जैसे आज के युवा जल्दी अच्छे शरीर की चाह में जिम ज्वाईन करते हैं और फिर प्रोटीन प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर दो से तीन महीने में ही बॉडी बना लेते हैं औऱ फिर बाद में उसका भयावह परिणाम रियक्शन के तौर पर भुगतते हैं। खेती में भी हरित क्रांती के नाम पर खूब रसायनिक उर्वरक खेतों में डाला गया। इससे खेतों में फसल दो भरपूर मात्रा में हुई पर इसके दुषप्रभाव भी कम न थे। इन रसायनिक पदार्थों ने मिट्टी की उर्वरक क्षमता को खत्म करने के साथ साथ मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढाने वाले जीवों को भी खत्म कर दिया। धीरे धीरे ये रसायनिक खाद्य खेत में डालना मजबूरी बन गए।

समय के साथ साथ इन रसायनिक खाद्य बनाने वाली कंपनीयों का मुनाफे का खेल शुरु हो गया। इन कंपनीयों ने खेतों में प्रयोग किए जाने वाले कीटनाक्षकों और रसायनिक खाद्यों के दाम इतने बढा दिए कि वो किसान की पहुंच से बहार होने लगे। लेकिन किसानों का उन्हें लेना मजबूरी बन गया। क्योंकि इन उत्पादों के बिना खेत में फसल की पैदावार करना असंभव सा हो गया। किसानों की इसी मजबूरी का फायदा उत्पाद बनाने वाली कंपनीयों ने जमकर उठाया। फिर इन उत्पादों को खरीदने के लिए किसानों को कर्ज लेना पडता है। कर्ज लेकर और इन रसायनिक खाद्यों को खेतों में डालने से किसान की फसल का लागत मुल्य काफी बढ़ जाता है। कईं बार तो किसानों को बाजार में फसलों की लागत के बराबर भी मुल्य नहीं मिल पाता है। किसान इसके लिए न्युनतम सर्मथन मुल्य(एमएसपी) की लडाई लड रहे हैं। मगर सरकार कर्जमाफी की लॉलीपोप थमा उनकी समस्याओं से मुंह मोड लेती है। जिससे पुराना कर्ज तो माफ हो जाता है लेकिन फिर से किसान को नया कर्ज लेना पडता है। किसान की जिंदगी में यही कर्ज पर कर्ज औऱ कर्ज पर कर्ज चलता रहता है। इसी तरफ फिर एक दिन किसान अपनी जिंदगी से मुक्त हो जाता है।

अगर ये हरित क्रांती न आती तो आज किसान की और खेतों की ये हालत न होती। इसी हरित क्रांती ने हम सब की जिंदगी में जहर घोला है। जिस कारण कैंसर और हर्ट अटैक जैसे रोग तेजी से बढ रहे हैं। क्योंकी खेतों में उगी जो सब्जी हम खा रहे हैं उसमें भरपूर मात्रा में कीटनाक्षकों और उर्वरकों का छिडकाव किया होता है, अब वो सब अंदर ही जा रहा है।

 

TAGGED:CencerCentrel GovernmentfarmerGreen RevolutionindiaLoanmarketNCRBPOLITICAL PARTYRatestate-governmentsuicide
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