मध्य प्रदेश में सरकार ने करोड़ों रुपये के घोटाले में आरोपी अफसरों का निलंबन सिर्फ इसलिए वापस ले लिया, क्योंकि मामले की जांच में देरी हो रही थी। विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ने इस संबंध में मुख्यमंत्री आवास के बाहर लगी शिकायत पेटी में अपनी शिकायत का लिफाफा डाला है। उन्होंने इंदौर में हुए 75 करोड़ से अधिक के आबकारी घोटाले में आरोपी अधिकारियों और का निलंबन वापस लेने के प्रदेश सरकार के फैसले को ‘बड़ा घोटाला’ करार दिया।
अजय सिंह ने गुरुवार को कहा, ‘जिस तरीके और कारण के साथ 6 अधिकारियों और कर्मचारियों का निलंबन खत्म किया गया है। यह मध्य प्रदेश के इतिहास में बड़े भ्रष्टाचार की मिसाल है।’ उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं न खाऊंगा न खाने दूंगा, वहीं शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार में जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। दूसरी ओर आबकारी विभाग के उन अफसरों को बहाल कर दिया जाता है, जो करोड़ों के घपले में शामिल हैं।’
इससे पहले बुधवार की रात वाणिज्यिक कर विभाग के उपसचिव अदिति कुमार त्रिपाठी के हस्ताक्षर से जारी आदेश में कहा गया कि जांच में संबंधित अधिकारियों को जवाबदेह पाया गया है, आरोप-पत्र जारी हुआ है और विभागीय जांच हो रही है। इस प्रक्रिया में लगने वाले समय को ध्यान में रखते हुए ‘तब तक के लिए’ अधिकारियों व कर्मचारियों का निलंबन खत्म कर उन्हें बहाल किया जाता है।
इसके बाद मध्य प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता ने मुख्यमंत्री निवास के सामने भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने के लिए लगाई गई पेटी में अपनी शिकायत डाली। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि राज्य सरकार ने बुधवार की देर रात को वर्ष 2017 के बड़े आबकारी घोटाले के आरोपियों को बहाल करने का आदेश निकाला, जबकि इसकी जांच भी पूरी नहीं हुई है। लोकायुक्त के साथ यह मामला उच्च न्यायालय में चल रहा है। सरकार ने जिस तरह चोरी-छुपे उक्त अफसरों का निलंबन रद्द करने का आदेश दिया, वह वह घोटाले में एक और घोटाले का संकेत देता है।
उन्होंने सवाल किया कि आखिर सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि 75 करोड़ से अधिक का चूना लगाने के आरोपी अधिकारियों-कर्मचारियों को फिर से बहाल कर दिया गया? उन्होंने मामले की जांच CBI या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति गठित कर कराने की मांग की।