आज शहीद चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथी है। ऐसे में पूरा देश उनको अपनी श्रद्धांजली दे रहा है। चन्द्रशेखर आजाद ने खुद को आजाद घोषित कर दिया था और अंग्रेजों के हाथों न मरने की कसम खाई थी। इसलिए आखरी समय में आजाद ने खुद को घिरता देख खुद की रिवाल्वर में बची आखरी गोली खुद को मार शहीद हो गए थे। क्योंकि उन्हें अंग्रजों की गोली से मरना नामंजूर था। आज हम आपको ऐसे चंद्रशेखर आजाद के जीवन से जुडे कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर 23 जुलाई 1906 को एक बच्चे ने जन्म लिया। जिसका नाम चंद्रशेखर तिवारी रखा गया। इनके बचपन के दिन भील जाती के बच्चों के साथ गुजरने के कारण ये तीर- कमान चलाने में भी सक्षम हो गए थे। वहीं पढाई में चंद्रशेखर का मन तो कभी लगा ही नहीं। बामुश्किल बस तीसरी कक्षा ही उत्तीरन कर पाए। चंद्रशेखर ने तहसील में एक हैल्पर के रुप में भी तीन से चार महीने काम किया था। जिसे उन्होंने बगैर इस्तीफा दिए ही छोड दिया था।
वहीं चंद्रशेखर की मां जगरानी देवी का सपना था कि उनका बेटा एक दिन बडा विद्वान बने। इसलिए उन्होंने चंद्रशेखर के पिता को भी बेटी की आगे की पढाई के लिए वाराणसी भेजने के लिए राजी कर लिया था। लेकिन चंद्रशेखर के मन में तो देश को आजादी दिलाने की धुन सवार थी और वो कूद पडे आजादी के दिवानों के साथ आजादी की लडाई में। बात 1921 की है। तब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। चंद्रशेखर उस समय छात्र थे और उनकी उम्र उस समय मात्र 15 साल थी। आंदोलन में शामिल चंद्रशेखऱ को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। जब इन्हें जज के सामने पेश किया गया और उनसे उनका नाम पूछा गया तो चंद्रशेखर ने कहा- “मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा पता है जेल। चंद्रशेखर के इस जवाब से जज सहाब भडक उठे और 15 बेंतो की सजा सुना दी। फिर क्य़ा था तभी से चंद्रशेखर का नाम आजाद पड गया और वो चंद्रशेखर तिवारी से चंद्रशेखर आजाद बन गए।